कोर्ट में अविकार की गवाही होनी थी। लेकिन गुनहगार गाइनो अभी तक पहुंची नहीं थी।
अविकार और अंजली अनासक्त भाव से कुर्सियों पर बैठे थे। अविकार का मन डर-डर कर गाइनो ग्रीन के बारे सोचने लगता। लगता – गाइनो कोई ग्रह थी – अनिष्टकारी ग्रह जो उसके ऊपर आ चढ़ी थी। पढ़े लिखे रेंट निकोलस के ग्रैजुएट को फसा कर गाइनो ने पागल बना दिया था। और वो ..
अचानी कोर्ट रूम में खलबली मच गई थी। पागल था कोई जो पेशी पर आया था। दो पागल खाने के सेवक उसे जकड़े कोर्ट में लाए थे और जज साहब के सामने खड़ा किया था। दूसरी ओर एक औरत आ कर खड़ी हो गई थी।
“गंगू!” अचानक ही अविकार के होंठों से एक नाम तारे की तरह टूटा था। “ओ गाॅड! ही इज गंगू! उसने अंजली को सुना कर कहा था।
“फिर तो वो औरत भी शोभा होनी चाहिए?” अंजली ने आहिस्ता से पूछा था।
“हां! होनी तो चाहिए। लेकिन .. लेकिन शोभा तो ..”
“तुम्हारे वकील साहब कहां हैं?” जज साहब का प्रश्न गूंजा था।
“नहीं हैं!” शोभा का उत्तर था। “जज साहब! मैं तो सड़कों पर भीख मांगती हूँ। मेरा बेटा ..” उसने साथ खड़े बेटे की ओर देखा था। “हमें घर से निकाल दिया है। हमारी आधी जायदाद पर कब्जा कर लिया है। इन्हें पागल – हैं तो नहीं पागल लेकिन मुझसे गलती हुई जज साहब कि मैं झूठ बोल गई थी!” रोने लगी थी शोभा।
“क्या पता कि तुमने तब झूठ बोला था या अब झूठ बोल रही हो?” जज साहब का प्रश्न था। “सरकारी वकील ले लो। मैं ऑडर कर देता हूँ। बिना वकील के तो केस न चलेगा!” उनका कहना था।
गंगू ने कुर्सी पर बैठे अविकार को देख लिया था।
दोनों की निगाहें मिली थीं तो एक शुभ संदेश का आदान प्रदान हुआ था। अविकार को अपना वायदा याद था। अविकार मानता था कि अगर गंगू उसे पागल खाने से भागने की सलाह न देता तो उसका भी यही हाल होता! गाइनो उसे बेच कर कभी की चली गई होती! लेकिन .. शोभा ..?
“गाइनो नहीं आएगी। बीमार है!” सूचना कोर्ट में पहुंची थी।
केस में अगली तारीख पड़ गई थी तो अविकार और अंजली बाहर चले आए थे।
“मैं दो बात कर सकता हूँ इनसे?” अविकार ने पागलखाने से आए सेवादारों से प्रार्थना की थी।
“नहीं साब! हुक्म नहीं है। पागल का क्या पता ..?
“कोई बात नहीं!” अविकार मान गया था। “डोंट वरी गंगू!” अविकार ने ऊंची आवाज में कहा था। “आई विल गेट यू आउट फ्रॉम दिस मेस!” उसने वायदा किया था।
और अंजली ने शोभा को संभाला था!
“आओ! हमारे साथ घर चलो!” अंजली का स्वर स्नेहिल था। “चलो बेटे!” अंजली ने बेटे के सर पर हाथ रक्खा था।
अविकार को बहुत अच्छा लगा था। लगा था – आज वो गंगू का ऋण चुका रहा था। लगा था – अच्छाई सच्चाई की अंत में जीत होती है। गंगू के बड़े भाई को अब जायदाद में अपने हक से भी हाथ धोने पड़ेंगे! गाइनो की तरह उसे भी जेल जाना पड़ेगा और फिर ..!
मैं ही गलत रास्ते पर निकल गई थी बहन जी!” शोभा बता रही थी। “मुझे बहका लिया था मेरी जेठानी ने!” उसकी आंखें नम हो आई थीं। “अपने ही मरद को मैंने पागल बना दिया!”
“बुरा वक्त आता है तो सब संभव हो जाता है, शोभा!” अंजली समझा रही थी। “अब लौटेगा तुम्हारा वक्त!” अंजली ने मुसकुराकर कहा था। “अच्छा बुरा तो सब चलता है।”
अविकार ने शोभा को चोर निगाहों से देखा था। गंगू की बात सच थी। शोभा बहुत सुंदर थी। गंगू के साथ उसकी शादी उसके बड़े भाई के लिए असह्य हो उठी होगी। तभी उसने ये रास्ता चुना होगा और गंगू को पागल बनाने का और शोभा को अपनाने का षड्यंत्र रचा होगा!
गलत रास्तों पर जाने के बाद रास्ते स्वयं ही साथ छोड़ जाते हैं – जैसे कि गाइनो के साथ हुआ और अब गंगू का भाई भी जेल जाएगा!

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड