“प्रणाम पंडित जी!” राम चरन ने पंडित कमल किशोर के पैर छू कर प्रणाम किया था।
पंडित कमल किशोर ने आंख उठा कर राम चरन को गौर से देखा था। कितना भला मानुष था – राम चरन, पंडित जी सोचते रहे थे। वो राम चरन के किए उपकार भूले न थे। और जो बंगला राम चरन ने उन्हें गुरु दक्षिणा में ढोलू एनक्लेव में दिया था वह तो ..
“प्रसन्न रहो! खूब फलो फूलो!” पंडित कमल किशोर ने राम चरन के आकर्षक स्वरूप की सराहना करते हुए आशीर्वाद दिया था। “सब मौज मजे में तो हैं?” पंडित जी ने खैरियत पूछी थी।
“जी!” राम चरन विनम्र था। “आप कैसे हैं?” उसने विहंस कर प्रति प्रश्न पूछा था।
पंडित कमल किशोर कई पलों तक मौन बने रहे थे। कोई दुविधा थी जिसे वो राम चरन से कह देना चाहते थे। लेकिन एक संकोच उन्हें रोके खड़ा रहा था।
“क्यों ..? क्या बात है! कोई मदद ..?”
“नहीं! वो बात नहीं है राम चरन।” पंडित जी सकुचाते हुए बोले थे। “राजेश्वरी का बुखार नहीं जाता!” वह बताने लगे थे। “सुमेद शादी नहीं कर रहा!” उन्होंने कारण बताया था। “राजेश्वरी को चिंता है। वंश डूबेगा और ..” पंडित जी ने राम चरन की आंखों में देखा था।
“और इस बार तो देश भी डूबेगा!” राम चरन ने गुप्त संवाद अपने मन में कहा था। “इस बार कुछ बचेगा नहीं पंडित जी!” वह मंद-मंद मुसकुराया था।
“छोड़िए!” पंडित जी ने मौन हो गए राम चरन का ध्यान बांटा था। “आप ने आज कैसे दर्शन दिए?” पंडित जी ने हंस कर पूछा था।
“आप के ही काम से आया हूँ।” राम चरन ने चाल बदली थी। “ढोलू शिव के मेले से पहले कुंवर साहब चाहते हैं कि मंदिर की टीप-टाप करा दी जाए। ए न्यू लुक एंड ए नई शान बान बनाते हैं ढोलू शिव की!” राम चरन का प्रस्ताव था।
“तुम्हारे आने से ढोलू शिव भी जी गए राम चरन!” पंडित कमल किशोर को भूले दिन याद हो आए थे। “वरना तो मंदिर खाली पड़ा रहता था।”
“और आप भी खाली हाथ घर चले जाते थे।” राम चरन कहना तो चाहता था लेकिन चुप बना रहा था।
“गुड मॉर्निंग सर!” कस्तूरी किरन ने अपनी हाजिरी लगाई थी और राम चरन का अभिवादन किया था।
“कैसे हो कस्तूरी!” राम चरन ने औपचारिक प्रश्न पूछा था। “कल से काम शुरू करें – मंदिर का?” राम चरन पूछ रहा था।
पंडित कमल किशोर राम चरन के आने का अभिप्राय समझ अपने आसन पर आ कर विराजमान हो गए थे। उन्हें पता था कि कस्तूरी किरण एक जिम्मेदार आदमी था और मंदिर का काम पूरी लगन के साथ करता था।
“कंट्रोल सेंटर लगेगा – गर्भ गृह के अंदर!” राम चरन की आवाज धीमी थी। वो दोनों आदमी बावली की ओट में आ खड़े हुए थे। “इक्युपमेंट आ गया है। मंदिर का छिटपुट काम आरंभ करा दो। ये काम रात को कराना! और पंडित से खबरदार रहना।”
“इसे तो कुछ लेना देना ही नहीं है सर!”
“मुगालते में मत रहना कस्तूरी!” राम चरन ने हिदायत दी थी। “तुम इन पंडितों को नहीं जानते! सुमेद को देख लो! क्या तांडव रचा है पट्ठे ने?”
“मौलाना आबदी ने भी तो कहा है – ये देश किसी के बाप का नहीं है!” कस्तूरी ने हंस कर कहा था।
“बेवकूफ है ये मौलाना! सब को भड़काएगा, पागल।” राम चरन बिगड़ा था। “तुम से मुझे उम्मीद है कि ..”
कस्तूरी किरन चुप था। वह किसी गहरे सोच में डूबा था।
“जंग की तैयारियां चल रही हैं। गजवाए हिंद हो कर रहेगा!” सुमेद की आवाजें सुन रहा था कस्तूरी। “धर्मांतरण हो रहा है – सरे आम!” वह चीख-चीख कर कह रहा था। “आबादी बढ़ा रहे हैं – मुसलमान! देश हड़पने की होड़ मची है – ईसाई और मुसलमानों के बीच। हिन्दू अब भी सो रहा है।”
“लेकिन .. लेकिन अब तो हिन्दू जाग रहा है।” कस्तूरी किरन राम चरन को बताना चाहता था। लेकिन राम चरन चला गया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड