मगरमच्छ !!

जज की कुर्सी पर बैठ कर मुझे लगा था कि हाथ उठाते ही मेरी उंगलियां आसमान छू लेती हैं !

सच भी था ! आप मानिए कि मुझे केस फ़ाइल देखते ही सब आगा-पीछा समझ आ जाता था . जैसे ही मैं पक्ष -विपक्ष को देखता ‘सच’ मेरे सामने हाथ जोड़ कर आ खड़ा होता ! मैं जिरह करते वकील और गीता पर हाथ रख कर झूठ बोलते गवाह को देखते ही पहचान लेता था कि ….केस है क्या ! और जब केस का फैसला लिखने का वक्त आता था तो ….आप हैरान रह जाएंगे कि …मेरी कलम ऐसे-ऐसे तथ्य खोल कर लिख देती थी कि …जाने-माने वकील भी दांतों तले उंगली दबा लेते थे !

लेकिन आज ….आज मैं जिस केस को सुन रहा था …वह केस …केस कम …एक ‘जंगी मुद्दा ‘ ज्यादा था ! ख़ास कर मेरे लिए ….’जज जस्टिन फ़र्नान्डिस ‘ के लिए आज का ये केस अहं था ! ये एक परमात्मा का भेजा लाखों में से एक मौका था – जब मैं अरुणा के साथ अपना हिसाब चुकता कर सकता था !

“मी लार्ड …!” अरुणा की आती आवाज़ मैं सुन रहा था . “इस बहशी दरिन्दे ने इस मासूम-सी खड़ी लड़की का ‘रेप’ किया है !” अरुणा द्रश्य पर छा-सी गई थी . ये अरुणा की आदत थी . “देखिए …सबूत …मेडिकल रिपोर्ट …गवाहों के बयान ….और ये देखिए …..” वह कहे जा रही थी .

लेकिन मैं न कुछ देख रहा था ….और न ही कुछ सुन रहा था !!

मैं ती सुन रहा था – तुम कच्ची मछली को कुतर-कुतर कर खा जाते हो ! यू ….आर …ए बीस्ट, जस्टिन !! कितना अमानुषिक लगता है ….ये ……?”

“अरे , माई डीयर ! मैं एक मछुआरे का बेटा हूँ .” मैंने हंस कर अरुणा को बताता था . “जानती हो ! मैं अपने बाबा के साथ …मछली पकड़ने नाव पर जाता था ! बीचों-बीच …सागर के बीचों-बीच हम कभी …इस कदर फंस जाते थे ….कि …” मैं मुड़ कर अरुणा को देखता . “सच मानो …अरुणा कि तब …कच्ची मछलियाँ खाना हमारे लिए अनिवार्य बन जाता ! मर जाते ….अगर ….”

अब अरुणा कुछ न बोलती . वह चुप रह जाती ! लेकिन मुझे लगता जैसे मेरी लाइफ लाइन कट गई हो ! कारण – मैं अरुणा से प्यार करता था ….बहुत प्यार करता था – उसे !!

आप मानेंगे – इतनी सुंदर औरत मैंने आज तक नहीं देखी ! अरुणा सच में ही ‘हूर-परी’ थी . अरुणा अलभ्य सुंदरी थी . अरुणा का रूप-लावण्य बेजोड़ था . अरुणा के हाव-भाव मुझे बे-हद सुहाते थे ! उस की हंसी मेरे भीतर खुशियों के अम्ब्बार भरती ही चली जाती थी ….और मैं हंसता ही रहता था !

“भाई ! ये दारू क्यों पी आते हो ….?” अरुणा पूछ बैठी थी . मैं अब अरुणा के न मिलने के गम में पीने लगा था .

“छोड़ दूंगा ! शादी कर लो ….मुझ से ….?” मैंने अपने मन की बात कह डाली थी .

और अरुणा ने मेरे उस प्रस्ताव का आज तक उत्तर नहीं दिया था !

पर मेरा भी सौभाग्य मेरे सामने आ खड़ा हुआ था ! मैं जज नियुक्त हुआ था ….और अरुणा रह गई थी !मेरी प्रसन्नता का ठिकाना न था .

“मेरी शादी हो रही है !” मैंने अरुणा को स्पेसल जा कर बताया था . “आना ज़रूर !” मैंने आग्रह भी किया था  .

इस के भी कारण थे – एक, मेरी पत्नी कौशल्या ब्राह्मण थी. दो, कुलकर्णी परिवार विजनेस टाइकून था . तीन, अब मेरा ‘दलित’ होना या कि न होना – कोई माने न रखता था ! चार , मेरी पत्नी कौशल्या के लिए तो मैं उस का पति-परमेश्वर ही था !

मैंने अपनी शादी को अरुणा की पहली हार में गिन लिया था . और आज – मेरे सामने अपने केस की जिरह करती -अरुणा , अपनी दूसरी हार का मुंह देखने वाली थी ! मैंने ठोक कर …ओपन कोर्ट में …सब के सामने अपना फैसला सुनाया था ! मैंने उस ‘रेप’ के दोषी व्यक्ति को निरा निर्दोष बता कर बरी कर दिया था ! मैंने सोलह पन्ने के अपने फैसले में …कुछ मुद्दे भी उठाए थे . मैंने कहा था कि ….आज पैसेवालों, हैसियतवालों ….और गन-मान्य लोगों को ‘रेप’ के केस में फंसाना एक चलन बन गया है ! लोग इसे पैसे ऐंठने का जरिया मान बैठे हैं !!

कहते हैं – अरुणा ने तीन दिन खाना नहीं खाया था !

इस एतिहासिक फैसले के बाद ही मेरे सितारे चमके ! प्रेस और मीडिया ने मुझे हाथों पर उठा लिया . पुलिस,वकील और नेता ,अभिनेता ….सब ने मुझे सलाम ठोकी ! मेरा इंटरव्यू भी छपा था . मैंने खुले आम एलान किया था कि …’रेप’ के इस वाइरस को ख़त्म करने का और कोई तरीका ही नहीं है ! हमें सबूतों से भी परे देखना है …और न्याय करते वक्त द्यान रखना है कि ….कोई बे-गुनाह फांसी न चढ़ जाए ! बहुत ही सराहा गया था – मेरा ये कथन !

और ….और हाँ ! सब से बड़ी एतिहासिक घटना तो ये हुई कि में ….’हाई कमांड’ को भा गया !!

“अरे! तुम तो एस सी / एस टी में आते हो …? दलित हो …..?” अचानक वही प्रश्न लौटा था जिसे मैं स्वयं भुला बैठा था ! “पीतू भाई ! इन की फाइल देखो ! इन का प्रमोशन  …..” आदेश हुए थे .

और मैं एका-एक इक्क्यावन जजों को पीछे छोड़ …हाई कोर्ट में जा पहुंचा था ! करिश्मा तो था -ही ! इस से मैं ….और मेरा आस-पास सभी प्रकाशित हो उठे थे ! तब ….हाँ,हाँ ! तभी अरुणा एक बार फिर मेरे सामने एक केस में आई थी ! मैंने उसे एक किताब की तरह पढ़ा था ! वह पीछे छूट तो गई थी ….पर उस की प्रेक्टिस खूब चल रही थी ! वह अभी भी सच्चाई का परचम हाथ में लिए खड़ी थी ! मैंने भी उस के चहरे पर कहीं ‘हार’ को नहीं पढ़ा था ! और जब वह बोली थी तो मुझे लगा था -ये तो वही अरुणा है !

मुझे उस दिन अच्छा नहीं लगा था ! अरुणा जीत कर गई थी . मैं …मैं ….! नहीं,नहीं !! हारा तो मैं भी नहीं था ! ‘थैंक यू , मी लार्ड !” के कहे अरुणा के कथन का अर्थ था कि  वह जीतने की उम्मीद ले कर न आई थी !

खैर ! मेरे तो सितारे मेरे पास थे !

वो रात मुझे याद है ….वो रात …जब मुझे ‘इस’ का जजमेंट लिखना था ! घर पर ही फाइल ले आया था . पूरा जमावड़ा पहुंचा था . मांग थी -जजमेंट ऐसा लिखा जाए – उम्र कैद …नो बैल …और …इसे हमेशा-हमेश के लिए ….! जो चाहे धारा लगाओ …पर इसे मिटाओ ! आज हाथ से निकल गया ….तो गया !!

में अकेला ही नहीं , पूरा देश ही उस दिन जग रहा था ! उस रात हाई कमान का फोन भी बार-बार खनक रहा था …और हर बार कोई न कोई मेरे कान में डाल रहा था – जस्टिन सहाव ! देखते हैं आज आप की कलम का हुनर !!

और मैंने भी जजमेंट लिख दिया था ….ऐतिहासिक जजमेंट था ! सब ने पढ़ भी लिया था . सब खुश थे . इस के बाद तो सब की चांदी थी ! यही तो काँटा था …सो अब निकल जाना था !! मुसलमान तो इतने खुश थे कि मुझे कोई भी मांगी मुराद हाज़िर कर देना चाहते थे ! और जब मैंने सुबह के सूरज को प्रणाम किया था ….तब …हाँ,हाँ ! तभी मुझे मेरे ट्रान्सफर के आदेश मेरे निवास पर ही मिल गए थे ! मैं भ्रमित था ….चकित था ….हैरान था …और बहुत परेशान था !! क्योंकि …तव ‘ये ‘..मछली की तरह मेरी उँगलियों से फिसल कर …गहरे और अथाह समुद्र में जा दुबका था !!

“फिकर नां करें, जस्टिन सहाव ! पूरे के पूरे हिन्दुस्तान ने दम लगा दिया है ! आपका सुप्रीम कोर्ट में अपॉइंटमेंट हो कर रहेगा !! हाई कमान …तो …” लेकिन सच में …मैं कुछ भी न सुन पा रहा था .

में जानता था – कि कल शनिवार था ….फिर इतवार ….और आगे था …सोमवार !! माने …’रिटायर्ड’ !! आज …आज आ कर मुझे क़ानून का वो कथित अंधा कुआँ दिखाई दिया था ….और मैं स्वयं उस में गिरने जा रहा था ! मेरा सारे का सारा आस-पास डूबता ही जा रहा था ….इस अंधे कुँए में …और …..

“लो ! अरुणा जी का तो हो गया !” अंगद मुझे बता रहा है . लेकिन मैं समझा नहीं हूँ . “क्या हो गया ….अरुणा का ….?” मैं अब कोई बुरी खबर सुनने जा रहा हूँ ! “उन का अपॉइंटमेंट ! ” अंगद ने कहा है . “सुप्रीम कोर्ट में …सोमवार को चार्ज संभालेंगी !!”

आ गया न मेरा अंत ….? अब मेरी फाइलें खुलेंगी ….अरुणा उन्हें पढेगी ….और …और मेरे दिए सारे के सारे ऐतिहासिक जजमेंट ….

मैं ये क्या देख रहा हूँ ….? गहरे समुद्र में मैं …और मेरे बाबा …आ फंसे हैं ! रात हमने कच्ची मछलियाँ खा-खा कर गुजारी है . अब निकला है सुबह का सूरज -आशाओं की तरह ! लेकिन तभी ….हाँ,हाँ ! उसी वक्त ..’.ये ‘ …हाँ ‘यही’ मछली से बना मगरमच्छ …हम पर हमला बोल देता है !

मैं घबरा कर भागा हूँ ….और समुद्र में छलांग लगाने को हूँ …..

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श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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