“महाभारत में हार और जीत को जीवन की समस्याओं और इनके समाधानों से परिभाषित किया गया है।” पंडित कमल किशोर अपनी ओजपूर्ण वाणी से जमा भक्तों को व्याख्यान दे रहे थे। “धर्म का अभिप्राय धारणा से है।” वह समझा रहे थे। “जो धारण करने योग्य है वही धर्म है।” उन्होंने निगाहें उठा कर जमा भक्तों को देखा था।
“नहीं पंडित!” किरण कस्तूरी ने राम चरन की आंखों में देखा था। “इस्लाम ही दुनिया का एक मात्र धर्म होगा!” वह हंसा था। “इस बार मुनीर चूकेंगे नहीं!” उसने वायदा बताया था। “भारत का नाम होगा मक्का-ए-मुसलमीन!” उसने राम चरन का हाथ अपने हाथ में लेकर दबाया था। “कितना फंड चाहिए मुनीर?” उसका प्रश्न था।
“मेरा एसेसमेंट है – सैंतीस हजार करोड़!” राम चरन ने उत्तर दिया था। “इसमें बांग्लादेश भी शामिल है।”
“हो जाएगा!” किरन कस्तूरी ने वायदा किया था। “तेल का खेल जब तक चल रहा है तब तक तो ..”
“वही खेल तो है!” राम चरन ने याद दिलाया था। “हिन्दुस्तान हमारे हाथों में होना ही चाहिए।” वह मुसकुराया था। “वरना .. हम ..”
इंद्राणी और सुंदरी ध्यान मग्न हो पंडित कमल किशोर के प्रवचन सुन रही थीं।
“अभी हम जो हैं और जैसे भी हैं यह हमारे अतीत की स्मृति, विचार, भावना, मान्यता और संस्कारों से मिला फल है। जैसी हमारी अवस्था होती है वैसी ही हमारी व्यवस्था होती है!” पंडित जी ज्ञान बांट रहे थे।
“अगली व्यवस्था हम करेंगे पंडित!” किरन कस्तूरी ने व्यंग किया था। “बहुत हुआ तुम्हारा ये ढोंग!” उसने राम चरन को सराहनीय निगाहों से देखा था। “अचूक निशाना मारा है तुमने मुनीर खान जलाल!” उसने सुंदरी की ओर इशारा किया था।
“बहुत होशियार औरत है!” राम चरन बता रहा था। “हमारी औरतें तो ..” एक बेहद कसैला स्वाद उसकी जुबान पर करकराया था। था कोई विगत का दंश जो अचानक टीस गया था। “ब्लाड़ी यूज़लैस!” राम चरन के होंठों से गाली निकल मुनीर को हैरान कर गई थी।
मुनीर जानता था कि सलमा का खून हुआ था। और वह जानता था कि सलमा ..
“कमाल ये कि आज तक कातिल का पता नहीं चला!” मुनीर की आंखों में असमंजस था। “जनरल मलिक ..”
“लीव इट!” राम चरन ने आदेश दिया था। “अब इधर ध्यान देते हैं!” उसने किरन कस्तूरी को सचेत किया था। “फंड्स आने वाले हैं। लेकिन पैसा आते जाते दिखाई नहीं देना चाहिए!” राम चरन ने हिदायत दी थी।
“अरे सर! यहां तो कोई सूंघ भी नहीं पाएगा! मैंने इस सूझ बूझ से सिस्टम ईजाद किया है कि ..” किरन कस्तूरी ने पूरी सूचना दी थी राम चरन को। “पैसा ऐसा रूप धारेगा कि ..” किरन कस्तूरी अपनी योजना बताता रहा था।
वो दोनों उस प्राप्त एकांत में तल्लीन हो कर अपने काम और इरादों को दोहराते रहे थे। दोनों बेहद प्रसन्न थे कि भारत का हिन्दू समाज बेखबर हुआ मंदिरों में पंडितों के प्रवचन सुन रहा था जबकि पूरी दुनिया में इस्लाम जागरूक था और अपने-अपने अभीष्ट की ओर बढ़ रहा था – लगातार!
“भाभी जी कब से इंतजार कर रही हैं!” सुंदरी ने राम चरन को उलाहना दिया था। “क्या औरतों की तरह गपिया रहे थे।” उसने राम चरन को झिड़क दिया था।
राम चरन और किरन कस्तूरी के चेहरे पीले पड़ गए थे।
उन दोनों ने मुड़ कर सुंदरी को देखा था। फिर उन दोनों की निगाहें ढोलू शिव की प्रतिमा पर जा टिकी थीं। एक डर था, एक भय था और एक शंका थी जो किसी भी चोर के मन में पुलिस को देख कर पैदा होती है।
ढोलू शिव जागृत शिव थे – उस दिन उन दोनों को एहसास हुआ था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड