“गुजरात इज द गेटवे फॉर इस्लाम – मेरी ये बात याद रखना महबूब मियां।” राम चरन ने महबूब अली को आगाह करते हुए कहा था। “मैं जानता हूँ कि तुम्हें अभी तक फंड नहीं मिला है। लेकिन इसकी फिकर नहीं। मैं जाते ही फंड खोल दूंगा। पैसा चाहे जितना लो। अपने यंग लड़के और लड़कियों को खुला पैसा दो। उनसे कहो कि हिन्दू युवक और युवतियों को शाखा से मोड़ मधुशाला ले जाएं। लैट देयर बी फ्री सेक्स एंड सेमीनार ऑन सैक्यूलरिज्म। बहकाओ हिन्दुओं को। चार-चार शादियां करें और इस्लाम कबूल करें। ऐशों आराम का इस्लाम में अनूठा मोल है। हमारे इस्लाम के सभी शागिर्द मौज कर रहे हैं। तुम इस इकास विकास की गोली को मत खाओ, महबूब मियां और ..”
“गलती हो गई जनाब।” महबूब अली की आंखें नीची थीं। “बात समझने में भूल हुई।” उसने स्वीकार किया था। “कारण – कांग्रेस ..”
“कांग्रेस जो भी है, जैसी भी है, हमारी हितैषी है।” राम चरन ने जोर देकर समझाया था। “हमें पॉलिटिक्स में नहीं जाना। हमारा मकसद खलीफात इस्टेब्लिश करना है। मेक द हिन्दूज – मुसलिम्स बाई हुक और बाई क्रुक। मैजॉरिटी में आने के बाद तो हम ..”
महबूब अली ने नई निगाहों से राम चरन को देखा था। अल्लाह का ही कोई आदमी था – ये राम चरन। सुना था कि कोई बड़ा, ऊंचा आदमी था और यहां जासूसी करने आया था। लेकिन आज जब मुकाबला हुआ था तो मुगालता साफ हुआ था कि उन्हें हिन्दुस्तान के मुसलमानों को करना क्या था?
“जनाब! विकास की समाज कल्याण के लिए जो योजनाएं बनी हैं तो क्या मुसलमानों को उनसे अलग रहना है?” महबूब अली ने शंका निवारण हेतु पूछा था।
“ये विकास आर एस एस ने जर्म्स की तरह पैदा किया है और प्रचारित किया है। यों समझें कि अगर ये भारत में फैल गया तो हम फेल हो जाएंगे!” राम चरन गंभीर था। “हमें तो अपना अलग एजेंडा चलाना है। हमें अंत में हिन्दुस्तान को हड़प लेना है। और इसे इस्लामिक स्टेट बना देना है। लोगों को कहो महबूब कि एक दिन ये हिन्दुस्तान हमारा होगा। हम इन काफिर हिन्दुओं को फाड़ खाएंगे, लूट लेंगे, कत्ल कर देंगे और इनकी बहन बेटियों को अपने लिए रख लेंगे। अबकी बार इन का और इनके सनातन का जड़ मूल से सत्यानाश करेंगे।” राम चरन की धारदार आवाज में एक नया तल्ख था। “मत भूलो महबूब मियां कि ..”
“इनके पास पुलिस है, फौज है जनाब!” सहमते हुए महबूब अली ने पूछा था।
“इसका तोड़ भी हमारे पास है अली साहब!” राम चरन मुसकुराया था। तुम शायद नहीं जानते कि हमारी हुकूमत ..” राम चरन चुप हो गया था। वह नहीं चाहता था कि महबूब को उस तरह की कोई सूचना दे।
राम चरन को सहसा याद हो आया था कि तीन बार और तीन बार ही क्यों तीसों बार पाकिस्तान ने कोशिश की थी कि दिल्ली को ले लें। लेकिन हिन्दुस्तान की फौज ने उन्हें हर बार मुंह तोड़ जवाब दिया था। और तो और अगर अमेरिका पाकिस्तान की मदद के लिए न आता तो .. शायद हमारी हालत ही कुछ और होती। ये सैक्यूलरिज्म का छोड़ा तीर सेना के सीने को नहीं भेद सकता। मात्र एक मुस्लिम बटालियन थी हिन्दुस्तान में। वह भी टूट गई। बेवकूफों ने पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया था। काश ..
“कांग्रेस ..!” अचानक ही राम चरन को फिर याद हो आया था। “अगर पावर में कांग्रेस लौटी तो शायद रिजर्वेश का चक्कर चला कर मुसलमानों को सेना में एंट्री दिला दे?” राम चरन के चेहरे पर नई मुसकान फैल गई थी।
हिन्दुस्तान के मुसलमानों के पास एक जुट हो कर वोट देने से सरकारों को बदलने की ताकत थी – राम चरन ने एक बड़े मुद्दे पर सहसा उंगली धरी थी और हंस पड़ा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड