“राम चरन कहां है?” आसन पर मौन बैठे पंडित कमल किशोर पर सुंदरी ने गोली की तरह प्रश्न दागा था।

पंडित जी चौंक पड़े थे। सामने खड़ी सुंदरी को उन्होंने एक चुनौती की तरह देखा था। वो डर गए थे। सुंदरी के बदन से आती मोहक सुगंध ने उन्हें जगा सा दिया था। उन्हें याद हो आया था कि सुंदरी विधवा थी। लेकिन सुंदरी दिल्ली के महिला समाज की फॉरवर्ड महिलाओं में से एक थी। महेंद्र – प्रिंस महेंद्र के साथ सुंदरी की शादी उन्होंने ही तो संपन्न कराई थी। एक परम विशिष्ट जोड़ा बना था। लेकिन विधना का विधान कोई पंडित भी कहां बांच पाता है।

अचानक उन्हें सुंदरी का पूछा प्रश्न सताने लगा था।

“घर का खाना ..” घबराते हुए पंडित जी बोले थे।

“मुझे घर का खाना नहीं खाना!” सुंदरी की आवाज तल्ख थी। उसे पंडित कमल किशोर का ढुलमुल व्यक्तित्व बिलकुल पसंद नहीं था।

“घर का खाना – माने ..” पंडित जी संभल कर बोले थे। “वहीं मिलेगा राम चरन!” वो सुंदरी को समझाने का प्रयत्न कर रहे थे। “परवतिया मोड़ पर कालू रेहड़ी लगाता है। वह .. वहीं ..”

सुंदरी का धीरज टूटने लगा था। वह कनफ्यूज थी। उसे पंडित कमल किशोर कोई निरा बेवकूफ लगा था। अब वह कोई निर्णय न ले पा रही थी। उसने कार स्टार्ट की थी और परवतिया मोड़ की ओर दौड़ा दी थी।

परवतिया मोड़ पर एक छोटा मेला जैसा लगा था। घर का खाना खाने अब लोग रुटीन में आने लगे थे। अच्छी भीड़ जमा थी। कुछ लोग खाना खा रहे थे तो कुछ लोग इंतजार में खड़े थे। सुंदरी ने पहली नजर में स्टूल पर बैठे कालू को देख लिया था। उसे घोर निराशा हुई थी। वह आग बबूला होने को थी कि तभी उसकी दूसरी नजर ने थाली परोसते राम चरन को देख लिया था। राम चरन बड़ी ही सफाई से थालियां परोस रहा था और ग्राहकों को निपटा रहा था।

“ये .. ये .. कौन कपड़े पहने हैं राम चरन ने?” सुंदरी ने स्वयं से प्रश्न पूछा था। “वो डिजाइनर कपड़े? वो .. पीतांबर पहने कान्हा जैसा रूप स्वरूप ..?” वह प्रश्न पूछे जा रही थी। “और ये गंदा संदा गंधाता कोई राम चरन जैसा ही ..?”

सुंदर अब पागल होने को थी।

कैसा अनूठा इल्यूजन था। ये कैसी मिस्ट्री थी? किस तरह सुंदरी का दिमाग भ्रम से लबालब भर गया था। वह चाह कर भी राम चरन के उस कृष्ण अवतार वाले कन्हैया के रूप स्वरूप को पैदा न कर पा रही थी।

“ही इज नॉट द वन – आई सॉ?” सुंदरी ने स्वयं को आश्वस्त किया था।

नयन विस्फरित सुंदरी चारों ओर हंसों की तरह मोती चुगते ग्राहकों को घर का खाना खाते देखती रही थी। राम चरन को तो निगाहें उठा कर देखने तक की फुरसत ही नहीं थी। ग्राहकों की भीड़ उसके सर पर सवार थी। कालू अपने खयालों में खोया हुआ था। भोंदू काम की कसरत से पसीने-पसीने हो रहा था।

सुंदरी ने कार स्टार्ट की थी। कार एक लंबी उछांट लगा कर परवतिया मोड़ को काट सड़क पर सरपट दौड़ रही थी! सुंदरी का मन था कि इतनी तेजी से भागे कि सामने पसरे आसमान को भी पार कर जाए!

लेकिन आश्चर्य ये था कि राम चरन अब भी उसे शिद्दत के साथ सताने साथ ही चला आया था!

ये इश्क कभी मरता क्यों नहीं – सुंदरी सोचती ही रही थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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