घसीटा

यों मुझे कुछ आता-जाता नहीं ! फिर भी …कुछ लिखता रहता हूँ . समझ है ….क्या पता कब पार पा जाए !!

काम में नहीं , नाम में शक्ति -श्रोत है , श्रीमान !

मानेंगे क्यों नहीं, आप …? नाम देखिए  …कितने भारी भरकम हैं …..और उन का असर भी मह्सुसिए …कि ….मात्र नाम से ही हवा मुड जाती है …..पहाड़ मुंह छुपा लेते हैं …..और आताल-पाताल एक हो जाता है . नाम के साथ ,,जब नारे गूंजते हैं …..तो वक्त ठहर जाता है ….और सल्तनतें पलट जाती हैं !!

मात्र नाम लेने से ही भव-बंधन कट जाते हैं, यह तो आप भी जानते हैं.

“मैं …..मेरा ….नाम ….तो ….कोई लेकर ही राज़ी नहीं है ! न जाने किस झोंक में मेरा नाम घसीटा रख दिया …और …अब ….घसीटा के साथ – फजीता …..”

“नुस्खा बताते हैं. थोडा सब्र से काम लें …! सब संकट दूर हो जाएँगे . आप भी मान जाएंगे कि ….फार्मूला कारगर है …आजमाया हुआ है ….चल रहा है ….बिक भी रहा है !”

“जल्दी बताइए , भाई साब ! मैं ….घसीटा , घिसट -घिसट कर आधा हो गया हूँ….! कोई …मुझे …काम …?”

“पहले बताओ …कि करना क्या चाहते हो …? अगर व्यापार करना चाहते हो तो ….तुरंत अपने नाम को ‘घसीटा पीरामल सुजामल जम्खानी’ घोषित कर दो. अब देखना रंग ! प्यारे, मात्र नाम ही …तुम्हें इंटरनेशनल बना देगा !”

“मैं …मैं …तो …..जी  ….”

“फ़िल्मी हीरो …..बनोगे …..? तो लो !! ‘घसीटा मुकुलानी …कपूर !” हो गया न बेडा पार !”

“कपूर ….? पर मैं तो ….?”

“छोडो, यार ! ‘कपूर’ लिखने के बाद तो ….किसी टैलेंट की ज़रुरत है ही नहीं. जैसे ही लोग जानेगे कि तुम ‘कपूर’ हो ……’घसीट’ स्वयं ही गायब हो जाएगा . देखना ….फिर आप ….’कपूर साब’ रातों रात …सितारों की गोद में रह रहे होंगे ….और सुंदर से सुंदर हिरोइन आप के आस-पास मंडरा रही होंगी ….!”

“भाई , मुझे तो डर लगता है ….कि ….”

“तो फिर छोडो ! सीधे राजनीति में घुसो ! और अब घसीटा के साथ जोड़ दो …..’घसीटा खानदानी पुरविया गाँधी’ ! हो गया धमाल !! पत्रकार तो इस नाम को ….आइसक्रीम की तरह चाट जाएँगे …और मोटे-मोटे हैडिंग देकर तुम्हें स्वयं ही महान बना देंगे . तुम्हारी जन्म-पत्री स्वयं ही तैयार कर देंगे . कोई पूछेगा तक नहीं ….कि तुम …’घसीट’ हो ….किसी गाँव के हो ….तुम्हारा गोट-श्रोत कुछ है भी या नहीं ….!!

“लेकिन मैं …कुर्सी पर बैठ कर तो ….?”

“कुछ करना धोड़ा होता है, भाई ! करने वाले …काम से लगे होते हैं. तुम्हें तो बस …..’खानदानी पुरविया गाँधी’ ही बने रहना होगा ….!”

“लोग ….?”

“पागल है, लोग …..तो ! नाम के पीछे ….आँख बंद कर चलते हैं …..! खाई हो ….खड्ड हो ….आग हो ….पानी हो ….चल पड़े तो चल पड़े ….!!”

और भाई , घसीटा …..तुम्हें जो समझ आए , करो ! मुझे तो कुछ आता-जाता नहीं …..

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