“गुरु। वो तो फिर आ गया।” कल्लू शोर मचा रहा था। “पांच रुपये मांगेगा!” कल्लू का डर था। “कदम तो साला खाली जेब आता है घर से । और मेरे पास पैसे हैं नहीं।” कल्लू की मुसीबत थी। “लड़ाई होगी गुरु।” कल्लू ने अंजाम बताया था।

“बिठाओ उसे जा कर।” हंसते हुए राम लाल ने कह दिया था। “हारा हुआ है। थका मादा है।” वह अब कल्लू को घूर रहा था। “मैं चाय भेजता हूँ।” राम लाल ने वायदा किया था। “दोनों बैठ कर पीना वहीं। पूछना उसके मन का दुख।”

“गुरु ..”

“मूर्ख! वह आदमी हीरा है।”

कल्लू चला आया था। वह अभी भी खड़ा-खड़ा चिड़िया को निहार रहा था। चिड़िया अपनी झोंक में पिंजड़े के भीतर उछल कूद में लगी थी। उसे जगत के जंजाल से कुछ लेना देना न था। लेकिन वह सोच रहा था कि क्या यह चिड़िया सच में ही सच बताती है?

“आइए-आइए!” कल्लू ने लौट कर उसे पुकारा था। “बैठिए।” उसने उसे अपने साथ ही पक्के फर्श पर बिठाया था। “मिली नौकरी?” कल्लू ने उसे पूछ ही लिया था।

“कहां भाई!” वह टीस कर बोला था। “बेकार ही आया बंबई।” उसने उलाहना दिया था।

तभी दो कप चाय लेकर छोकरा हाजिर हो गया था।

“लीजिए चाय।” कल्लू ने उसे आमंत्रित किया था। “आप तो हीरा हैं हीरा।” कल्लू ने गुरु का कहा दोहराया था। “एक दिन चमकेंगे .. ऐसे कि दुनिया देख ..” अब कल्लू पल्ले की हांक रहा था।

“क्या भाई!” निराश था वह। “इतनी पढ़ाई की। सोचा था एम ए करने के बाद तो काम मिला धरा है।” उसकी आवाज डूबने लगी थी। “न जाने मां कैसी होगी? पैसे तो मैं ले आया था। अब बेचारी ..” वह रोने-रोने को था।

“फिकर न करें। गुरु सबके गम दूर कर देते हैं।” कल्लू ने उसे सहारा दिया था। “अब तो नहीं – शाम को ही मुलाकात होगी।” कल्लू ने वायदा किया था। “काम का टैम है न।” उसने मजबूरी भी बयान की थी।

तभी एक ग्राहक आ टपका था। कल्लू झपटा था। सौदा तय किया था। चिड़िया ने कार्ड फेंका था। उसने पढ़ा था। उसका चेहरा गुलाब सा खिल गया था। पांच रुपये निकाल कर दिए थे तो कल्लू गुर्राया था।

“पांच नहीं पंद्रह दो।” हंसा था कल्लू। “मनोरथ पूरे हुए। और क्या मांगोगे?” उसने खुश किया था ग्राहक को।

ग्राहक ने पंद्रह रुपये निकाल कर कल्लू को थमा दिए थे। कल्लू ने पांच उसकी ओर खिसका कर दस रख लिए थे तो वह जी गया था। उसने भी अब कल्लू के घाटे मुनाफे का हिसाब लगाया था।

“नाम क्या है भाई?” कल्लू ने उसका ध्यान बांटा था।

“आनंद।” उसने अनिच्छा से अपना नाम बताया था।

“नाम तो बढ़िया है भाई। काम तो तुम्हारा भी चलेगा।” कल्लू अति प्रसन्न था। “लेकिन .. मेरा कमीशन तो तय है।” उसने चेतावनी दी थी।

शाम को गुरु से भेंट हुई थी। गुरु उसे रिक्शे में साथ बिठा कर अपने घर ले आए थे। और जब आनंद ने एक अच्छी भली कोठी में गुरु के साथ प्रवेश किया था तो सनका खा गया था।

चाय बेचने वाला इत्ते आलीशान मकान में रहता था – उसे ये बात जम न पाई थी।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading