इतवार का दिन था। अवस्थी इंटरनेशनल के प्रांगण में भीड़ बढ़ती जा रही थी।

नए पुराने सभी लोग थे। सभी की आंखों में बुझे-बुझे सपने थे। सभी एक आशा निराशा की जंग लड़ रहे थे। सब चुप थे। एक काना-फूसी चल रही थी। अपने-अपने कयास हर कोई लगा रहा था। उल्लास या खुशी की कोई उमंग वहां थी ही नहीं।

एक छोटी स्टेज बनाई गई थी। दो कुर्सियां लगी थीं और माइक टेबुल पर धरा था। लोगों के बैठने के लिए फर्श बिछा था। कुछ कुर्सियां भी पीछे लगी थीं जिन पर कंपनी के अधिकारी और वरिष्ठ लोग आ आकर बैठ रहे थे। कोई चुनाव जैसा लग रहा था!

लेकिन सभी जानते थे कि वो अजय इंटरनेशनल की मातमपुरसी के लिए जमा हो रहे थे।

लोगों को वो दिन भी याद थे जब अवस्थी इंटरनेशनल अपने चरम पर थी। कितनी गहमागहमी रहती थी। कितनी उमंगें, उल्लास, आशाएं और अभिवादन गूंजते रहते थे। एक जीवंत सा संसार ही था जहां सब कुछ रचा बसा था।

लेकिन अजय अवस्थी अकाल मृत्यु के बाद ही सब कुछ बह गया था।

किसको क्या मिलेगा – लोग अपने-अपने गणित बिठा रहे थे। सब जानते थे कि जो भी फर्म की बिक्री से मिलेगा उसी का बंटवारा होगा। फर्म घाटे में चल रही थी सब जानते थे।

अविकार और अंजली आए थे और बिना किसी हलचल के स्टेज पर पड़ी कुर्सियों पर जा बैठे थे।

बड़े बाबू ने एक मोटी फाइल मेज पर ला कर रख दी थी।

“साथियों!” अविकार ने माइक में कह था। लोग सतर्क हो कर बैठ गए थे। वो जानते थे कि अब बम का गोला गिरेगा। “अवस्थी इंटरनेशनल न बिकेगा और न बंद होगा!” अविकार का स्वर संयत था।

एक सन्नाटा छा गया था। लोग न हंस पाए थे न रो पाए थे। कुछ बात समझ न आई थी। अविकार तो कल का छोकरा था। उसे समझ ही क्या थी .. जो ..

अचानक ही तालियां बज उठी थीं। अचानक ही अविकार और अंजली के नाम के नारे लगने लगे थे। अचानक ही एक उल्लास का सागर उमड़ पड़ा था। देखते-देखते ही लोगों में जान लौट आई थी। क्या नए और क्या पुराने सभी एक साथ प्राणवान हो उठे थे। सभी जैसे एक साथ जी उठे थे।

“संस्था चलेगी और ..” अविकार ने लोगों को चाहत पूर्ण निगाहों से देखा था। “आप लोग ही चलाएंगे!” अविकार मुसकुरा रहा था। “हां! आप लोग – हम लोग – हम सब मिलकर चलाएंगे अवस्थी इंटरनेशनल को।” अविकार की आवाज में गजब का आत्मविश्वास था। “हम सब का होगा अवस्थी इंटरनेशनल! अब से – आज से सबओर्डिनेट कल्चर का अंत आ जाएगा! यस सर और थ्री बैग्स फुल का जमाना समाप्त!” उसने उंगली उठा कर कहा था। “अब न कोई हुजूर होगा और न कोई मजूर! अब हम सब मालिक होंगे मित्रों! हम सब कंपनी के शेयर होल्डर होंगे और संचालक होंगे।”

फिर से तालियां बजी थीं। फिर से जय जयकार हुआ था। हाथ उठा-उठा कर लोगों ने अविकार को सहमति जताई थी। सब को पसंद आई थी अविकार की घोषणा।

“निराश होने की जरूरत नहीं है – हमारे पुराने सीनियरों को।” अविकार ने फिर से कहा था। “उन्हें भी निकाला नहीं जाएगा! हम अब नई अवधारणा ले कर चलेंगे जहां अवस्थी इंटरनेशनल विल बी अवर गॉड मदर! हम उम्र भर इस मां की गोद में बैठ कर कमाएंगे खाएंगे और मोद मनाएंगे!” हंसा था अविकार। “ये नया सोच है – वक्त की मांग है और नया काम है। जिसे हमें मिल कर कामयाब बनाना होगा, दोस्तों!” अविकार ने अपनी बात समाप्त की थी।

लगा था एक नए युग का आरंभ हुआ था। मालिक और मजूर के रिश्तों की मौत हुई थी। सब एक बराबरी पर आ खड़े हुए थे – अचानक!

अविकार ने जीने की एक नई राह एक आविष्कार की तरह ईजाद की थी!

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading