उपन्यास अंश ;_

विस्तार – २ 

मुहब्बत फिल्म की शूटिंग आज लारेंस गार्डन लाहोर में होनी थी !

लाहोर शहर में ये दिन एक पर्व की तरह मनाया जा रहा था ! इस के कई कारण थे . पहला तो यही कि इस फिल्म में आज के फिल्म जगत की श्रेष्ठ अदाकारा सुरभि लीडिंग रोल में थीं और नितांत नए हीरो – सत्य पाल उन से टक्कर लेने आ रहे थे ! सत्य पाल जहाँ बिलकुल नए हीरो थे …वहीँ सुरभि जानी-मानी एक फ़िल्मी हस्ती थीं !!

“कहाँ टिक पाएगा , ये सत्य पाल ….?” लोग चर्चा कर रहे थे . “सुरभि के सामने सारे संवाद भूल जाएगा !” लोग सत्य पाल की हंसी उड़ा रहे थे .

और मैं भी उन लोगों के साथ-साथ अपने कयास लगा रही थी . यों तो मैं भी नई न थी …पर थी भी कितनी पुरानी …? ये मेरी तीसरी फिल्म थी जिस में मेरे तीन गीत शामिल किए गए थे ! आज पहले गीत – न…न…मैं ..न मानूंगा …!!, को फिल्माया जा रहा था . मुझे रात भर नीद ही न आई थी ! मैं तैयार हो कर रेजीडेंसी गार्डन सब से पहले पहुँच गई थी !

मेरे दिमाग में मेरा ही गाया गीत गूँज रहा था , ‘न…न…, न..न.. मैं न मानूंगा ! टेक के बाद मेरी आवाज़ आरंभ होती थी , ‘मैं …न …जानू ! मैं …न …जानूं !! 

तू है ….बादल …..मैं हूँ ….बदली !

तू है …पागल ….मैं हूँ …पगली !! 

न …न ..न ! मैं न मानूंगी !! 

मुझे अब फिल्म के डाइरेक्टर युसूफ क़ज़ा का स्वर सुनाई दे रहा था , ‘नहीं,नहीं शाहीन ! देखो नाज़ुक भावनाओं को आवाज़ में आने दो …इस तरह से गाओ …कि आवाज़ लोगों के दिलों को छू ले ! और फिर मैंने भी पलकें ढाल कर …पूरे मनोयोग से गीत को गाया था ! तालियाँ बज उठीं थीं ! युसूफ क़ज़ा भी प्रसन्न हो गए थे ! 

मैंने अब आँख उठा कर देखा था . अपार भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी ! शूटिंग के भी सारे सरंजाम पूरे हो चुके थे . लेकिन युसूफ क़ज़ा अभी भी अपनी दौड़-भाग में लगे थे . अचानक ही फिल्माए जाने वाले पहले ही गीत की धुन बजने लगी थी ! लोग बजते मधुर संगीत का मज़ा लेने लगे थे ! 

“सत्ते आ गया ….!!” किसी ने जोरों से कहा था . 

मैंने भी आँख उठा कर देखा था . एक सुदर्शन युवक -सत्य पाल …शेरो जैसी चाल-चलगत …से चला आ रहा था ! उस के आस-पास एक भीड़ भी चल कर आ रही थी ! 

“सुरभि …जी भी पहुँच गईं !” ये दूसरी सूचना थी . मैं फिर से चौंकी थी . 

एक भारी भीड़ से घिरी सुरभि जी लोकेशन की और आ रहीं थीं . मुझे सुरभि को देख कर तनिक निराशा हुई थी . मुझे तो वो बिलकुल ही बूढी लगीं थीं ! लेकिन लोग सुरभि जी के अभिनय का लोहा मानते थे ! और आज मैं भी देखना चाहती थी कि …सुरभि जी कैसे-कैसे कमाल करतीं थीं …?

एक छोटी तैयारी के बाद ही शूटिंग आरंभ हो गई थी ! 

पेड़ों के झुरमुट में छुपा सत्य पाल उछला था …और सुरभि के सामने आ …गाने लगा था . न …न …मैं न मानूंगा ….! ये प्रेमी अपनी प्रेमिका को चेतावनी दे रहा था …और प्रेमिका सुरभि जी ने भी अपने प्रेमी का चंचल नयनाभिराम से स्वागत कर …मधुर मुस्कान के साथ …गीत उठाया था , ‘मैं …न …जानूं , ….मैं न …जानूं …! जैसे धूप खिल गई हो -… जैसे  पुष्प …वर्षा हुई हो …ऐसा लगा था उन का अभिनय ! प्रसन्न हुए लोगों ने खूब ही तालियाँ बजाईं थीं ! मैं भी हैरान थी ! जो उन्होंने कर दिखाया था …वह तो मैं कभी सोच भी न पाती …/

ना जाने सुरभि जी की पकी हुई उम्र कहाँ खो गई थी ? ये तो अब एक चुस्त सोलह साल की युवती ही नज़र आ रहीं थीं ! उन के हाव-भाव और हिलना-डुलना तक …उस काल्पनिक प्रेमिका से मेल खा रहा था …जिसे हीरो- सत्य पाल प्रेम करता था !

टेक के बाद टेक चला था …और प्रेम गीत गाते-गाते सत्य पाल और सुरभि जी बे -दम हो गए थे ! बड़ी ही महनत का काम था ! लेकिन डाईरेक्टर युसूफ कज़ा का चहरा गुलाबों-सा खिला था ! 

जमां भीड़ ने भी खूब ही आनंद लूटा था ! 

शूटिंग के बाद ही लंच था . लेकिन सुरभि जी तो भाग खड़ी हुईं थीं ! उन्हें कहीं और भी जाना था ! जमा भीड़ प्यासी-सी रह गई थी ! अब सब ने मिल कर सत्य पाल को ही घेर लिया था ! 

“एक मिनिट, मैडम !” युसूफ क़ज़ा ने सुरभि जी को जाते-जाते रोका था . “मिलिए , शाहीन !” उन्होंने मेरा परिचय दिया था . “इन्हीं का गाया गीत है , न …न …मैं …न मानूंगा ….!” वो हँसे थे . 

“ओह, शाहीन ….!!” सुरभि जी ने अब मुझे अपनी बांहों में ले लिया था . “कोकिल कंठी हो …, मेरी अज़ीज़ !” उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया था और चली गईं थीं !!  

“मैं तो डरा हुआ था , सत्ते !” युसूफ कजा कह रहे थे . “मैं सोच रहा था – पता नहीं , तुम सुरभि जी को संभाल भी पाओगे  ….?” उन्होंने अब सत्य पाल को आँखों में देखा था . “पर, प्यारे ! मैं तो तुम्हारा मुरीद बन गया !” वो बेहद प्रसन्न थे . “रे ! क्या साली एक्टिंग ठोकी है , तुमने ….?” हंस रहे थे , यूसुफ क़ज़ा . “सुरभि जी भी तुम्हें सराह रहीं थीं !” वह बता रहे थे . “कह रहीं थीं – है तो नया …पर है होनहार !! कोई भी गलती नहीं करता !!”

“ये सब आप की ही अनुकम्पा है , युसूफ साहब !” मैंने सत्य पाल का बोल पहली बार सुना था . कैसा घरघराता पुरुष कंठ था …? और कैसी सुघड़ आवाज़ थी …? बोलने का अंदाज़ भी कितना प्यारा था ….? और …और हाँ , कैसे अनूठे उदगार थे , वे ….जो बहते ही जा रहे थे …! और फिर उस ने कहा था . ‘आप के तो इतने एहसान हैं , मुझ पर …..”

“अरे, छोड़ भी , यार !!” हँसे थे यूसुफ़ और सत्य पाल को बांहों में ले लिया था . “एक दूसरे के काम आना ही कामयाबी का पहला फ़ॉर्मूला है !” उन्होंने आदर्श वाक्य कहे थे . “आओ ! तुम्हें तुम्हारी आवाज़ से तो मिला दूं ….?” यूसुफ साहब अब मेरी और मुड़े थे . “ये हैं, शाहीन !” वो बोले थे . सत्य पाल ने मुझे मोहक निगाहों से निहारा था . “ये हैं – जो आप की आवाज़ के ज़रिए  …जादू बखेरती हैं !” उन्होंने केरी प्रशंशा की थी . “ये गीत भी इन्ही ने गाया है !!”

“सच्च ….?” सत्य पाल आश्चर्य से उछले थे . “बाई गोड ! कितनी मिठास है , आप की आवाज़ मैं ….? और ….हाँ,हाँ …! शा -ही -न ….जी ….” वह हंस रहा था . “मैं तो सोच ही रहा था कि ….कौन है ये ….जो इतना अच्छा गाता है …?” सत्य पाल अब मेरे करीबी आ गया था .

मैंने देखा था कि यूसुफ साहब हमें अकेला छोड़ जा चुके थे ! 

लेकिन सत्य पाल अब मुझे छोड़ना न चाह रहा था ! और मैं ….मैं भी कहाँ उसे छोड़ना चाह रही थी ….? मेरे तो मन की मुराद मेरे पास आ खड़ी हुई थी ! मेरा तो माँगा वरदान था …क्यों कि सत्य पाल अब मुझ से मेरे मांगे एकांत में बतिया रहा था ! मैंने तो कभी स्वप्न में भी न सोचा था कि ….सत्य पाल जैसा होनहार हीरो …कभी मुझे भी तबज्जो देगा ….और ….

“कहाँ से सीखा , ये हुनर ….?” सत्य पाल ने पूछा था . 

“प्रेसिडेंसी ….कालेज ….” मैं मर-मर कर ही कह पा रही थी . 

“क्या ….?” वह फिर से उछला था . “अरे ! मैं भी तो प्रेसिडेंसी …कालेज का हूँ ….!!” वह बताने लगा था . “तुम ….? अरे, नहीं ! तुम तो बहुत जूनियर हो , भई !!” उस ने अनुमान लगाया था . “कोई नहीं ! हैं तो ….दोनों ….”

“आप ने …सुरभि जी को दबा लिया …..” मैंने शर्माते हुए कहा था . 

“ओह, दैट …..?” सत्य पाल ने बड़ी ही अदाकारी से उत्तर दिया था . “कहो , शाहीन कि ….मैं बाल-बाल बच गया ….!” हँसते-हँसते सत्य पाल बता रहा था . “मेरे तो पसीने छूट रहे थे ! मैं जानता था कि …सुरभि …अभिनय-कला का एक नायाव कारनामा हैं ! लेकिन इज्जत बच गई, पार्टनर !” उस ने मुझे छू कर कहा था .

मेरे शारीर में एक करेंट-सा दौड़ा था ! मैं तो पागल होने को थी ! मैं तो अपनी ठहर गई आँखों से सत्य पाल को ही देखती रही थी !! 

“कहाँ रहती हो , लाहौर में ….?” उस का सीधा-सादा प्रश्न था . 

“म …मैं तो ….वहां ….नई सड़क के सामने ….उस नायाव इन्क्लेव में रहती हूँ !” मैं बता रही थी . “हमारा ….परिवार ….”

“अरे, भाई ! मैं भी तो तपोवन में रहता हूँ ! नायाव काम्प्लेक्स वहां से है ही कित्ती दूर ….?” सत्य पाल बताने लगा था . “कहीं तुम ….अशरफ मैनी ….?”

“उन्ही की   …बेटी तो हूँ ….?” मैंने लजाते हुए कहा था . 

अब सत्य पाल मुझे फिर से देख रहा था ! सर से पैर तक मुझे नाप-तौल रहा था ! कोई अनुमान लगा रहा था . कुछ जमा-जोड़ तो था – जो सत्य पाल के मन में दौड़-भाग कर रहा था !! 

भीड़ खाली हो चुकी थी . शूटिंग वाले लोग भी जा रहे थे . भीड़ भी तितर-वितर हो रही थी . हम दोनों को शायद हर किसी ने मिलने का ये नायाव मौका दे दिया था ! 

“आओ ! मैं घर छोड़ दूंगा ….!” सत्य पाल ने मुझे फिर से बांह से छुआ था . अब वह मुझे अपनी कार की और ले चला था . मैंने भी कोई प्रतिवाद न किया था . मेरा मन तो बल्लियों कूद रहा था ! मैं तो चाहती थी कि ….ये पल ही ठहर जाय …मैं वक्त के पंख काट दूं ….हवा को अपने आँचल में रोक लूं …और सत्य पाल को मैं ……..

कार में बैठते-बैठते ….मेरी निगाह दौड़ी थी ….और मैंने चचा जान ….अलीम को देख लिया था ! वह छुप कर हम दोनों को ही घूर रहे थे ! उन्हें देखते ही मेरा तो कलेजा ही मूं को आ गया था ! लेकिन सत्य पाल को जैसे कुछ लगा ही न था ….! उस ने कार स्टार्ट की थी और हम भाग लिए थे ! 

लेकिन , मित्रो ! उस दिन ही मेरा इतिहास लिखा गया था …..!!! 

………………………

क्रमशः –

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !! 

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