आठ दिसंबर सुबह की फ्लाइट पकड़ कर जब जन्मेजय काशी चला गया था तो राम चरन की जान में जान लौट आई थी।
सुंदरी और भाभी जी श्याम चरन के बर्थडे डे की तैयारियों में नाक तक डूबी थीं। भाभी जी घर पर ही केक बना रही थीं। सुंदरी ने अपनी सारी दोस्तों को फोन पर सूचना दे बुला लिया था। पंडित कमल किशोर अपनी पत्नी राजेश्वरी के साथ कल शाम की गाड़ी से हैदराबाद रवाना हो गए थे। मंदिर की चाबियां राम चरन की जेब में थीं।
किरन कस्तूरी को आज मरने तक की फुरसत न थी। उसे पूरा कत्लेआम कनैक्ट करना था। और रात की फ्लाइट से मुनीर खान जलाल को दुबई के एस एस सेंटर के लिए हवाई जहाज में बिठाना था।
राम चरन ने पूरी ईमानदारी के साथ कत्लेआम को कनैक्ट कराया था। किरन कस्तूरी को जरूरी नुक्ते समझाए थे। किरन कस्तूरी को कब और कितने बजे गोलियां मार कर मिटा देना था – उसने कई बार अपने जेहन में दोहरा लिया था।
ठीक रात साठे आठ बजे राम चरन ढोलू महल के लिए निकला था। उसने मैगजीन को चैक किया था। दस गोलियां भरी थीं। नाइन ओ नाइन पिस्तौल को उसने कलेजे के साथ चिपका कर सहेज लिया था। जैसे ही वह ढोलू शिव की प्रतिमा के सामने से गुजरा था, तनिक ठिठका था और रुक गया था।
“सी यू लेटर, ओल्ड चैप।” राम चरन ने मीठी मुसकान के साथ मुसकुराते ढोलू शिव से संवाद कहा था। “खजाने की चाबी तो तुमने नहीं दी।” राम चरन ने ढोलू शिव को उलाहना दिया था। “लेकिन कोई बात नहीं।” उसने माफ कर दिया था ढोलू शिव को। “एक बार ऐशियाटिक अंपायर सैट होने के बाद लौटुंगा।” उसने वायदा किया था। “दैन आई विल किक यू इन द चिन।” उसने प्रत्यक्ष में कहा था। “ब्रेक ओपन दि डोर एंड विल टेक दि ट्रेजर टू जन्नते जहां। हाहाहा।” राम चरन हंसने लगा था।
तभी मंदिर में कुछ भीषण घट गया था। एक जोरों का धमाका हुआ था। गर्भ गृह एक अर्राटे के साथ बैठ गया था। किरन कस्तूरी समेत अट्ठाईस आदमियों का स्टाफ मलबे में दब गया था। राम चरन घटना को देखने तनिक सा पीछे मुड़ा था तो तड़ातड़ गोलियों की बौछार उसके बदन के आरपार हो गई थी। वह बाहर भागने को मुड़ा था तो सामने से भी हमला आया था और गोलियों ने उसका बदन छलनी कर दिया था। राम चरन औंधे मुंह ढोलू शिव की प्रतिमा के सामने आ पड़ा था।
एक साथ राम चरन के बदन से बहुत सारा लहू बह गया था। राम चरन अब आंखें खोलने का प्रयत्न कर रहा था, लेकिन अंधकार था कि छाता ही चला गया था। उसने ढोलू शिव की प्रतिमा को हंसते हुए सुना था और उसके बाद तो ..
सुबह के अखबारों में प्रथम पेज पर भिखारी राम चरन का चित्र छपा था, लिखा था – राम चरन एक जासूस था।
पुलिस दोपहर के बाद आई थी और राम चरन की लावारिस लाश को उठा कर ले गई थी।
ढोलुओं के महल में सन्नाटे के सिवा और कुछ सुनाई नहीं दिया था। लेकिन हां जनरल फ्रामरोज और रोजी रंजीत गौड़ के ऑफिस में चाय पीते देखे गए थे।
“लीजिए अपनी सौगात।” जनरल फ्रामरोज ने राम चरन की फाइल रंजीत गौड़ को एक अमानत की तरह सौंपी थी। “ही वॉज हैल आफ ए चैप।” जनरल फ्रामरोज ने एक छोटा कॉम्प्लीमैंट पास किया था।
“सर! सर – एक छोटा सा असाइनमेंट ..” रंजीत गौड़ ने अपनी मेज की दराज से एक पतली सी फाइल खींची थी। “आप के सिवा इसे कोई कर नहीं पाएगा, इसलिए ..” वह खुशामद करने लगा था।
“नो! नो रंजीत!” रोजी पतोहरी की तरह जोरों से चटकी थी। “नो मोर फाइल ..!” उसने आदेश दिया था। “हम लोग जर्मनी जा रहे हैं। बेटे के साथ रहेंगे।” उसने रंजीत को सूचना दी थी।
रंजीत गौड़ ने कई पलों तक जनरल फ्रामरोज और रोजी को देखा था।
वो दोनों उठे थे और ऑफिस से बाहर चले गए थे।
रंजीत गौड़ ने राम चरन की फाइल बंद कर दी थी।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड