बहुत बड़ी सोच समझ के बाद भी राम चरन की समझ में न आ रहा था कि रंजीत गौढ से मिलने पर उन्हें क्या गिफ्ट दें? अंत में उन्होंने सुनहरी लेक कॉम्प्लैक्स का ब्रोशर साथ ले जाने का निर्णय लिया था। आज की उसकी लड़ाई एक विशुद्ध ज्ञानी के साथ थी। रंजीत गौढ जैसे ब्राह्मणों के हाथ में ही कमाण्ड थी हिन्दुस्तान की। बाकी सब तो भेड़ बकरी थे – जस्ट द फॉडर।
रंजीत गौढ का ऑफिस बड़ा ही साधारण किस्म का लगा था उसे। कोई किसी तरह की टीम टाम ही न थी। रंजीत गौढ एक फाइल में सर गढ़ाए कुछ पढ़ रहे थे। उसकी कही गुड मॉर्निंग का उत्तर देने के बाद भी उसने फाइल से निगाहें न उठाई थीं। राम चरन कई देर तक चुपचाप खड़ा रहा था।
“सिट डाउन!” रंजीत गौढ ने बिना राम चरन की ओर देखे कहा था।
ऑफिस में सिमट आई चुप्पी अब राम चरन का दम घोट रही थी।
“फरमाइए! कैसे-कैसे आगमन हुआ?” रंजीत गौढ ने औपचारिक प्रश्न पूछा था।
“सर, मैं ..”
“वो तो मैं जानता हूँ। दामाद हैं कुंवर साहब के।” हंसा था रंजीत गौढ। “मैं तो उनका ही एक अनुचर हूं। ए क्लीन एंड डैडीकेटिड पॉलिटीशियन!” उन्होंने कुंवर साहब की प्रशंसा की थी।
“सर, मैं सुमंत के बारे ..”
“वो तो उसी से पूछो!”
“सर, बात तो सब तय है। लेकिन कहा है कि आप से पूछ कर बताएगा!” अब राम चरन बहुत खबरदार था। “ढोलू इंटरप्राइजेज का नया प्रोजैक्ट दुबई में फ्लोटिंग सिटी में बनाया है – ड्रीम लैंड ढोलू! उसी के लिए सुमंत को सी ई ओ लिया है!”
“अच्छा है! बहुत अच्छा है। कुछ सीखने को मिलेगा!” प्रसन्न होते हुए बोले थे रंजीत गौढ। “ले लो! शौक से ले लो!”
“लेकिन सर .. आप ..?”
“मैं बता दूंगा उसे!” इस बार खुल कर हंसे थे रंजीत गौढ। “सुमंत बहुत सीधा है। मां का बेटा है। पिया ने उसे अपने संस्कार दिए हैं।”
“थैंक्स गॉड!” राम चरन ने अल्लाह को याद करते हुए कहा था। “अगर रंजीत गौढ के संस्कार ले लेता सुमंत तो शायद ही ..”
राम चरन को रंजीत गौढ से मिल कर लगा था जैसे हिन्दुस्तान के इतिहास में वर्णित विष्णु गुप्त चाणक्य ही उसके सामने आ बैठा था। उसे याद हो आया था कि किस तरह से उस एक, अकेले और निहत्थे ब्राह्मण ने मौर्य साम्राज्य खड़ा कर दिया था।
“सर ये ब्राेशर है – सुनहरी लेक कॉम्प्लैक्स का!” राम चरन ने रंजीत गौढ को ब्रोशर दिया था। “ये देखिए – ये बंगले बने हैं लेक साइड में! ये सात नम्बर बंगला आप के नाम का है। और अब तक खाली है।” अब उसने सीधा रंजीत गौढ की आंखों में देखा था।
“मोहे का सीकरी सों काम?” रंजीत गौढ ने दोनों हाथ हवा में फैंक कर कहा था। “अरे भाई! दिल्ली में नहीं हम दोनों तो नारायण आश्रम में अपना वानप्रस्थ बिताएंगे!” रंजीत गौढ बताते रहे थे। “कभी कैलाश मानसरोवर गए हो?” रंजीत गौढ ने एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछा था।
“नहीं तो सर!”
“तो जाकर जरूर देखना – मेरी राय है! साक्षात शिव के दर्शन होंगे। और अगर मानसरोवर झील में स्नान किये तो सीधे स्वर्ग का रास्ता खुल जाएगा! क्या धरा है – यहां दिल्ली में?” उन्होंने तनिक मुंह बना कर कहा था।
“नहीं भी जाओगे तभी भी नहीं बचोगे विष्णु गुप्त – तुम इस बार नहीं बचोगे!” राम चरन ने मन ही मन प्रसन्न होते हुए कहा था। “तनिक सी आंख बची नहीं कि इस बार ब्राह्मण वंश बचेगा ही नहीं।” राम चरन ने निश्चय पूर्वक एक ऐलान कर दिया था।
सुमंत गौढ को ड्रीम लैंड ढोलू फाइव स्टार होटल का सी ई ओ नियुक्त करना राम चरन की एक महान उपलब्धि थी।
तोते की जान अब बहेलिया की अमानत थी।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड