सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स के आलीशान ऑफिस में राम चरन अकेला बैठा था।
ऑफिस एक दम मॉडर्न बना था। व्यापार की हर सुख सुविधा का ध्यान रख कर ही ऑफिस तैयार हुआ था। ऑफिस के बोर्ड पर सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स का नक्शा टंगा था। राम चरन को नजर उठाते ही सब कुछ दिखाई दे जाता था। बाहर झांकते ही उसे पूरे कॉम्पलैक्स का विहंगम दृश्य दिख जाता था।
राम चरन मालिक था। वह ढोलुओं का दामाद था। वह बिना किसी रोक टोक के कोई भी सौदा कर सकता था। वह करोड़ों का मालिक था। दुकान, मकान और कोई भी प्रॉपर्टी वह बेच सकता था। सब कुछ उसके हाथ में था। बैंक भी उसकी मुट्ठी में था। और राम चरन जो चाहे सो कर सकता था।
एक नई नवेली उमंग आज राम चरन के अंतर में उगी थी। एक ऐसी उमंग थी ये जो जीवन में पहली बार ही उसने महसूस की थी। जिंदगी इतनी मेहरबान हो जाएगी यह पहली बार ही हुआ था। और जो सफलता उसने उपलब्ध की थी वह भी बेजोड़ ही थी। उसका मन हुआ था कि अपनी इस सफलता की सूचना आज उन्हें दे दे!
बड़ी ही सावधानी से राम चरन ने आस पास को निरखा परखा था। फिर बड़े एहतियात के साथ फोन पर एक नम्बर डायल किया था।
“हैलो!” फोन पर उधर से एक आवाज आई थी। राम चरन ने आवाज को पहचान लिया था। “आई हैव गौट द कीज़ टू दि गेटवे ऑफ इस्लाम!” राम चरन ने शब्दों को चुन-चुन कर तरतीब से कहा था – आहिस्ता-आहिस्ता।
“गॉड ब्लैस यू!” उधर से इच्छित आशीर्वाद आया था।
इतनी खुशी, इतना उल्लास, इतना हर्ष और इतना उन्माद आज से पहले राम चरन ने कभी महसूस न किया था। उसने अपने चारों ओर घी के चिराग रोशन होते देख लिए थे। आज सारे संसार में इस्लाम का एक छत्र राज उसे आने वाले कल का सच लगा था।
“तुम ..?” निगाहें उठा कर राम चरन ने देखा था तो सामने सुमेद खड़ा था। राम चरन कुर्सी से उछल पड़ा था। उसकी सांस फूल गई थी। गला रुंध गया था। फटी-फटी आंखों से वह सुमेद को देखता ही रहा था।
सुमेद उसे कोई ऋषि कुमार लगा था। जो अचानक उसका रास्ता रोक सामने आ खड़ा हुआ था। राम चरन जानता था कि सुमेद हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने के लिए अब आंदोलन चला रहा था।
“नया मंदिर का महंत किरन कस्तूरी कहता है कि ..” सुमेद रोष में था।
“मैंने कहा है!” राम चरन संभल कर बोला था।
“मैं यही पूछने चला आया था।” सुमेद मुड़ा था और चला गया था।
राम चरन के शरीर में काटो तो खून न था।
इतिहास के पन्ने राम चरन की आंखों के सामने फड़फड़ा रहे थे। मुगल और ईसाई दोनों मिल कर भी सनातन को मिटा न पाए थे और इसका एक ही कारण था – ब्राह्मण! वह जानता था कि जिंदा आग में जलाने के बाद भी ब्राह्मणों ने धर्म परिवर्तन नहीं किया था। वह जानता था कि हिन्दू समाज का प्राण आधार ब्राह्मण ही है। ब्राह्मणों ने न जाने कितने साम्राज्य बनाए थे और बिगाड़े थे। सनातन और ब्राह्मण दोनों सहोदर थे – यह भी राम चरन जानता था। इन दोनों के साथ इस्लाम की हुई सीधी टक्कर न जाने क्यों राम चरन का मनोबल तोड़ रही थी।
राम चरन ने आज पहली बार अपना पहला दुश्मन देख लिया था।
मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड