संस्कृति तत्व मीमांसा

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संस्कृति की प्राणसत्ता ही साहित्य की रसात्मकता का रूप धारण करती है तो आचारपरक सभ्यता में भी संस्कृति ही रूपायित होती है. संस्कृति पौराणिकता में अपने अनंत प्रवाह के उद्गम स्रोत का साक्षात्कार करती चलती है.

 

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Description

संस्कृति की प्राणसत्ता ही साहित्य की रसात्मकता का रूप धारण करती है तो आचारपरक सभ्यता में भी संस्कृति ही रूपायित होती है. संस्कृति पौराणिकता में अपने अनंत प्रवाह के उद्गम स्रोत का साक्षात्कार करती चलती है. दर्शन में संस्कृति अपनी उद्दात अंतरवर्ती चिंताधाराओं के तीर्थ प्रतिष्टित करती चलती है तो नैतिक चेतना और मानव मूल्यों में संस्कृति अपनी कालातिक्रामी विराटता और स्वस्तिकता के साथ अन्तःसलिला रूप में प्रवाहित होती है. सौन्दर्य चेतना में संस्कृति आल्हादकारी कमनीयता के अपने ही मनोमुग्धकारी रूप पर मोहित होती है तो भाषा और विशेषकर काव्य-भाषा में व्यंजन पाकर संस्कृति अपने सम्पूर्ण अर्थ-वैभव के साथ सवाक हो उठती है.

Additional information

ISBN

81-7570-048-3

Author

Dr. Nandlal Mehta \'Vageesh\'

Publisher

Suryaprabha Prakashan

Binding

Hard Cover

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