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Paap Ki Paribhasha

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कहानी लेखन कि दृष्टि से ओडिया साहित्य अत्यंत स्तरीय एवं उत्कृष्ट है | कहानीकार मनोज दास उत्कल भूमि के ही नहीं विश्व के कहानीकारों में अपना अन्यतम स्थान रखते हैं | उन्होंने अपनी कहानियों में उत्कालीय मानव की अंतस चेतना को उजागर करने में जिस संवेदनात्मक रसात्मकता और बौद्धिकता का परिचय दिया है वह अद्भुद एवम अभूतपूर्व है |

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Description

कहानी लेखन कि दृष्टि से ओडिया साहित्य अत्यंत स्तरीय एवं उत्कृष्ट है | कहानीकार मनोज दास उत्कल भूमि के ही नहीं विश्व के कहानीकारों में अपना अन्यतम स्थान रखते हैं | उन्होंने अपनी कहानियों में उत्कालीय मानव की अंतस चेतना को उजागर करने में जिस संवेदनात्मक रसात्मकता और बौद्धिकता का परिचय दिया है वह अद्भुद एवम अभूतपूर्व है |

अपने शोध कार्य के दौरान जब मैने ओडिया कहानियों को अत्यंत करीब से पहचानने की कोशिश की तो मेरा मन यह जानकार आह्लादित हो उठा की भारतीय वांग्मय में आधुनिक कहानी को जब्म देने का श्रेय ओडिया कथा सम्राट फ़क़ीर मोहन सेनापति को है | उनकी ‘लच्मनिया’ कहानी सन १८६८ में ‘बोधदायिनी’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी | इसको उपलब्धता के आभाव में ‘उत्कल साहित्य’ के अक्तूबर, १८९८ में प्रकाशित उनकी दूसरी कहानी ‘रेवती’ ओडिया साहित्य कि प्रथम कहानी के रूप में सर्वमान्य है | ‘रेवती’ कहानी में नारी संवेदना, शिक्षा और शोषण कि जो बात उस समय उठाई गई थी, समय परिवर्तन के इतने वर्षो बाद जब मैने दीप्ती पटनायक की कहानियां पढ़ी तो नारी संवेदना के लगभग वाही परिदृश्य दिखाई पड़े | वस्तुतः डॉ. दीप्ती पटनायक कि कहानियां उत्कालिया समाज में नारी चेतना की जो स्तिथियाँ हैं उन्हें उजागर करने में अपनी पूरी प्रतिबधता का परिचय देती हैं | सामाजिक बोध के अंतर्गत पारिवारिक सम्बन्ध, वैवाहिक दयित्बोध, विधवा विवाह, अनमेल वैवाहिक सम्बन्ध, नारी यातना, नारी शोषण, योन शोषण, नारी के प्रति व्यक्ति व्यव्हार, भ्रष्ट्राचार, महानगरीय जीवन कि विसंगतियां, विद्रुपतायें आदि अनेक आयाम अंतर्निहित हैं | डॉ. पटनायक कि कहानियों में प्राय: इन सभी संवेदनात्मक स्तितियों का मार्मिक चित्रण हुआ है | चाहे रेल में सफ़र कर रहे यात्रियों कि निसंगता हो अथवा घर में काम करने वाली नौकरानी कि पारिवारिक पीडा, चाहे एशो आराम कि चकाचोंध में जीवन जीने वाली नारी का एकाकीपन हो अथवा भरेपूरे परिवार के होते हुए जीवन कि संध्या में असुरक्षा का भाव, चाहे इर्ष्या एवं क्रोध के कारण कष्ट सहने वाली ‘देवी’ हो अथवा पारिवारिक जदोजहद जीने वाली ‘सुनयना’ चाहे अपने जिंदगी में किसी नटखट बच्चे कि मीठी-मीठी बाते सुनने कि ललक रखने वाली ‘सुनीति’ हो अथवा पूरी जिंदगी दूसरों की सेवा में समर्पित करने वाली ‘धीरा मौसी’, चाहे ‘सारा’ के यौन शोषण कि मर्मान्तक पीड़ा हो अथवा ‘मल्लिका’ के पाप की नै परिभाषा, लेखिका अपनी आंतरिक संवेदना से कथा-चरित्र को इस कदर मार्मिक बना देती है कि पाठक भावना कि लहरों में बहता चला जाता है | भाषा शैली, अभिव्यक्ति कौशल, चरित्र-चित्रण एवं भाव-सम्प्रेषण की दृष्टि से डॉ. दीप्ती पटनायक की कहानियां न केवल दिल को चुटी हैं वरन हृदय को मथकर रख देती हैं |

  • डॉ. मधुसुदन साहा

Additional information

ISBN

978-81-7054-734-1

Author

Written by : Dr. Dipti Patnayak
Translation : Dr. Madhusudan Saha

Publisher

Classical Publishing Company

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