सोफी जिद कर के माण्डव लौट आई थी। माण्डव के खण्डहरों में वो उतावली बावली हुई डोल रही थी। टाइगर परेशान था। सोफी जो प्रश्न करती उसका उत्तर उसके पास न होता। सोफी के प्रश्न भी तो अटपटे ही तो थे।

“पहले माण्डू का इतिहास समझ लो सोफी!” टाइगर कह रहा था। “दसवीं शताब्दी में मुंज ने इस माण्डू का निर्माण किया था। फिर परमार राजाओं ने इसे माण्डवगढ़ कहा और अपनी राजधानी बनाया। फिर मुगलों का शासन काल चला और ..” टाइगर ने मुड़ कर सोफी को घूरा था। उसका मन कहीं और ही विचरने चला गया था। “ध्यान से इतिहास नहीं सुनोगी तो ..”

“मैं जानती हूँ टाइगर कि चलते चलाते 1554 में मलिक सुजान का बेटा राजा बना। वह एक संगीतज्ञ का बेटा था और गायक भी था। उसने ही अपना नाम बाज बहादुर रख लिया था। और वह इस माण्डव की अमर आत्मा बन कर यहां विराजमान हो गया था। वह लोगों के दिल दिमाग पर छा गया था।” सोफी ने टाइगर को आंखों में देखा था। “ठीक बोला न?” उसने मुसकुराकर पूछा था।

“बिलकुल ठीक बोला।” टाइगर ने हामी भरी थी। “और क्या खोजना चाहती हो?”

“दूसरी भी तो एक आत्मा थी यहां?”

“हां थी। रानी रूपमती।” टाइगर ने हामी भरी थी। “मान सिंह राठौर की बेटी थी और बाज बहादुर की तरह वह भी संगीतज्ञ थी। गीत गाती थी – प्रेम गीत।”

“इन दोनों का मिलन कैसे हुआ?” सोफी पूछ लेती है।

राहुल सिंह एकबारगी कहने को होता है, “जैसे कि मेरा और तुम्हारा मिलन हुआ!” पर रुक जाता है। वह अपने जहन में पड़े रूपमति और बाज बहादुर के प्रसंगों को ही टटोलता है।

“मंदिर में गाती रूपमति ने आंखें बंद कर ली थीं। आत्म विभोर हो वह गा रही थी। जब आंखें खोलीं तो बाज बहादुर सामने खड़ा था। वह भी रूपमति की तलाश में ही निकला था।”

“और फिर ..?”

“प्रेमियों का परिचय कोई नहीं कराता सोफी।” राहुल सिंह ने सहज भाव से कहा था। “वो मिल जाते हैं। प्रेम की प्यासी रूहें एक दूसरे को खोज लेती हैं। यों किस्से तो बहुत हैं ..” राहुल सिंह सोफी को घूरता है। “पर ये किस्से ही हैं।”

“मसलन कि ..?”

“मसलन कि .. रूपमति का प्रतिबिंब तालाब में देख बाज बहादुर ने तिमंजिले से ही तालाब में छलांग लगा दी थी।”

“ये झूठ है।” सोफी हंसती है। “कहते तो ये हैं कि वो दोनों गाइकी की एक महफिल में मिले थे। दोनों का मुकाबला हुआ था। बाज बहादुर हारा था और ..”

“जरूर हार गया होगा!” राहुल सिंह हंसा था।

“कैसे ..?”

“जैसे कि ..” राहुल सिंह रुक गया था। वह कह देना तो चाहता था – जैसे कि मैं तुमसे हार मान कर बैठा हूँ, पर चुप ही बना रहा था।

“ये प्रेम है क्या बला टाइगर?” सोफी ने बात पलट दी थी।

“ऐसी बला है जो दो प्रेमियों को बिना शर्तों के आमने सामने ला कर खड़ा कर देती है।”

“बिछुड़ने के लिए?” सोफी प्रतिप्रश्न करती है। “ताकि फिर से उनके किस्से बनें और उनकी कहानियां चलें! लोग उन्हें ..”

राहुल सिंह चुप ही रहता है। उसे सोफी का मन उड़ता नजर आता है। वह भी आज कहीं पहुँच जाना चाहता है। लेकिन कहां – वह नहीं पहचान पाता।

“अकबर ने ऐसा क्यों किया टाइगर कि अपने जनरल आजम खां को भेज कर उन दोनों प्रेमियों को जुदा कर दिया?” सोफी कई पलों के बाद लौट कर प्रश्न पूछती है।

राहुल सिंह ने भी इस घटना को कई बार और बार-बार अपने जहन में घुमाया है। उसने भी अकबर की मानसिकता को पहचानने का प्रयत्न किया है। उसे रानी रूपमति की शायद कम दरकार थी। उससे जलन ज्यादा थी। उन दोनों के प्रेम प्रसंग शायद बहुत सारे लोगों के मनों पर छा गए थे। अकबर ने शायद यही कुछ सोच कर आजम खां को भेजा होगा।

“कहते हैं कि अकबर भी रानी रूपमती को चाहता था। उसने आजम खां को साफ-साफ कहा था कि उसे रूपमति चाहिए थी।” राहुल सिंह रुका था। “मैं तो कहूंगा कि अकबर घमंडी था।”

“वो कैसे ..?” सोफी उत्सुकता से पूछती है।

“प्रेम कभी तलवार की धार पर धर कर हासिल नहीं होता!” राहुल सिंह बताता है। “प्रेत तो एक स्वेच्छा से पाने की वस्तु है।” वह सोफी को घूरता है।

“तभी तो उसे रूपमति नहीं मिली।” सोफी कहती है। “मैं भी मानती हूँ कि प्यार जोर जबरदस्ती से नहीं मिलता। प्यार को हासिल करो, स्वेच्छा से लो, सहमति से मांगो और जीत कर लो!” वह टाइगर को देखती है। “और कुछ नहीं तो मांग कर ले लो!” वह हंसती है। “पर जब मिले तब लो।”

“लेकिन इतिहास तो यही कहता है कि सुंदर स्त्री और उसके प्रेम के लिए ही संग्राम हुए हैं। लड़ा तो बाज बहादुर भी था। उसने भी आजम खां का डट कर मुकाबला किया था लेकिन वह था तो संगीतज्ञ ही। घायल हो गया तो मैदान छोड़ कर भाग गया।” राहुल हंसा था।

“और रूपमति भी तो लड़ी थी?” सोफी अपनी बात आगे करती है।

“हां, लड़ी थी। राजपूत थी न – राठौर! उसे लड़ना तो आता था। आजम खां की छाती पर सवार हो गई थी। उसे मारने ही वाली थी कि पीछे से एक तीर आ कर उसके कंधे में धंस गया था। घायल हो गई थी। पकड़ी गई।”

“और फिर जहर खा कर मर गई?” सोफी पूछती है।

“हां! जहर खा कर मरी। वह अकबर के ऐशगाह की गुड़िया न बनना चाहती थी।”

“कायर थी।” सोफी मुंह बिचकाती है।

अचानक सोफी को वॉलेशिया की वो सुंदरी याद हो आती है जिसने अइयाश राजा का कत्ल किया था और खुद शासक बन बैठी थी। रानी रूपमति को भी जरूर ही अकबर का खून कर देना चाहिए था। जहर की भुनी कटारी को अगर अकबर के सीने में उतार कर वह उसका साम्राज्य छीन लेती तो ..

“देख रही हो न कि चांदनी रात में इस माण्डव का कैसा रूप निखर आता है।” राहुल सिंह ने सोफी को एक नया विचार बांटा था। “बेजोड़ सा कुछ बरसने लगता है यहां!”

“महसूस तो मैंने भी किया है, टाइगर!” सोफी कहती है। “खून से लथपथ, लहू में सना प्यार अगर अकबर पा भी लेता तो क्या पा जाता? प्यार तो महसूसने भर की एक भावना है! जैसे कि अब – इस चांदनी रात के इस आलम में अगर दो रूहें मिलें तो?”

“गुलाल बरसेगा!” राहुल सिंह कहता है।

“वह क्या होता है टाइगर?” सोफी मुड़ कर पूछती है।

राहुल सिंह चुप बना रहता है। सोफी गुलाल के अर्थ का अनुमान लगाती रहती है। वह महसूसती है कि गुलाल भी अमृत जैसा ही कोई शब्द होगा जो चलन में तो होगा पर असल में नहीं।

राहुल सिंह चांदनी की किरणों को समेट कर सोफी को भेंट करना चाहता है। फिर उसे सोफी ही चांदनी लगने लगती है। वह महसूसता है कि माण्डव की चांदनी रात का ये जादू शायद उस पर चल गया है। न जाने क्यों और कैसे उसे अब सोफी के साथ एक संबंध स्थापित हो गया लगता है जो गाइड और कस्टमर के संबंध से हट कर है।

“गुलाल जब बरसता है तो ..” राहुल सिंह बताता है लेकिन सोफी नहीं सुनती।

सोफी को अब आसमान पर उगा चांद राहुल सिंह जैसा लगता है। उन दोनों का रूप स्वरूप एकाकार हुआ लगता है उसे। इस चांद से उसका एक संबंध जुड़ सा जाता है।

दोनों चुप हैं। पर न जाने कैसे दोनों बोलते हैं। दोनों प्रकृति के इस हंसते बोलते प्रांगण में साथ-साथ खड़े हो नए स्वीकारों से भर जाते हैं।

वह दोनों मूक थे, विवश थे, अवश थे पर आह्लादित थे।

केवल वह दो ही थे वहां।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading