
मैं किसे पुकार बैठी ?
सावित्री को लगा था जैसे वह एक लम्बी यात्रा कर के लौट रही थी. एक यात्रा ..बेहद थकाने वाली यात्रा …गम और खुशिओं से लबालव भरी यात्रा ….उत्कर्ष और अपकर्ष की एक विचित्र यात्रा !
सावित्री को अचानक ही क्रोध आने लगा था.
वह भवकने लगी थी. अपने तप-भंग होने का अफसोस और सती की तपस्या का अंत आज उसे टुकड़ों में काटे दे रहा था. पतिव्रता स्त्री होने का उस का दंभ – उस पर हंस रहा था। आज ….पराया हुआ राजन …उसे एक बदबूदार कीड़े से कुछ अलग न लग रहा था. सत्यवान की लाश पर रोती सावित्री आज उसे मूर्ख औरत लगी थी !
“कि एक दिन वह राजन को अवश्य मना लेगी – अपना बना लेगी – अपने आदर्शों के अनुरूप ढाल लेगी ….आज अंत पा गया था. समूचा साथ – सहवास आज उसे व्यर्थ लग रहा था। राजन को एक स्वच्छ ,पवित्र और लाभकारी जीवन जीने के लिए …राजी करने में वह अंततः असफल हुई थी. राजन के व्यसन और वासनाएं … नर्क में लजाते लग रहे थे …सावित्री को.”
“लेकिन ….लेकिन …राजन ….नर्क में ही क्यों जाना चाहता है ?” सावित्री ने एक अंतिम प्रश्न अपने आप से पूछा।
पारुल में ऐसा क्या है ….जो सावित्री में नहीं है ?
“अभी तक तुम पुरुष को नहीं समझ पाईं , सावित्री !” उस का ही विवेक बोला था. “पुरुष को वैश्या ही चाहिए ! यह उस का प्रकृति-जन्य दोष है. उस के सोच में …नांचती -गाती नर्तकियां ….आसक्ति में अपांग लिपटी रति-रंभाएँ …और उस के तलवे चाटती अफ़सराएँ शामिल हैं ! उसे तो वह चाहिए – जो असात्विकी है …अमंगल है …हैय है !”
“लेकिन क्यों ?” सावित्री आज सच्चाई जान लेना चाहती थी.
“याद करो ….स्वयं राजन ने क्या कहा था। ”
“राजन ने कहा था – मैं तो मान कर चलता हूँ …कि स्त्री-पुरुष के भोग की वस्तु है। इन लोगों को देखो ! तमाम अय्याशी के साधन मोहिया हैं। स्त्री की अपनी आज़ादियाँ हैं ….और पुरुष उन्हें भोगने के लिए स्वतंत्र है। वो जो चाहता है …पा जाता है। हमारे यहाँ भी इसी तरह के स्वर्ग स्थापित होने चाहिए – जहाँ आदमी जो चाहे ….जैसा चाहे …उसे मिले – कीमत दे कर !”
“पैसा बोल रहा है …,राजन ?” सावित्री ने उसे टोका था.
“पैसा तो बोलता ही है, सावो !” राजन ने सीधा सावित्री की आँखों मैं घूरा था. “मैं गरीब था – गुलाम था ….! धन्ना मल सेठ थे ….! सुलेमान मेरा बॉस था ….! ये स्तर पैसे ने ही तो बांटे थे ?”
“लेकिन …मैंने तो ….” सावित्री ने टोका था, उसे.
“सुनो , सुलेमान ने क्या कहा था – ईत्ता कमाया है , तुमने राजन …..कि आज सेठ धन्ना मल की तिजौरियां धन से नांक तक भरी हैं। वरना तो जहाज डूबने वाला था. अगर तुम और कजरी कहीं से प्रकट न होते तो ….पूरन मल के पास सब गिरबी धरा होता ! धन्ना मल उन के मुनीम होते …और तुम्हारी सावित्री …..”
राजन अपनी औकात जान गया था.
“क्या था – जो सारी रात ….गारत हो गई थी ? मैं – तो ….?” सावित्री ने पहली बार प्रश्न पूछा था, राजन को.
“व्यापार ….!” राजन हंसा था। “जानती हो …ग्यारह घोड़ों का आर्डर मिला है !” उस ने बताया था. “घटा लो , मुनाफ़ा ….”
“शराब …और पत्ते ….?” सावित्री ने डंक मारा था.
“हाँ,हाँ ! बिना शराब और पत्तों के ….ये व्यापार नहीं होता !” राजन ने तल्ख़ आवाज में उत्तर दिया था. “शराब और पत्ते …छोड़ने के लिए कह रही हो ….? अगर मैं तुम्हें खाना खाने से रोकूं तो ….? अपनी-अपनी खुराक होती है, सावो ! समझो – प्लीज …!”
“मैं ….अकेली ….?”
“बच्चे, उत्तर है, सावो ! गृहस्थ बसाओ …..!! क्यों नहीं …..हम ….?”
हाँ, सावित्री ने फिर गृहस्थ बसाने की हर कोशिश कर डाली थी. दुनियां भर में डोली थी , वह. हर किसी का एक ही उत्तर था – दोनों …स्वस्थ हो ……! बच्चे जब होंगे – तब होंगे ! प्रभु की माया है !
विचित्र विडंबना थी ! सावित्री पूर्ण असहाय थी – क्या करती ? संतान आना तो शायद उस के भाग्य में ही न था ! परमात्मा के भी खूब पैर पकड़े , उस ने ! लेकिन उस ने भी सावित्री की प्रार्थना सुनी ही नहीं !!
तब राजन ….खेलने-खाने के लिए ….और भी स्वतंत्र हो गया था – मशहूर हो गया था ….और हर पार्टी की जान कहलाने लगा था.
ग़दर राजन कहने लगे थे , लोग उसे !!
वह हर होनेवाली पार्टी में होता …पार्टी की जान होता ..शान होता …और रंग उड़ाता बे-ताज बादशाह होता ! हर सुन्दर स्त्री उस के साथ नृत्य करने को आतुर होती ..और कुशल व्यापारी उस के साथ सम्बन्ध जोड़ने के लिए हर संभव उपाय करते -उसे प्रसन्न करते …!
“जॉकी था न ….तुम्हारा , ये राज ….?” चलती पार्टी में सावित्री की परम मित्र रुचिका ने अचानक प्रश्न पूछा था.
सावित्री को लगा था जैसे हज़ारों-हज़ार बिच्छूओं ने उसे एक साथ डंक मारा हो !!
रुचिका उस की परम मित्र थी. रुचिका -माने मिसिज पिथौरा राय – पिथोरा गढ़ के रॉयल खान-दान की बहू थी. उस का पति -परमजीत राय -एक मरियल किस्म का आदमी था। लेकिन रुचिका बे-जोड़ सुंदरी थी. सावित्री कई बार उस के घर आती-जाती थी. उस के यहाँ का जो रॉयल तौर-तरीका था – वो एक दम पाश्चात्य रंग-ढंग का था. उन के पास न तो पैसे की कमी थी …और न ही जायदाद का ओर-छोर था. घोड़ों को लेकर उन का व्यापार भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर का था. राजभवनों में उन के दादों-परदादों की तस्वीरें लगीं थीं. घोड़ों पर बैठे …मुकुट पहने …वो जैसे उन के विगत के विज्ञापनों की सनद थे !
अब क्या बताती सावित्री , रुचिका को …कि राजन क्या था …क्यों था …और कैसा था …? क्या छुपाती …और क्या-क्या नहीं बताती …?
“मे आई …डांस विद यू ….?” सहसा राजन ने आ कर रुचिका से आग्रह किया था. वह भीमकाय पहाड़-सा रुचिका के सामने झुका खड़ा रहा था.
“व्हाई ..नांट …?” रुचिका कूद कर खड़ी हो गई थी. “नेकी …और ..पूछ-पूछ !” उस ने जुमला कसा था …और राजन को अपनी गोरी बांहें थमा कर नांचने चली गई थी.
हैरान-परेशान सावित्री उन दोनों को लरज-लरज कर नांचते देखती रही थी.
“तीन साल से धक्के खा रहे हैं ..!” राजन ने बाद में बताया था. “चाहते हैं …मैं किसी तरह से बिकजाऊँ। रुचिका …?” कहते-कहते रुक गया था, राजन। “तुम बहुत भोली हो, सावो। और ये सब साले चोर हैं, चोर !!”
ज़माना कितना दुरंगा था और …इन की औरतें …बेहद बनावटी ,वाचाल और वाहयात थीं !
सुरा और सुंदरियों के संसार में रसा-बसा राजन …कहीं चाहने लगा था कि …सावित्री भी उस संसार में अपनी कोई जगह बना ले ….!
“लो न ड्रिंक ….?” सावित्री से बानो ईमांमदार का पति -मंसूर अली, आग्रह पूर्वक कह रहा था. “आप तो कलकत्ता की हैं …सेंट जेबियर में पढ़ी हैं …! मैं भी वही था।” वह हंसा था. “वानो ने बताया होगा कि …हम लोग हैदराबाद के शाही …” सावित्री ने इस के बाद कुछ नहीं सुना था. उसे लगा था कि वानो भी मक्कार ही थी …!
“मैं …मैं …नाँचना नहीं जानती ….!” सावित्री ने विनय पूर्वक कहा था. “मुझे आता ही नहीं।” वह साफ़ नांट गई थी. “पी लूंगी तो उल्टियां लग जाएंगी …!!” उस ने शर्माते हुए कहा था.
“पुजारिन है ….बेचारी !” रमा का रिमार्क था. “श्याम की राह जोहती …राधा है …!!” वह हंसी थी.
राजन के गहरे मित्र – कैरी ने उन दोनों को अपने लॉन्च पर शाम के डिनर पर बुलाया था. सावित्री के लिए ये एक अनूठा अनुभव था. समुद्र के मध्य में खड़ा वो एकाकी पानी का जहाज़ ..या कहें कि बेड़ा …एक अजीव ही दुनियां लगी थी, उसे ! सब कुछ था – उस जहाज़ पर. और सब से बड़ी थी वहां की नीरवता ! शांत खड़ा विश्व …और आनंद लेते …वो कुल तीन प्राणी !!
राजन पिए जा रहा था. पेट भर कर पी रहा था. खा रहा था …और गप्पें मार रहा था। उस के सुनाए जोक ,महा बोर थे पर कैरी उन पर बिफर-बिफर कर हंस रहा था. सावित्री मौन थी …चुप थी …!
“कुच्छ भी न ..न लोगी …?” कैरी ने पूछा था. “एक ड्रिंक …मेरे लिए …मेरे नाम पर , बस …एक …!!”
“नहीं , मैं केवल पानी लूंगी !” सावित्री ने कहा था.
जब राजन पी पी कर बेहोश हो गया था – तब कैरी ने कहा था –
“तुम्हारी जैसी सुन्दर स्त्री मैंने …पहले कभी नहीं देखी ! आई …लव …यू …! मैं तुम्हारे लिए जान तक दे सकता हूँ …! मेरे पास अपार धन है …विपुल सम्पत्ति है ..! मैं ये सब तुम्हें दे दूंगा …! मैं …मैं …एक बार तुम से हाँ सुनना चाहता हूँ …!!” उस ने सावित्री को छू लिया था.
“च ..टा …कक। ..!!” सावित्री ने कैरी के गाल पर तमाचा जड़ा था। “बद् …त ..मीज़ …!!” उस ने कहा था.
कैरी अब उसे लाल-लाल आग्नेय नेत्रों से घूर … रहा था !!
“मैं चाहूँ तो तुम्हें …अभी …क़त्ल ..कर दूँ …! मैं चाहूँ …तो ..राजन के …टुकड़े-टुकड़े कर के …मछलिओं को खिला दूँ ….! मैं चाहूँ तो …” वह रुका था. “लेकिन नहीं …! तुम्हारी …जैसी निष्पाप सुंदरी को …मार कर मैं जी न पाऊंगा …! उफ़ …तुम्हारी ये आँखें …तुम्हारे बदन से आती …ये सुगढ़-सी सुगंध …तुम्हारा ..ये दमकता चरित्र ….!का:श ! मुझे ..तुम्हारी एक नज़र ही मिली होती …” वह रुका था. “मुझे भूलना मत ..! कभी ज़रुरत पड़े तो …पुकारना अवश्य , सावित्री !!” अनुरोध था , उस का।
“हे , प्रभो !!” सावित्री की अब हिलकियां बंधीं थीं. “मैं किसे पुकार बैठी ….?”
घर पहुँचने से पहले सावित्री कार में बैठ कर खूब रोइ थी !