“ए ग्रैजुएट फ्रॉम सेंट निकोलस लंदन – अविकार हो सकता था!” अमरीश ने स्वीकार में सर हिलाते हुए माना था।

“और वनस्थली जयपुर में पढ़ी अंजली भी अविकार की अंजू हो सकती थी पापा!”

“हां! हो सकती थी नहीं – है!” सरोज ने बात काटी थी। “परमात्मा ने हमारी टेर सुन ली। ईश्वर से बड़ा कोई कोर्ट कचहरी नहीं होता!”

“मेरा शक सच निकला अंजू!” अमरीश ने प्रसन्न होते हुए अंजली को संबोधित किया था। “तुमने सच को खोज लिया बेटी! मैं .. मैं ..!” भावुक होने लगे थे अमरीश। “मिलना चाहूंगा अविकार से .. ताकि ..”

“भावुक होने की जरूरत नहीं है पापा!” अंजली ने आगाह किया था अमरीश को। “ये बड़ी ही ट्रिकी सिचुएशन है।”

“अगर गाइनो को भनक भी लग गई तो गजब हो जाएगा!” सरोज ने भी अंजली की बात बड़ी की थी। “और उसका वो शातिर वकील और हमारा घोर दुश्मन मीडिया – न जाने क्या क्या स्वांग भरेंगे और गाड़ी फिर पटरी से उतर जाएगी!”

“तो और क्या करें?” अमरीश गंभीर थे।

“एक योजना बद्ध कार्यक्रम बनाते हैं पापा!” अंजली ने सुझाव दिया था। “अब आप ये केस मुझ पर छोड़ दें!” वह तनिक मुसकुराई थी। “लेट मी फाइट द केस!” उसका सुझाव था। “आप तो बीमार हैं! अब आप मरणासन्न हैं। आप की तो बचने की कोई उम्मीद ही नहीं है।” अंजली ने सीधा अमरीश की आंखों में घूरा था। “यही संदेश जाएगा!” उसका निर्णय था।

अमरीश और सरोज दोनों ने अपनी बड़ी हो गई बेटी को एक साथ घूरा था!

“तुम कहना क्या चाहती हो?” अमरीश पूछ रहे थे।

“लेट्स प्ले दि गेम इंटैलीजेंटली!” अंजली ने हिदायत दी थी।

“मेरा मन तो अविकार से मिलने का है अंजू!” सरोज से रहा न गया था। “कितना ..!”

“सेंटी होने का वक्त नहीं है मां!” अंजू ने वर्ज दिया था सरोज को। “यू कैन प्ले द गुड मदर इन लॉ गेम लिटिल लेटर!” उसका सुझाव था। “अभी के लिए सब ज्यों का त्यों रहेगा! हां! हम लोग हर शनिवार को आश्रम आते रहेंगे। क्योंकि पापा बहुत बीमार हैं और ..”

“अविकार ..?” अमरीश कुछ कहना चाहते थे।

“पापा!” अंजली ने उन्हें रोका था। “अविकार और गाइनो अब एक नहीं हैं। वह गाइनो के डर से ही यहां आ कर छुपा है। उसी के डर को बरकरार रखते हुए हमने ..”

“गाइनो ..?” अमरीश फिर बोले थे।

“मैं सब जानती हूँ! बहुत शातिर है। कहां से उड़ कर आई है और कहां निशाना मारा है! लेकिन अब हम भी अपने तीर को तरकस में संभाल कर रक्खेंगे! जैसे ही दुश्मन का सीना सामने आएगा – हम वार करेंगे! इससे पहले तो प्रीमेच्योर हो जाएगा पापा!”

“ठीक कह रही है अंजू!” सरोज ने हामी भरी थी।

“इस मामले में अजय अजब ही बेवकूफ था!” अमरीश कोसने लगे थे अपने मित्र को। “वो सोचता था – अंग्रेज और अंग्रेजी ही सब कुछ है। जिसे अंग्रेजी नहीं आती वो गधा है! और अविकार को भी सेंट निकोलस भेज कर अंग्रेजों का गुलाम बना दिया!”

“नहीं पापा! अविकार अब किसी का गुलाम नहीं है। अब तो वो पक्का भारतीय है। सेंट निकोलस का जहर उतार दिया है आश्रम वालों ने!” हंस रही थी अंजली। “सच कहूँ पापा तो मेरा भी मन मोह लिया है आश्रम की हवा ने!”

“हमें तो अविकार मिल गया – यही बहुत है अंजू!” सरोज बोली थी। “जो होनहार होता है – होता है।” वह प्रसन्न थी।

अंजली की मंजिल भी अब आसान थी। उसे भी उसके घनश्याम मिल गए थे। अब उसकी जीने की राह तो खुली पड़ी थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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