गुजरात में आर एस एस के दो लड़कों ने बवाल काटा – अखबार की हैडलाइन पढ़ कर राम चरन सतर्क हुआ था। आर एस एस का मात्र जिक्र सुन कर ही राम चरन डर जाता था। तख्ता पलट – अखबार में आगे लिखा था। सरकार सोती पकड़ी गई और सत्ता चली गई – अखबार बता रहा था। खबर है कि मुसलमानों ने भी आर एस एस को वोट दिया और कांग्रेस को हरा दिया – अंत में लिखा था अखबार में। कांग्रेस आला कमान में हड़बड़ी …
“नॉन सेंस!” राम चरन ने अखबार को फेंक चलाया था। “मुसलमानों ने अगर आर एस एस को वोट दिया ..?” अब वह स्वयं से प्रश्न पूछ रहा था। “कोई तो कारण हो? कोई आदेश?” वह समझने की कोशिश कर रहा था। “हमने तो बताया था आजादी नहीं आबादी चाहिए! बच्चे पैदा करो। करो शादियां जितनी करो। औरतों का यही काम है। लेकिन .. लेकिन ..”
राम चरन के पसीने छूट गए थे। मन था कि फौरन महबूब अली को फोन मिलाए और पता करे कि माजरा क्या था? लेकिन ऑफिस में अभी लोगों की आवाजाही लगी थी। उसे तो आज इंतजार भी था कि शायद आचार्य प्रहलाद पधारें और संघमित्रा का सौदा लगे हाथों हो जाए। लेकिन इस बार तो वार आर एस एस की ओर से आया।
“जान! क्या कर रही हो?” राम चरन ने सुंदरी को फोन मिलाया था। “आज शाम को ही गुजरात जा रहा हूँ।” उसने सुंदरी को बताया था।
“क्यों? गुजरात में क्या धरा है! अब क्या बनाओगे वहां?”
“सात सितारा ढोलू हॉस्पिटालिटी प्रोजेक्ट राम चरन ने बताया था। “पैसे वाली स्टेट है बेगम। अच्छा, बोलो! तुम्हारे लिए क्या लाऊं?”
“क्या लाओगे?” सुंदरी ने प्रति प्रश्न में पूछा था।
“गांधी जी की प्योर खादी का कुर्ता सलवार ..!” राम चरन का स्वर विनम्र था।
“नहीं! साड़ी लाना!” सुंदरी ने हंस कर अपनी मांग सामने रख दी थी।
गुजरात रवाना होने से पहले राम चरन ने गुजरात की फाइल खोली थी।
“स्टेट में मुसलमानों की आबादी हैल्दी लेवल पर थी जो दो चार साल में ऊपर हो जानी थी। मुसलमानों ने फिर तो आगे बढ़ कर सत्ता छीन लेनी थी। फिर इस बेवकूफ महबूब अली को क्या सूझी कि ..?” राम चरन के दिमाग में कोलाहल भरा था। “कांग्रेस के हारने से उसे एक सदमा जैसा लगा था। कांग्रेस से बड़ा उनका शुभ चिंतक भारत में दूसरा कोई न था। सत्ता कांग्रेस की थी तो ..
महबूब अली की हालत खराब थी। उसे जहां शाबाशी मिलने की उम्मीद थी वहीं अब सब कुछ हाथ के नीचे से निकला लगा था। अभी तक फंड नहीं आए थे। लेकिन अब तो वो जुबान भी नहीं खोल सकता था। अब तो न जाने ..
“आदाब अर्ज .. स नन जनाब!” महबूब अली की जुबान अटक रही थी। वह घबरा रहा था।
“आदाब – महबूब भाई।” राम चरन सहज था। “सब ठीक तो है?” उसने यूं ही प्रश्न पूछ लिया था।
“दुआ है आपकी।” महबूब अली ने नपा तुला जवाब दिया था।
परम एकांत में महबूब अली से राम चरन ने कांग्रेस को हराने का सबब पूछा था।
“जनाब! विकास की बात है!” महबूब अली बताने लगा था। “ये आर एस एस के लोग विकास की बात करते हैं। सब का विकास। हिन्दुओं का – मुसलमानों का – सब का!” महबूब अली ने हिचकोले ले ले कर बताया था।
“ये विकास की नहीं विनाश की बात करते हैं, अली साहब!” राम चरन ने तनिक तल्ख आवाज में कहा था। “ये मुसलमानों के विनाश के लिए पैदा हुए हैं, समझे आप?” राम चरन को क्रोध चढ़ने लगा था। “अब आर एस एस के पास देश की सबसे धनी स्टेट आ जाएगी और ये गुजराती कट्टर हिन्दू नहीं हैं क्या?”
“लेकिन जनाब ..” महबूब अली तरह-तरह के तर्क देता रहा था। लेकिन राम चरन सुन ही न रहा था।
राम चरन देख रहा था कि रत्न जड़ित सिंहासन न जाने कहां चला गया था और अब तो संघमित्रा भी गायब थी। खलीफा ही रह गया था – जो कांटों का ताज पहने नंगी जमीन पर बैठा था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड