कुंवर साहब और इंद्राणी ने जन्मेजय को सुंदरी की शादी की सारी हदें समझा दी थीं।

सुंदरी की शादी होने की सुगंध डब्बे में बंद रखनी थी – जन्मेजय को याद था। उसे ये भी याद था कि राम चरन कौन था, क्या था का प्रश्न नहीं पूछा जाना था। जन्मेजय ने भी सारा शादी का समारोह नए तौर तरीकों से तैयार किया था। जैसे किसी फिल्मी शादी का सेट लगा हो – बिल्कुल वैसा ही था सब कुछ।

सुंदरी चुप थी। उसे याद था अपनी पहली शादी का शोर गुल और धूमधाम और मचा हो हल्लड़। उसे महेंद्र का दूल्हा बना रूप और स्वरूप हूबहू याद था। उसे याद था कि उनकी शादी की चर्चा पत्र-पत्रिकाओं में खूब हुई थी। और उसका – दुल्हन बनी सुंदरी का वो रॉयल स्वागत भी याद था, जब पूरी मैसूर स्टेट उसके स्वागत में खड़ी मिली थी।

लेकिन आज की शादी का एक मात्र अभीष्ट राम चरन ही था।

होती शादी में मंत्रोच्चार सुनता राम चरन अतिरिक्त भावों से भरा था। उसे कुछ समझ तो नहीं आ रहा था पर वह मान कर चल रहा था कि पंडित कमल किशोर उन दोनों के शुभ की कामना कर रहे थे और उन्हें ढोलू शिव के आशीर्वाद से अनुग्रहीत करा रहे थे। हिन्दुओं के इन संस्कारों की कभी खिल्ली उड़ाता राम चरन आज उन्हें ग्रहण कर रहा था। कारण – वह जानता था कि बिना हिन्दू बने वह किसी भी हाल में अपनी चौपड़ नहीं जमा सकता था। लेकिन अब सुंदरी के साथ शादी करने के बाद तो ..

सनातन के सर पर बैठ इस्लाम का बीजा रोपण करना एक अधूरा ख्वाब था जिसे अब राम चरन ने सच करने का प्रण कर लिया था। कितने ही इस्लामी सूरमा आए थे, लड़े थे और खेत रहे थे। प्रमाण के लिए उनके मकबरे और मजारें पूरे भारत देश में विद्यमान थे। अब अंततः राम चरन ने उन्हें जीवित करना था और उनका जन्नत का सफर ..

जैसलमेर रंग बिरंगे रंग ढंग में डूबी थी। शादियों का सीजन था। देश से ही नहीं विदेशों से भी लोग शादियां रचाने जैसलमेर पधारे थे। एक सत रंगी भीड़ शहर के आर पार डोलती देखी जा रही थी। खूब चहल-पहल थी। सब अपने-अपने मामलों में मस्त थे। कोई किसी का परिचय जानने के लिए उत्सुक न था।

जन्मेजय को यही एक बड़ी सुविधा प्राप्त थी। यहां सब अजनबी थे लेकिन सब – सब कुछ जानते थे। पत्रकारों की कमी न थी। लेकिन वो – वो नहीं जानना चाहते थे जिसे लोग नहीं जानते थे।

बड़े ही उम्दा ढंग से शादी संपन्न हुई थी। सुंदरी ने अपने अभीष्ट को पा लिया था। राम चरन भी अपनी सफलता के कई सोपान चढ़ गया था। दोनों अपने-अपने आधे अधूरे सपने लिए मिल बैठे थे। दोनों जैसे एक दूसरे के पूरक थे और अब उनके नए-नए अभियान आरंभ होने थे।

सुंदरी को लगा था जैसे पुरुष को पाने की उसकी भूख का भोजन ही था – राम चरन। तन की भूख, मन की भूख, विचारो की भूख और एक वो भूख जिसे महेंद्र अधूरी छोड़ कर चला गया था – आज पूरी होनी थी। आज जैसे पहली बार ही उसने किसी पुरुष को छू कर देखा था। महेंद्र जैसा वहां कुछ भी नहीं था – केवल राम चरन था। महेंद्र एक पवित्र और प्रांजल विचार था। एक प्रज्वल भावना का नाम – महेंद्र था। वो एक अनूठा प्रेमी था। लेकिन राम चरन – जैसे कोई खरीदा आईटम हो ऐसा ही लगा था।

न जाने कैसे राम चरन के जेहन में जन्मेजय का चेहरा उग आया था।

जन्मेजय जैसे कोई अमोघ शक्ति था और उसे भस्म कर देना चाहता था। उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में ब्रह्मांड समाए लगे थे और उसका दानवीय आकार उसे बुरी तरह से सताने लगा था। भारत कमजोर नहीं है – वह कहता रहा था। क्या फिर वही गलती करोगे तुम जो ..

इस्लाम और सनातन के बीच हुए युद्ध राम चरन को याद थे।

“भागो ..!” राम चरन ने अपने अंदर की आवाज सुनी थी। “ये जन्मेजय ..?”

लेकिन तभी सुंदरी आ कर उसे लिपट गई थी।

राम चरन को आज पहला जीवन दान मिला था।

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मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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