कालू की ठेली के सामने आज बहुत भीड़ लगी थी।

राम चरन के पास आज बहुत काम था। उसने अपनी पूरी सामर्थ्य झोंकी हुई थी ताकि कालू को थालियों की टूट न पड़ जाए। कालू भी पूरी फुर्ती और चुस्ती के साथ थालियां लगा-लगा कर आगे सरका रहा था और नोट बटोर रहा था।

“हिन्दू राष्ट्र बना कर ही दम लेंगे।” एक युवक ऊंची आवाज में एक जयघोष जैसा कर रहा था। “अब वक्त आ गया है .. हमें ..”

“पागल है!” दूसरे युवक ने प्रतिरोध किया था। “सैक्यूलर हैं हम – भाई-भाई!” उसने हाथ फैला कर सबको सुनाया था। “हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई – हम सभी हैं भाई-भाई!” वह हंस रहा था। “इतना आसान नहीं है दोस्त! तुम क्या सोचते हो – ये लोग ..?”

“देश तो हमारा है!” दूसरा युवक पहले के समर्थन में बोला था। “हम चाहें तो बनाएं इसे हिन्दू राष्ट्र!”

“देश उनका भी तो है!”

“कैसे? ये लोग यहां के कहां हैं! इस्लाम और इसाई ..?”

“यहीं के तो हैं सब! कनवर्ट ही तो हुए हैं!” एक और राय आई थी।

काम करते-करते राम चरन के कान खड़े हो गए थे। उसने तनिक दृष्टि घुमा इन सब युवकों को गौर से देखा था।

सफेद कमीजें, खाकी पेंट और काले जूते सबने पहने थे। सब के पास लाठियां थीं। सब ने काली टोपी पहनी हुई थी। सभी युवक थे। राम चरन उन्हें देख कर कोई कयास न लगा पा रहा था। उसने सोचा था कि बाद में कालू से पूछ लेगा – उनकी कैफियत!

घर का खाना आज और भी जल्दी बिक गया था। आज वक्त से पहले ही वो दोनों फारिग हो गए थे। खाना खाने के बाद राम चरन ने सहज भाव से उन लड़कों के बारे पूछा था।

“अरे, ये लोग!” कालू ने हंसते हुए बताया था। “स्वयं सेवक हैं! माने कि आर एस एस के हैं। ढोलू सराय के परेड ग्राऊंड में इनका कैंप लगा है। एक सप्ताह तक चलेगा। तब तक तो हमारी चांदी है।” कालू खुश-खुश बताता जा रहा था।

“ये लोग – क्या कह रहे थे?” राम चरन ने फिर पूछा था।

“कुछ नहीं यार! ये शगूफे चलते ही रहते हैं। अब कहते हैं – हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे। हाहाहा .. बच्चे लोग हैं! इन को क्या पता क्या होता है हिन्दू राष्ट्र?” कालू ने राम चरन को समझाया था।

“क्या होता है हिन्दू राष्ट्र?” राम चरन ने फिर पूछा था।

कालू चुप था। क्या बताता कालू? उसे तो खुद भी कुछ पता नहीं था।

मंदिर पर जब कालू ने राम चरन को छोड़ा था तो दोनों की निगाहें मिली थीं। कालू को लगा था कि आज राम चरन हिन्दू राष्ट्र को लेकर चिंतित था। लेकिन क्यों? उसे क्या लेना देना था – किसी हिन्दू राष्ट्र से?

“जाएगा क्या ..?” अचानक कालू के मन में प्रश्न उठा था। “अरे यार! और तनिक दो चार हफ्ते रुक जा!” कालू ने स्वयं से विनय की थी। “फिर तो टटोल लूंगा कोई ..”

कालू को जल्दी घर लौटा देख श्यामल सकते में आ गई थी।

“क्या हुआ ..?” उसने सीधा प्रश्न पूछा था। “चला गया राम चरन?”

“नहीं, गया तो नहीं!” कालू भी गंभीर था। “लेकिन आज वो कैंप के लड़के – स्वयं सेवक न जाने क्यों उसे डरा रहे थे?”

“अरे, वो क्या है!” श्यामल चहकी थी। “शाखा में तो आस पड़ौस के बच्चे भी जाते हैं।” उसने कालू को सूचना दी थी।

“क्या ..?” कालू भी तनिक चौंक गया था। “ये लोग भी शाखा में जाते हैं?” उसने मुड़ कर श्यामल को पूछा था।

श्यामल ने कोई उत्तर ने दिया था। वह हंसती रही थी लेकिन कालू एकाएक हिन्दू राष्ट्र को लेकर सजग हो उठा था।

“कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाएं!” कालू ने धीमे से श्यामल को सचेत किया था। “वो लोग हिन्दू राष्ट्र बनाने की बातें कर रहे थे।” कालू ने सचेत करती निगाहों से श्यामल को देखा था।

Major krapal verma

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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