देर रात गए राम चरन ने हैदराबाद फोन मिलाया था।

मंदिर परिसर सूना था। किरन कस्तूरी जा चुका था। पंडित कमल किशोर कब के घर पहुंच चुके थे। सुंदरी सो नहीं रही थी। लेकिन दिल्ली सो रही थी। और राम चरन भी एक अकेला था जो अभी भी जाग रहा था। संघमित्रा उसे अब सोने नहीं दे रही थी।

“सज्जाद मियां?” राम चरन ने फोन उठाया था। “इजाजत हो तो हम भी चले आएं हैदराबाद?” उसने बड़े ही विनम्र स्वर में पूछा था।

“अभी मत आइए जनाब।” सज्जाद मियां का सूखा उत्तर आया था। “बहुत टेंशन है। हिन्दू राष्ट्र वालों के साथ ठन गई है। इनका पूरा भारत जुड़ेगा तो हमारा भी सारा हिन्दुस्तान इकट्ठा होगा।”

“और वो जन्नते जहां का क्या रहा?” राम चरन ने बात बदली थी।

“झगड़ा तो उसी को लेकर हुआ है।” सज्जाद ने बताया था। “हमने वक्फ बोर्ड के हवाले से तीन सौ एकड़ जमीन खरीद ली है। हिन्दू राष्ट्र वादियों का आश्रम अब हमारे कब्जे में आ जाएगा। हमने उसे उठा कर फेंक देना है। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।”

“सरकार और सरकार की पुलिस ..?” राम चरन ने प्रश्न किया था।

“सब हमारे हक में है जनाब। वोट देते हैं – हम सरकार को। हमारे दम पर कुर्सी पर बैठे हैं। हम आज चाहें तो आज ही सरकार को गिरा दें।” ठसका सज्जाद भाई की आवाज में।

“गुड ..!” राम चरन हंसा था। “आई लाइक इट।” उसने प्रसन्नता जाहिर की थी। “देखो सज्जाद काम होशियारी से होना चाहिए। ये रिहर्सल है – जिहाद नहीं।” उसने चेतावनी दी थी।

“मुझे सब याद है जनाब।” सज्जाद का कहना था। “न सांप मरेगा न लाठी टूटेगी।” वह हंसा था। “मैं खूब जानता हूँ इन हिन्दुओं को। मैंने उम्र इनके साथ जीने में बिताई है। इस बार का वार कभी खाली नहीं जाएगा जनाब।” सज्जाद ने राम चरन से वायदा किया था। “पूरा साउथ एक साथ है।”

राम चरन के दिमाग में एक बारगी हैदराबाद घूम गया था।

चाऊ महाल – निजाम हैदराबाद का प्रसिद्ध महल था। उसका मन भी था कि जन्नते जहां बनते-बनते वो इसी पैलेस में संघमित्रा के साथ रहेगा। हुसैन सागर की सैर उसे याद हो आई थी। और अनायास ही उसे ढोलू शिव का खजाना दिखाई दे गया था। गोलकुंडा का किला और गोलकुंडा के हीरे कोहिनूर और न जाने कौन-कौन उसकी निगाहों के सामने बिखर गए थे।

मंदिर के बाहर पतोहरी चटकी थी। राम चरन को पता चल गया था कि राम तो गारत हो चुकी थी। वह सीट से उठा था और बावली के पीछे खड़ी कार स्टार्ट कर घर की ओर चल पड़ा था। वह गहरे सोच में डूबा था। इस पागल जिन्ना ने देश का बंटवारा क्यों किया – राम चरन की समझ में न आ रहा था। अब तक तो हिन्दुस्तान कब का इस्लामिक स्टेट बन गया होता। यों दो अलग-अलग देश लेकर देश को बांट देना पॉलिटिकल ब्लंडर नहीं तो और क्या था।

“दिल्ली को इस बार कब्रगाह बनाएंगे।” राम चरन ने निर्णय लिया था। “अंग्रेजों के हस्ताक्षर दिल्ली में बहुत ज्यादा हैं। मुगलों के तो मकबरे और मजार बिखरे पड़े हैं। फिर से दिल्ली को तोड़ कर सुंदर बगीचे लगा कर इन मस्जिद और मजारों को करीने से बसा देंगे। जिन्होंने जानें कुरबान कीं उन्हें पूरा सम्मान देंगे। जो जान पर खेल कर लड़े और अपने हस्ताक्षर कायम कर गए उन्हें भुलाएंगे नहीं।” राम चरन का अपना सोच था।

“अरे तुम अभी तक जाग रही हो?” राम चरन हैरान था कि सुंदरी सजी वजी उसके इंतजार में बैठी थी। “तुमने खाना तक नहीं खाया?”

“नहीं!” सुंदरी ने हंस कर कहा था। “ये भाभी जी का आदेश है। मैं तुम्हारा इंतजार ..”

“पागल हो गई हो सुंदा? तुम तो ऑक्फाेर्ड की पढ़ी लिखी मॉडर्न महिला हो?”

“और तुम भी तो ..”

“मैं तो रैग्स टू रिचिज वाली कहानी हूँ डार्लिंग!” राम चरन जोरों से हंसा था। “चलो खाना खाते हैं। बहुत जोर की भूख लगी है।” राम चरन का आग्रह था।

आज बड़े दिनों के बाद वह सुंदरी के साथ सहवास कर रहा था। सुंदरी ने भी आज उसे एक नया आरंभ दिया था और राम चरन को फिर से स्नेह और प्रेम देने का वायदा किया था।

राम चरन ने भी इसे सुहाग रात की तरह मनाया था लेकिन सुंदरी नहीं संघमित्रा के साथ।

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मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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