“मैनी-मैनी हैप्पी रिटर्न्स ऑफ द डे।” लोकेन्द्र ने बैठक में अंदर आते ही कहा था।
लोकेंद्र, रानी और रंजीत की शादी की सालगिरह पर फूलों का महकता गुलदस्ता और लाल डिब्बे में बंद कफ लिंक्स ले कर आया था। रानी ने साभार फूलों के गुलदस्ते को स्वीकारा। सेंट की खुशबू में सराबोर रानी फूलों के गुलदस्ते सी खिल उठी।
लोकेन्द्र ने बैठक में नजरें घुमाईं। रानी द्वारा की गई पुष्प सज्जा को कई पलों तक सराहा। अंदर फैली सबड्यूड लाइट्स की रोशनी में लोकंन्द्र को अपना रंग किसी नशे में डूबता, बदलता लगा।
रंजीत ने एक अति औपचारिक ‘हाय’ से उसका स्वागत किया।
पाश्चात्य संगीत की एक मन को गुदगुदाती संगीत लहरी बैठक में प्रवहमान थी। दीवारों पर रानी द्वारा खरीदी चुनिंदा पेंटिंग्स झूल रही थीं। बैठक में कुछ वस्तुओं को करीने से मात्र नुमाइश की गरज से सजा दिया गया था। ज्यादातर वस्तुएं विदेशी थीं। “विश यू हैप्पी मैरिड लाइफ।” धरम अपनी पत्नी के साथ ठीक समय पर पहुंच गया।
रानी और रंजीत ने दोनों को आदर से अंदर बुलाया। धरम की पत्नी ने रानी को लाई हुई गिफ्ट थमा दी। “भाई, इसकी क्या जरूरत थी।” रानी ने गिफ्ट लेते हुए कहा। एक के बाद दूसरे निमंत्रित मेहमानों का तांता बंध गया। रानी ने मोहक मुसकान बिखेर कर सब को अंदर बुलाया।
“हैप्पी .. जी .. हैप्पी-हैप्पी ..” अजीत की पत्नी ने अंग्रेजी में कुछ कहने का प्रयास किया। इससे पहले कि पत्नी हास्यास्पद लगे, अजीत अपनी मंजी स्टाइल में बोल पड़ा था, “एंड गॉड मे ब्लैस यू विद ट्विन्स ..”
अंदर बाहर खड़े सभी मेहमान ठहाका मार कर हंस पड़े थे। अजीत ऐसी उम्दा चुहलों के लिए बदनाम था। रानी और रंजीत की शादी को पांच साल हो गए थे। अत: उसने जुड़वां बच्चे होने की कामना व्यक्त की थी।
जमा हुए आगंतुकों में इसी बात को ले कर चुहल चल पड़ी, “अजी! आज कल तो ट्विन्स होने का चलन है। धड़ाधड़ हो रहे हैं। मैडीकल साइंस इतनी एडवांस हो चुकी है कि कोई खौफ खतरा ही नहीं।”
“बच्चे होने की क्या जल्दी है?” रानी सफाई दे रही थी। “मुझे तो सच्ची, बहुत डर लगता है .. कित्ती बंध जाती है, औरत।”
“होने के बाद भी बच्चे को जल्दी ही अलग कर देना चाहिए।” निशा ने बहस में भाग लेते हुए कहा, “नहीं तो बहुत अटैच हो जाते हैं बच्चे। उसके बाद तो ..”
“नो आउटिंग!” रानी ने सहमत होते हुए नुकसान गिनाए, “यहां तो अभी से ये हाल है कि ..”
रानी ने आंखें तरेर कर रंजीत को घूरा। वह बातों में व्यस्त था। “लाख कहा – किरकिट देखनी है। टिकिट मंगवा लो। लेकिन नहीं। कहते हैं – टी वी पर देख लो। मुझे फुरसत नहीं ऐसे वाहियात गेम के लिए ..”
“वाहियात ..?” रीता ने घोर अपवाद की मुद्रा में आते हुए कहा, “हमने देखा है। बाई गॉड। इट्स सुपर्ब। मेरे हबी को खेलने का भी शौक है। कपिल देव तो इनका जूनियर रहा है। यूनिवर्सिटी में ये टीम कैप्टेन थे।” रीता की आंखों से आह्लाद टपक रहा था।
सभी आगंतुक गोल, छोटे-छोटे दायरों में बंट कर बातें करने लगे थे। ज्यादातर अनब्याहे युवा, महिलाओं से बातें करने में व्यस्त थे। पतियों का एक निर्वासित काफिला अलग से अपनी चर्चा का स्वाद चख रहा था। किसके रिलेशन किसके साथ हैं – इस पर टीका टिप्पणी के साथ एक लंबा वृत्तांत छिड़ा हुआ था।
महिलाएं बातों के चलते सिलसिले से ही इन पतियों को देख, आह सी भरतीं और निगाहें फेर लेतीं।
“बेचारे मर्द।” उन निगाहों का मतलब होता था।
रानी वेटर के साथ जा-जा कर आगंतुकों के गिलासों की निगरानी कर रही थी। “आप क्या लेंगे?” उसका आम प्रश्न था। प्रश्न के साथ-साथ वो स्वयं भी मुसकान के झरते फूलों सी फर्श पर बिछ जाती।
“जी ..! मैं तो सॉफ्ट लूंगा। पीता नहीं हूँ।”
एक सज्जन रानी के बार-बार के किए आग्रह को ठुकराए जा रहे थे।
“मैं नहीं पीता इज नो आंसर।” रानी ने झंझट करते हुए कहा। “आज के दिन तो मैं देवताओं को भी पीने पर राजी कर लेती हूँ। हाहाहा ..”
चियर्स ..! चियर्स!! एक ध्वनि के साथ बैठक मधुर संगीत से लबालब भर गई। आगंतुक फिर से दायरों में व्यवस्थित हो गए। रंजीत वेटर के साथ स्नैक्स दिखाने लगा था। भुने हुए काजुओं की सजी प्लेट पर ललकती निगाहें जमीं थीं।
“तेरी साड़ी बहुत सुंदर लग रही है, नलिनी।” निशा ने कहा।
“इंपोर्टेड है।” नलिनी ने गर्व से कहा। “जैप्नीज पीस है। मेरे भाई नेवी में हैं। लाते रहते हैं।”
“भाई, इस बात का तो मुझे भी आराम हैं।” निशा ने स्वीकार में सर हिलाया, “मेरी एक आंटी यूके में हैं। एक अंकल कैनेडा में सैटल्ड हैं।” निशा ने सामने फैली प्लेट से एक काजू को इस प्रकार उठाया मानो कोई गौरया अपनी पैनी चोंच से कीड़े को उठा ले। “हमें वैस्पा स्कूटर नहीं मिल रहा था। लेकिन अंकल ने कैनेडा से जैसे ही फॉरन एक्सचेंज का पैसा भेजा .. कि हमें स्कूटर मिल गया – विदिन ए मंथ।”
“इंडियन गुड्स आर यूजलैस।” नलिनी ने मुंह बिचकाते हुए कहा।
“आप का कोई फॉरन में सैटल्ड नहीं, मिसिज अजीत?” निशा ने गुमसुम कहीं खोई मिसिज अजीत को बातों के अखाड़े में खींचा।
“नहीं जी। हम तो एक दम देसी ..” मिसिज अजीत कुछ कहते-कहते रुक गईं।
“चचच! बड़ा मुश्किल होता है, जी।” नलिनी ने मिसिज अजीत की लघुता का प्रचार सा किया।
संगीत लहरी कुछ उठ कर बोलने लगी थी। रानी आगंतुकों के खाली हुए गिलासों को फिर से भरने के प्रयास में भाग सी रही थी। रंजीत चारों ओर निगरानी की नजर पसारे खड़ा था।
“मेरा जो स्टीरियो है ..” धरम ने निशा को संबोधित करके कहा। “इंपोर्टिड है। साले साहब ने गिफ्ट दी थी।”
महिलाओं ने धरम को चाहत भरी निगाहों से घूरा। धरम का चेहरा एक असात्विक गर्व में डूबा लगा।
“मेरी सिस्टर आई थी।” नारंग ने कहना आरंभ किया। “अभी, रीसेंटली।” उसने सुनने वालों को समय का परिचय दिया। “कहने लगी – भाई, हाथ के बुने स्वैटर चाहिए। एक के बदले तीन मशीन के बने कार्डीगन दे गई। हाथ की बनी चीजों की तो वहां क्रेज है। दे आर फैडप ऑफ दी मैकेनिकल लाइफ।”
“क्रेज चाहे किसी की भी हो – जिंदगी को मायने देती है।” एक नारा सा गूंजा। लोगों ने सहमती-असहमति सिर्फ निगाहों से जाहिर की और भिन्न-भिन्न दिशाओं में चल पड़े। नए समूह बने। विषय बदले। म्यूजिक बदली। स्नैक्स भी बदल कर आने लगे। इन छोटे-छोटे परिवर्तनों ने उगी एक रसता को फिर से सरसता प्रदान की।
मदिरा से गरमाते शरीरों के साथ-साथ आगंतुकों के मन भी आजाद पंछी से डोलने लगे। मुक्त हास्य मुखरित होने लगा। रंजीत ने मधुर संगीत को बदल कर फास्ट म्यूजिक लगाया।
“जैंटलमैन, ऑन द फ्लोर प्लीज।” मुकदमे की पुकार जैसी आवाज पड़ी। लोगों ने एक दूसरे को देखा। आग्रह अब भी डिसूजा की आंखों में झलक रहा था। हर निगाह ने मेजबानों के व्यस्त जोड़े को देखा। “ए मैग्नैनीमस कपल।” सभी ने जैसे एक मत हो कर मूक अभिव्यंजना में कहा। फिर एक हलचल का सूत्रपात हुआ। जैंटलमैन जोड़े बनाने की गरज से लेडीज के आगे आग्रह में झुके। स्वीकार और अस्वीकार की मुद्राओं में सिर हिले। कुछ मर्द और महिलाएं मैदान छोड़ पीछे लगे साफे पर जा बैठे।
“लैट्स डांस।” रानी ने रंजीत के कानों में कहा। “वर्ना लोगों को शक होगा कि हम में अनबन है। जो भी है – पर्सनल है। वी विल सॉर्ट इट आउट ..।”
लगा, रंजीत पहली बार आग्रह करती रानी को देख रहा हो। नाभी दर्शना साड़ी को रानी ने बहुत नीचा बांधा हुआ था। नीचे गले के ब्लाउज से गोलाइयां झांक रही थीं। रानी अखिल विश्व की नायिका की नाईं रंजीत के सामने खड़ी थी। “तुम्हें पार्टी के लिए सजना खूब आता है।” रंजीत ने प्रशंसक निगाहों से रानी को घूरते हुए कहा।
“मस्का मारना कोई तुमसे सीखे।” रानी ने आरक्त हो आए अपने चेहरे को संभाला।
डांसिंग फ्लोर पर पांच छह जोड़े नृत्य की जुडवां भंगिमाओं में थिरकने लगे थे। सोफे पर बैठे सज्जन बार-बार रंजीत और रानी के जोड़े को देख आंखों से कहते लग रहे थे – कितने खुश है – ये दोनों .. आइडियल लव ..।
संगीत थमा। जैंटलमैन लेडीज को छोड़ने सोफों तक ले गए। दम लेने, सुस्ताने के लिए सभी कोई सहारा खोज बैठ गए। संगीत बहुत हल्का हो गया। लोग बतियाने लगे। “कितनी दिक्कत है, जी। एडमीशन मिलता ही नहीं। किसी भी इंग्लिश मीडियम स्कूल में जाओ, जगह ही नहीं। मेरा रिंकू तो एक साल लूज कर गया है। इनका तो ट्रांस्फर ही ऐसे मौकों पर होता है कि .. कोई लेता ही नहीं। और इंग्लिश मीडियम स्कूल हैं भी कित्ते?” अंजू आशा से बतिया रही थी।
“सुना है, म्यूनिसिपैलिटी स्कूल्स आर नॉट बैड।” आशा ने अपना मत व्यक्त किया।
“अजी, छोड़िए। आया और नौकरों के बच्चे पढ़ते हैं वहां। बच्चों को भेजो, गलत आदत पिक अप कर लेते हैं। नाक साफ नहीं करते। मुंह धुलवाते वक्त रोते हैं। दुनिया भर की जूं चढ़ा लाते हैं। अंजू के शब्दों से तिरस्कार टपक रहा था।
“अरे, भाई। इन स्कूलों में भी इंग्लिश सैक्शन अलग होती है, आशा ने अपनी जानकारी दर्शाई। “मेरे हस्बैंड तो कह रहे थे कि इन स्कूलों का सिलेबस भी बहुत अच्छा है।”
“बहका रहे होंगे तुझे। हाहाहा .. कम पढ़ी लिखी पत्नी का मियां इसी तरह से उल्लू बनाता है।” अंजू ने हंसी के माध्यम से आशा की आंखों में तैर आए, निरीह भाव पढ़े।
“लेडीज एंड जैंटलमैन, अभी एक पार्टी गेम होगा।” डिसूजा ने बैठक के बीचों बीच खड़े हो कर कहा, “खेल का नाम है – स्टूल ऑफ रिपेंटेंस। यानि की पश्चाताप की कुर्सी।” उसने बैठक के दूसरे सिरे पर धरी कुर्सी की ओर इशारा किया, “मेरे पास सभी के नामों की ये पर्चियां हैं। इनमें से कोई भी एक पर्ची निकाली जाएगी। जिसका भी नाम निकलेगा उसी को इस कुर्सी पर जा कर बैठना होगा। डिसूजा ने सभी लोगों को ठहर कर घूरा। एक चालाक हंसी डिसूजा का चेहरा चूमे थी, “मैं स्वयं निर्वाचित जज हूंगा। पकड़े अभियुक्त को बाहर जाने की सजा दूंगा। अभियुक्त की अनुपस्थिति में, मैं आप लोगों को पेंसिल और पर्चियां दूंगा। आप उस पर्ची पर अभियुक्त के खिलाफ कोई भी माकूल एलीगेशन लिख कर मुझे देंगे। याद रहे – इट मस्ट बी एन ऐलीगेशन। लाइक ही इज ए ड्रंकर्ड .. हमें किसी की अच्छाइयों से कोई लेना-देना नहीं।” डिसूजा ने फिर अपनी निगाह घुमाई। “पर्ची के नीचे अपना नाम लिखना न भूलें।” उसने एक चेतावनी दे कर, डिब्बे में पड़ी पर्चियों को घूरा। “अभियुक्त को अंदर कोर्ट में बुलाया जाएगा। उसे उस कुर्सी पर बैठने को विवश किया जाएगा और मैं एक के बाद दूसरे एलीगेशन सुनाऊंगा। अभियुक्त को ऐलीगेशन लगाने वाले का नाम बताना होगा। अगर उसने सही नाम बताया तो ..” डिसूजा फिर रुका। उसने वहां बैठे सभी लोगों को अर्थ भरी निगाहों से घूरा। “पकड़े जाने वाले सज्जन को एक चिट खींचनी होगी।” डिसूजा ने दूसरे डिब्बे में बंद कुछ चिटों की ओर देखा। “और जो इन चिटों में लिखा है उसे वही कर दिखाना होगा।” उसने चिटों का डिब्बा बंद कर पास के टेबुल पर रख दिया।
डिसूजा ने पर्चियों का ढेर अनीता के सामने रक्खा। अनीता ने एक पर्ची उठा कर डिसूजा को थमा दी। डिसूजा ने पर्ची खोली। सहमी-सहमी नजरें निरीह बचावों के कवच ओढ़े बदन चुराने के विफल प्रयत्न कर रही थीं। हर कोई डिसूजा की निगाहों के पार दुबक जाना चाहता था। “रंजीत” डिसूजा ने पर्ची में लिखा नाम पुकारा। हंसी का एक ठहाका हॉल में गूंज गया। रंजीत को छोड़ अन्य सभी चेहरे फूलों से खिल गए।
डिसूजा के मात्र इशारे पर ही रंजीत बाहर चला गया। बैठक की भीड़ को पलांश के लिए चुप्पी चाटती रही। सभी रंजीत के खिलाफ प्राप्त पर्चियों पर माकूल ऐलीगेशन लिखने में किसी झिझक से लड़ते रहे। डिसूजा पर्चियां समेटता रहा – एक के बाद एक।
रंजीत बाहर के अंधेरे के साथ मिल कर स्याह पड़ गया। अंदर अनगिनत ऐलीगेशन लगाती उस भीड़ से उसका विश्वास उठ गया। उसने डिसूजा की अंदर बुलाती आवाज सुनी तो बमक गया और भारी कदमों से चल कर कुर्सी पर बैठ गया।
“ही इज ए .. प्रीटेंडर” डिसूजा ने उच्च स्वर में पहले ऐलीगेशन को हवा में उछाला। “हाहाहा .. प्रीटेंडर .. यानि कि .. जो है वह नहीं है, और जो नहीं है .. वह है।” डिसूजा असमंजस में सर हिला रहा था।
रंजीत की निगाहें चोर तलाश रही थीं। तमाम लोगों के चेहरों पर हंसी के चिलमन टंगे थे। रंजीत ने पुकारा, “अजीत।” भीड़ हंस पड़ी। डिसूजा ने दूसरी पर्ची संभाली। “ही इज ए सैडिस्ट।” दूसरे ऐलीगेशन का खंजर रंजीत पर नंगा आन गिरा। “हाहाहा .. मिस्टर सैडिस्ट .. ओ मिस्टर सैडिस्ट।”
उसने मदद मांगती निगाहों से भीड़ की ओर देखा। हाहा हूहू के शोर से हॉल भर गया। रंजीत ने चोर पकड़ने की कोशिश की। उसने तुरंत कहा, “नारंग ..” लेकिन डिसूजा ने अगली पर्ची पकड़, फौरन पढ़ दिया – “घटिया ..” डिसूजा ने कह कर रंजीत को घूरा। “हां, तो मिस्टर घटिया – आप का शक?”
“रानी ..!” रंजीत कुर्सी से उछल पड़ा।
रानी का चेहरा विद्रूप हो आया था। उसने पकड़े जाने की स्वीकृति निगाहें झुका कर दी, उठ कर चिट खींची। लिखा था – “गाना गाओ” कोने में बैठा लोकेंद्र वहीं से चिल्लाया – “रूना लैला का वही गाना मैडम, जो उस दिन गाया था।”
रानी गाती रही और लोग गिलास खाली करते रहे।
ऑन द फ्लोर प्लीज, के दोहराए आग्रह पर सभी इच्छुक जोड़े फिर से नाचने लगे थे। संगीत बहुत तेज हो गया था। नर्तकों के पैर भी फुर्ती से थिरक रहे थे। धरम निशा के साथ नाच रहा था। इन दोनों का नाचने का जोड़ा बहुत चर्चित बन चुका था। कई बार नृत्य की छोटी-मोटी प्रतियोगिताओं में दोनों इनाम भी पा चुके थे।
“मुझे तो चाइनीज खाना बेहद पसंद है।” निशा नाचते-नाचते धरम के कानों में फुसफुसा रही थी।
“न मालूम आज रानी क्या खिलाएगी? कहीं छोले भटूरे न बना दिए हों। वैसे उसके मियां को तो मूंग की दाल ही पसंद है।”
“मसूर की नहीं?” धरम ने व्यंग बांण चलाया। “हाहाहा ..!” वह हंसा, “वाकई यार, कहां रानी और कहां ..? ऐनी वे वी आर दी गैस्ट्स। वैसे मुझे तो इंग्लिश खाना बहुत ही ज्यादा पसंद है।” धरम ने निशा की आंखों में चाह कर देखा। “हमारे इंडियन खाने में मोटापे के अवगुण हैं।” उसने अपने स्वस्थ शरीर को निहारा। “तभी तो मथुरा के चौबे और आगरे के लाले ..”
“मेरे हबी को भी .. जब देखो आलू वाले परांठे। इज हिज क्रेजी। मैं तो फ्राइड चीजों के नाम से ही दहलती हूँ।” निशा ने धरम के बलिष्ट शरीर का सामीप्य महसूसा। “ना बाबा। फिगर का सत्यानाश हो जाता है।” निशा ने रसीले होठों से मोहक अभिनय किया।
“यू गॉट ए वंडरफुल फिगर।” धरम की आंखों में प्रशंसा के भाव तैर आए थे। “तुम्हारे ये वाइटल स्टेटिस्टिक्स तो हंगामा मचाने वाले हैं।”
“थैंक यू ..” निशा ने लाज के पर्दे नीचे गिरा दिए थे।
संगीत थमा। जैंटलमैन लेडीज को सोफों तक छोड़ने आए। आभार जता कर लौटे और स्थान पा कर बैठ गए। डिसूजा ने पर्चियों का पात्र रंजीत के सामने पसारा। रंजीत ने एक पर्ची निकाली नाम पढ़ा – ‘धरम’। हू हल्ला मचा। “लैट हिम फेस द कोर्ट।” का नारा सा गूंजने लगा। धरम बाहर चला गया। एक षडयंत्र जैसा धरम को अपने खिलाफ उठता लगा। डिसूजा ने पर्ची समेट धरम को कुर्सी पर बैठने को कहा।
“मस्केबाज!” डिसूजा ने पहला ऐलीगेशन पढ़ा।
“तभी तो कहें .. कि .. ये प्रमोशन के बाद प्रमोशन और एक के बाद दूसरी अच्छी पोस्टिंग धरम को ही क्यों मिलती है? क्यों मियां, बताओगे ..?”
“अजीत।” धरम ने तड़ाक से नाम लिया। अजीत हंसता रहा।
“लोग ये भी कहते हैं कि तुम हनुमान हो?” डिसूजा ने व्यंगात्मक स्वर में पूछा। “हनुमान .. भाई, खूब पछाड़ा है किसी ने ..” हाहाहा – लोग जोर-जोर से छींटा कसी करने लगे थे।
“रंजीत।” धरम ने फिर से चोर पकड़ने की कोशिश की। रंजीत हंसता रहा।
“ही मैंन!” डिसूजा ने तीसरी पर्ची पढ़, कोर्ट में बैठे तमाम लोगों को घूरा, “लोगों का मत है कि तुम एक खतरनाक इमेज बना चुके हो .., ही मैन की। हो सकता है भद्र लोग तुम्हारा आना जाना अपने घरों में बर्दाश्त न करें।”
“निशा!” धरम ने हर्षातिरेक से पुकारा।
निशा पकड़ी गई। उसने चिट खींची। मोनो एक्टिंग के लिए लिखा था। कैस्टो मुखर्जी की नकल कर उसने जान छुड़ाई।
म्यूजिक फिर से बुलंदी पर आ गया। मात्र इशारा पा जोड़े नृत्य करने लगे। मौज मस्ती का आलम यौवन की तरह निखार पर आ गया। जो लोग सोफों पर पीछे बैठे थे, उनके चेहरे किसी दयनीय लघुता में डूबे थे।
“तुम्हारा नाम काजल होना चाहिए था।” नारंग ने नलिनी के साथ नाचते-नाचते उसका नया नाम सुनाया।
“क्यों ..?” नलिनी ने होठों पर वैजयंती सी मुस्कान संभाले हुए पूछा।
“इसलिए कि .. तुम्हारे काजल लगाने का स्टाइल .. अद्वितीय है।” नारंग ने नलिनी की सराहना की।
“थैंक्स ..!” नलिनी लाजवंती की बेल सी सिमट गई।
“लेकिन एक बात कहूँ ..” नारंग ने प्रसंग को जारी रक्खा, “हिन्दुस्तान में अस्सी फीसदी ब्लांइड केसिज इस काजल की वजह से हैं। बच्चे की कच्ची आंखों में सूखा काजल ठोक देना .. सोचो ..!”
“हिन्दुस्तानी औरतें चाइल्ड केयर के मामले में निरी बेवकूफ हैं।” नलिनी ने सहमत होते हुए कहा।
“मां बनने से पहले उन्हें मतलब तक पता नहीं होता .. नो ऐजूकेशन .. नो बैकग्राउंड .. फिर क्या उम्मीद की जा सकती है?”
संगीत से मस्ती पा दीवारे हंसने लगी थीं। हंसी के उन्माद को न सह एक पेंटिंग गिरी और विधवा के सिंदूर की तरह मिट गई। दीवार के नंगे हुए जिस्म से प्रश्न पैदा हुए – “क्या शिवाजी की मां बेवकूफ थी? रणजीत सिंह .. राणा प्रताप .. अकबर और सुभाष, क्या सब के सब इंपोर्टेड थे?”
“यार, कोई हिन्दुस्तानी म्यूजिक का रिकॉर्ड है?” किसी कोने से मांग उठी।
“नहीं यार। ऐसी कौन सी धुन है, जिस पर डांस किया जा सके?” मांग का मुंह मुंद गया।
“क्या करूं ..? अफसर बनने से पहले ही शादी हो गई।” अजीत अनीता के साथ नाचते हुए कह रहा था। “मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा होता है। बच्चों का भविष्य है .. इसलिए .. वैसे पढ़ लिख जाएं तभी समझो। घर में वो माहौल ही नहीं बनता कि बच्चे पढ़ें लिखें। बेसिक तमीज तक ..”
“कोई स्मार्ट सी टीचर रख लो – जो दोनों काम चला दे।” अनीता ने सुझाव सामने रक्खा। “हाहाहा।” वह अलमस्त हंसी हंस रही थी। “मुझे देख लो। इनके यहां एक दिन नहीं रह सकती। गांव के हैं। वहां जाओ तो सही, साढ़े सात बजे पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है। नींद आती नहीं। बाहर निकलो तो भयानक लगता है। सांय-सांय सन्नाती हवा, भांय-भांय भौंकते कुत्ते .. और हुआं-हुंआं की हूकरी देते गीदड़। सच, लैटरीन तक बाहर अंधेरे में जाना पड़ता है।” अनीता उपहास से हंसी। “मैं तो देहली वापस लौटने पर ही लैटरीन ..”
रानी तन्मयता से लोकेन्द्र के साथ नाच रही थी। “घटिया का आरोप क्यों लगाया?” लोकेंद्र ने रानी से पूछा।
“रंजीत की चोइस इतनी घटिया है .. कि पूछो मत। जनम करम एक साड़ी खरीदी थी। मैंने तो आज तक पहनी नहीं है। वैसे तो मुझे पापा से, दीदी से इत्ता मिलता है कि ..” रानी ने रुक कर लोकेंद्र की आंखों में झांका, “झूठ नहीं बोल रही। शादी में स्टोव की पिन से लेकर .. टी वी और फ्रिज, कार तक दी है।” रानी मनोभाव व्यक्त करने में एक अजीब सी राहत महसूस रही थी। “मैंने तो अब साफ-साफ कह दिया है – अगर कुछ बन नहीं सकते तो – मुझे छोड़ो। आगे चलने दो भाई। दो बार पोस्टिंग अरेंज करा चुकी हूँ। लेकिन नो यूज। मैं तो कहती हूँ – जो अंग गला सड़ा हो, काट कर फेंक दो। क्यों जिंदगी बरबाद की, यार।” रानी के होंठ मुस्कानों से भरे पुलिनों से रमणीक हो उठे थे।
लोकेंद्र ने चारों ओर नजर घुमा कर इस तरह देखा, मानो पूछ रहा हो, “और भी कोई है, जो इन निषेधों से ऊपर उठा हो?” रानी मौन थी। लेकिन उस मौन में भी गजब का मुखारपन था। उसके नेत्र आनंद निर्झरों से काम्य हो उठे थे। वह सुन रही थी – लोकेंद्र की मंत्र पूत वाणी, देख रही थी – उसकी स्वर्णकांत पुष्ट देह और उन्नत ललाट। पूरे हॉल में अब अभिव्यक्ति शब्दहीन हो उठी थी।
“यू आर .. ग्रेट .. मैडम। आप का डांस तो ..” लोकेंद्र कह उठा था।
“रंजीत को तो आता ही नहीं। बहुत सिखाने की कोशिश की लेकिन .. उसे पता ही नहीं चलता कि कौन सा स्टेप कहां लेना होता है।”
संगीत अचानक ही थम गया। उठती आवाजें बत्तियों की तरह गुल हो गईं। सन्नाटा पलांश के लिए आराम सा करने लगा। रानी गिलासों को फिर से भरने की व्यस्तता से जूझने लगी। रंजीत ने स्नैक्स मंगवाए। डिसूजा ने फिर से अपना गेम चालू कर दिया। पर्ची लोकेंद्र ने उठाई। डिसूजा ने पुकारा, “रानी।” रानी का चेहरा पीला पड़ गया। बाहर जाते-जाते उसने रंजीत को घूरा था। डिसूजा ने चटाक पटाक पर्चियां इकट्ठी कीं और रानी को अंदर बुलाया। “मैडम, आप के खिलाफ पहला ऐलीगेशन है कि ..” डिसूजा पल भर रुका, “यू आर फ्रस्टेटिड।”
एक हाहा हूहू का शोर घरघराते कंठों से उठा और हॉल को दहला कर भर उठा।
“निशा ..!” रानी ने फॉरन ही चोर के गले में फांसी फिट करने को हाथ सा लंबा किया। निशा एक सच्ची नारी की भूमिका में हंसती ही रही।
“मैडम, किसी का अनुमान है .. यू आर ए फ्रॉड।” डिसूजा ने फिर से कहा।
“अनीता।” रानी ने स्थिति का मुकाबला सा किया। अनीता भी अविचल बैठी रही।
“एक और ऐलीगेशन ..” डिसूजा ने मंजा हुआ अभिनय कर संगीनियत दर्शाई। “सैक्स हंग्री।”
इन पलों में रानी का प्रतिबिंब किसी टूटे दर्पण से प्रतिबिंबित होता लगा था। “रंजीत।” रानी कुर्सी से उछल सी पड़ी थी।
सजा बतौर रंजीत ने चिट खींची। लिखा था – ‘अपनी पसंद का रिकॉर्ड बजाओ’!” रिकॉर्ड छांटने में रंजीत को बहुत सारी हिम्मत लगानी पड़ी। घुन के साथ बोल भी झरने लगे थे – ‘आई एम .. सिक एंड टायर्ड .. सिक एंड टायर्ड .. सिक एंड टायर्ड ..”
घुन के साथ-साथ नृत्य पगलाने की हद तक पहुंच रहा था। न जाने रंजीत को क्या हुआ, लपक कर संगीत को काट दिया। उसने एक छोटी खोज बीन के बाद एक और रिकॉर्ड लगाया। धुन बजने लगी – “गोरी को पल्लू लटके .. गोरी को पल्लू लटके .. जरा टेड़ो हो जा बालमा मेरो पल्लू लटके ..।”
रंजीत ने सोफों पर बैठे लोगों को भी खींच-खींच कर नाच गाने में शामिल कर लिया था। सब कूद-कूद कर .. उछल-उछल कर नाच रहे थे .. गा रहे थे ..
रानी ने तुरंत खाना लगवा दिया। चाइनीज खाना था। भूखा धरम प्लेट भर-भर कर खाए जा रहा था। जल्दी में चीली सॉस इतना पड़ गया था कि धरम की आंखों से आंसू चुचा रहे थे। सभी ने, ‘ही मैन’ को रोते देखा। भारतीयता की आंखों में आए उन आंसुओं को जैसे रंजीत सह नहीं सका। उसने रानी को घूरा।
“ये कुक, बदलू .. इतना ईडियट है कि ..” रानी ने कोसना काटना आरंभ किया, “खुद किचन में जा जाकर बताया है .. कई बार समझाया है, लेकिन .. खाना उसी तरह ..।”
“बदलू।” रंजीत ने पुकारा।
“जी साब।” बदलू हाजिर हुआ।
“दही-परांठा ..? बोलो, कित्ता समय ..?”
“पांच मिल्ट साब!” बदलू ने खिलते हुए कहा।
रंजीत तमाम आगंतुकों के साथ दही के डोंगे में पराठें बोर-बोर कर खा रहा था। दही पराठें खाते लोग, पल्लू लटके की धुन पर ठुमके मारते जा रहे थे।
सुबह के क्षितिज जैसी रागारुण आंखों में नींद करकराने लगी थी। लेकिन सभी आगंतुक किसी अव्यक्त भावना से भरे हुए थे। हर कोई सोच रहा था – “नहीं, नहीं नींद अब नहीं आनी चाहिए। नींद से उठने के बाद लोग फिर मुखौटे पहन लेंगे। दफ्तरों, बाजारों और सिनेमा घरों में फिर अजनबियों की तरह मिलेंगे।”

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड