जालिम दिल्ली से हैदराबाद जा रहा था। आज वह अजीब तरह से राेमांचित था। दिल्ली में जाे पीछे छूट गया था जालिम काे बार-बार याद आ रहा था। हाकिम साहब से इस बार उसने नएला काे खरीदा और जाे खरीदना था वाे नहीं लिया और न उसका जिक्र किया। क्याें?
“शहंशाह जहांगीर द्वितीय।” जालिम का अंतर उत्तर में बाेल पड़ा था। “आप .. शहंशाह ..?”
“हाँ-हाँ। हम शहंशाह। अब सब हमारे हुकुम से हाेगा।” जालिम अपनी ही धारदार आवाजें सुन रहा था।
“हुजूर, हमें क्याें भूल गए?” मद भरी आवाजें जालिम काे साफ-साफ सुनाई दे रही थीं। “हम से रुसवाई .. हमसे जुदाई और हमसे बेवफाई? हम ताे आपकाे खुश करते .. हम ताे आपकाे ..”
भक्क से जालिम के सामने नएला आ कर खड़ा हाे गया था।
“राेलेंडाे के स्वागत में डिनर पर क्या पकाऒगे नएला?” जालिम का दिमाग राेलेंडाे के आगमन पर आ टिका था। उसे फिक्र थी कि राेलेंडाे काे किस तरह मनाएगा, खुश करेगा और अपनी दूसरी भुजा – नारकाे काे जीत लेगा।
“इंग्लिश डिनर। दुबई के सात सितार का ..”
“बहुत खूब।” उसने नएला काे शाबाशी दी थी।
“गिफ्ट ..?” एक और प्रश्न आया था जालिम के दिमाग में।
“हीरे की अंगूठी।” मुसकुराया था जालिम। “ये ताे जग जाहिर साैगात है।” उसने मन में दाेहराया था।
“और कपड़े ..?” फिर से प्रश्न पैदा हुआ था।
“महाराजा गंधर्व सैन द्वितीय की रत्न जड़ित पाेषाक और पगड़ी।” जालिम हंस गया था। वह जानता था कि राेलेंडाे ने शायद ही कहीं ऐसी पाेषाक देखी हाेगी।
“गलती ताे नहीं कर रहे जालिम?” अलग से प्रश्न आया था।
और फिर क्या था – एक के बाद एक सलाह और सबूत जालिम की आंखाें के सामने आते ही चले गए थे।
यूराेपियन बेहद चतुर, चालाक, धाेकेबाज और कुशल शासक हैं। आज भी पूरी दुनिया के मालिक हैं। सीधे-सीधे उनका मुकाबला काेई नहीं कर सकता। हाँ, जाे तुम कर रहे हाे वह इनके लिए नया हाेगा, नायाब हाेगा और घातक हाेगा।
जालिम मन ही मन मुसकुराया था। उसे पता था कि 19 अप्रेल के बाद काैन सा खेल हाेगा। पहली बार यूराेपियन्स पावर लैस हाेंगे और जालिम माने कि शहंशाह जहांगीर द्वितीय गद्दी पर आसीन हाेंगे।
लेकिन आज ताे पूरा विश्व इन्हीं का गुलाम है।
“राेलेंडाे से हाथ मिलाना है – दूर से। एक फासला रखाना है – चतुराई से। गुलाम अली काे पास नहीं फटकने देना। और हैदराबाद की रंगरेलियां ..?”
छटपटा गया था जालिम। दिल्ली और हैदराबाद उसका आने का मतलब हाेता था – जी भर कर शराब पीना, खुल खेल कर जीना, परदे के पीछे अपने नंगे भाव और दुर्दांत भावनाऒं काे खुला छाेड़ कर डूबते ही जाना .. खाते ही जाना .. चीरते ही चले जाना .. अंत तक।
तरन्नुम बेगम बूढ़ी हाे गई थी। ग्यारह बच्चाें की मां थी। जब उसका मन उछाल पर आता ताे कहती – बस। अब नहीं। और वाे ठगा सा रह जाता। भूख और भड़क जाती। तब मन हाेता कि दीवाराें काे ही चबा ले। चराचर काे ही निगल जाए।
लेकिन तरन्नुम बेगम से उसके काैल करार थे।
“तुम ताे समर काेट के भी गुलाम हाे।” अंतर बाेला था जालिम का। “आजाद ताे अब हाेगे।” उसे एक संदेश मिला था। “हाहाहा। अब ताे शहंशाह बनाेगे।”
“लेकिन भूखा ताे मैं न रह पाऊंगा।” टीस कर कहा था जालिम ने। “औरत ताे मुझे चाहिए।” उसकी पुरजाेर मांग थी। “शहंशाह भूखे ताे नहीं मरते?” उसका प्रश्न था।
“हैदराबाद के नवाब की सात साै बीबियां थीं।” किसी ने जालिम के कान में कह सुनाया था।
जालिम हर्षातिरेक से उछल पड़ा था।
आज दिसंबर की 9 तारीख थी। हैदराबाद शहर में आज अलग तरह की हलचल भरी थी।
शहर में दाे दिग्गज हस्तियां पधार रही थीं। दाेनाें का अलग-अलग प्रभाव फैलता दिखा था। जालिम के चहेते जाेर लगा रहे थे कि किसी तरह वाे अपना घटिया माल ऊंचे दामाें पर चपेक दें। ऐसा हाेता था। जालिम जाे चाहे वाे खरीद लेता था।
लेकिन इस बार गुलाम अली के पास जाे हाकिम साहब ने दिल्ली से खबर भेजी थी वाे बड़ी ही दुविधा में डालने वाली थी। एक रसाेइये के सिवा इस बार जालिम ने दिल्ली से कुछ भी नहीं खरीदा था।
राेलेंडाे के बारे कम ही लाेग कुछ जानते थे। काेई नारकाे किंग था – बस इतनी ही खबर थी।
लेकिन गुलाम अली प्रसन्न था। उसे ताे अल्लाह ने छप्पर फाड़ कर रजिया सुल्तान अता की थी।
“अगर तुम्हारे हुस्न का जादू चल गया ताे हम दाेनाें निहाल हाे जाएंगे बेगम।” गुलाम अली रजिया सुल्तान काे समझा रहा था। “और अगर डूबे ताे ..” उसने रजिया सुल्तान की आँखाें में झांका था। “बड़ी ही हाेश्यारी से काम करना है बेगम।” उसने रजिया काे समझाया था। “माने कि आदमी काे साले काे एक नजर में चित्त करने वाली अदा से काम लेना हाेगा। बाकी ताे मैं संभाल लूंगा।” वह हंस पड़ा था। “रात के दाे बजे के बाद हमारा दाव लगेगा।” गुलाम अली बार-बार रजिया के हुस्न काे देख परख रहा था। “मेरी कहानी मैंने सुनानी है, तुम चुप रहना। अदाएं .. इशारे .. ताे चलेगा बस ..।”
दिए परिधान में सजी वजी रजिया सुल्तान पर नजर ठहर रही थी।
“चलते हैं। हैदराबाद हाउस में चलकर घात लगाते हैं।” गुलाम अली उठ खड़ा हुआ था।
रात के बारह बजे एक लंबी अमेरिकन लग्जरी कार हैदराबाद हाउस में आ कर रुकी थी। एक लंबा चाैड़ा, गाेरा चिट्टा और काऒ बाॅय की पाेषाक पहने विदेशी आदमी कार से बाहर आया था। जालिम काे पता चल गया था कि राेलेंडाे दिए वक्त पर पहुंच गया है।
जालिम अपने वी वी आई पी सूट से बाहर आया था। राेलेंडाे चार नम्बर सूट से बाहर आया था। दाेनाें सूटाें के बीच बैठक थी। वाे दाेनाें वहीं मिले थे।
“स्माेक ..?” राेलेंडाे ने जालिम काे अपांग देखा था।
“नाे, थैंक्स।” जालिम ने ऑफर हुई क्यूबन सिगार नहीं ली थी। “बैठिए।” उसने राेलेंडाे से आग्रह किया था।
दाेनाें आमने सामने साेफा पर बैठे थे।
“वारुणी ..?” जालिम ने सामने ट्रे में वारुणी का भरा गिलास लिए वेटर की ऒर इशारा किया था।
“ये ताे जरूर लूंगा।” राेलेंडाे जाेराें से हंसा था। “खूब सुना है आपकी वारुणी के बारे।” उसने वारुणी की प्रशंसा की थी।
वाे दाेनाें अब वारुणी घूंट-घूंट कर पी रहे थे। दाेनाें आमने सामने बैठे थे।
“कंसाइनमेंट ..?” जालिम का प्रश्न पहले आया था।
“हूतियाें ने जहाज राेक लिया था। लेकिन नाे वरी, सैटलमेंट हाे गया है। जस्ट फ्यू मंथ्स माेर।” राेलेंडाे ने सामने बैठे जालिम काे गाैर से देखा था।
गंधर्व सैन द्वितीय की सुनहरी पाेषाक पहने जालिम तुर्रे दार पगड़ी में खूब जंच रहा था।
“नाे प्राॅब्लम।” जालिम ने कहा था। “साैदा ताे तय है ना?” उसने निगाहें उठा कर काऒ बाॅय की पाेषाक में सजे राेलेंडाे की प्रशंसा की थी। उसके घुटनाें तक पहने लंबे बूट जालिम काे बहुत भा गए थे।
चैफ की पाेषाक में सजा वजा नएला उजागर हुआ था। उसने एक लंबा सैल्यूट दागा था और भाेजन तैयार है श्रीमान का नारा सा लगाया था।
जालिम और राेलेंडाे उठे थे और अपनी-अपनी कुर्सियाें पर आ बैठे थे। उनके साथ दाे वेटर आ खड़े हुए थे और खाना पराेसने लगे थे।
अंग्रेजी खाने का मीनू और उसका स्वाद जालिम काे बेहद पसंद आया था। उसने पलट कर नएला काे देखा था और उसकी प्रशंसा की थी। राेलेंडाे ने खाना अंग्रेजी स्टाइल में खाया था। जालिम उसे सराहता रह गया था।
डिनर समाप्त हाेते ही जालिम ने राेलेंडाे काे गिफ्ट में हीरे की बेश कीमती अंगूठी भेंट की थी। मूडी काे जानी ग्रिप की माैत का सबब याद हाे आया था। राेलेंडाे ने जेब से निकाल कर एक सुनहरी पैन जालिम काे भेंट में दिया था। जालिम उस पैन काे देखता ही रह गया था।
“अंगूठी पहनाेगे ताे पाै बारह हाे जाएंगे।” जालिम ने कहा था।
“इस पैन से तुम जब चाहाे तब अपनी किस्मत लिख लेना – जन्नत के दरवाजे खुल जाएंगे।” राेलेंडाे ने भी हंसते हुए कहा था। “ये इब्राहिम लिंकन का पैन है।”
वाे दाेनाें जा रहे थे। मूडी राहुल की आँखाें में देखना न भूला था। दाेनाें ने एक दूसरे से वैल डन कहा था और निगाहें फेर ली थीं।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड