हॉलीवुड में जैसे कोई दरबार लगा हो – ऐसा प्रतीत हो रहा था।

फिल्म जगत के पूरे संसार के विचारक, विद्वान, निर्माता और अभिनेता वहां उपस्थित थे। सब के पास काल खंड को लेकर अपनी अपनी राय थी। लेकिन एक राय थी जो सर्व सम्मति से पास हो चुकी थी। सब ने मान लिया था कि काल खंड ने इतिहास को आधार बना कर यह सिद्ध कर दिया है कि सेक्यूलरिज्म का बड़ा विचार – इच्छित और सर्व विदित विचार विफल हो गया है।

सभी सामूहिक रूप से शांति पूर्वक और आपसी हेल मेल के साथ रहते एक समाज का उदाहरण भारत भी सिद्ध नहीं कर पाया था जबकि उम्मीद लगाई गई थी कि हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई – आपस में हैं सब भाई भाई का नारा अवश्य सफल होगा। काल खंड गवाही दे रहा था कि यह मात्र एक विचार था और अब विफल विचार बन कर सामने आ गया था क्योंकि हिन्दू, मुस्लिम और सिक्ख ईसाइयों का आपसी वैमनस्य खुलकर सामने आ गया था।

“सेक्यूलरिज्म जहां विफल होती है – वहां सफल क्या होगा, अब इसका उत्तर कौन देगा?” यह पहला प्रश्न था जो सभा में गूंजा था। जर्मनी के विचारक वॉन पूछ रहे थे।

“विक्रांत ही देगा!” वोल्गा बोली थी। “दर्द इसने दिया है तो दवा भी यही देगा!” वोल्गा ने कहा था तो सभी लोग हंस पड़े थे।

और अब सब की निगाहें विक्रांत पर केन्द्रित हो गई थीं।

एक सजीला-छबीला और अद्वितीय पुरुष उन संसार के जमा रंग कर्मियों के सामने आ खड़ा हुआ था। उसकी चर्चा थी कि फिल्म काल खंड का वह स्वयं रचयिता था और काल खंड में जो वह कह गया था उससे हर कोई सहमत था। साथ साथ हिल मिल कर रहने से भी जाति, धर्म, रंग रूप और आदत – आचरण के भेद भरे नहीं जा सकते थे।

“मैं नहीं – इसका उत्तर वक्त देगा!” विक्रांत ने अपनी मंत्र-पूत वाणी में कहा था। कुछ लोग हंस गये थे, कुछ लोग मुसकुराए थे तो वोल्गा का चेहरा आरक्त हो गया था। “काल खंड में मेरी जिम्मेदारी बस इतनी है कि मैंने जो अनकहा रह गया था उसी को कह सुनाया है।”

अचानक ही तालियां बज उठी थीं। विक्रांत अपनी सीट पर बैठ गया था।

“ठीक कहा है विक्रांत ने!” रॉबर्ट्स ने उसका समर्थन किया था। “आज – माने कि अब जो न्यू वर्लड ऑडर उभर कर सामने आ रहा है वही हमारे लिए हमारे उत्तर भी खोज कर ला रहा है .. कि ..”

“हम किस कदर लड़ें, विध्वंस करें और संसार को समाप्त कर दें?” फ्रांस के फिल्म मेकर हैरी ने उद्विग्न होते हुए पूछा था। “हम यहां इसलिए आए हैं कि ऐसी कोई फिल्म बनाएं जिसके जरिए यह विध्वंस रोका जाए और शांति स्थापित की जाए!” उन्होंने याद दिलाया था। “युद्ध के बाद शांति की बात को मैं व्यर्थ मानता हूँ!”

एक असमर्थता हवा पर झूल आई थी। सब लोग किसी अंजान खतरे को सूंघ कर सचेत हुए लगे थे।

“सर! लड़ना तो एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है!” विक्रांत ने उठ कर सभा को संबोधित किया था। “हम सबसे पहले अपने कुविचारों से लड़ते हैं, फिर परिवार में लड़ते हैं, उसके बाद पास पड़ौस में लड़ते हैं, प्रांत में लड़ते हैं और देश और दुनिया में लड़ते हैं! लड़े बिना तो मानव रह ही नहीं सकता सर!”

तालियां बज उठी थीं। विक्रांत का विचार स्थान पा गया था।

“फिर इसका विकल्प क्या है मिस्टर विक्रांत?” अबकी बार प्रश्न जूलिस ने किया था। ये स्पेन के विचारक थे।

“इसका विकल्प है धर्म युद्ध!” विक्रांत ने सीधे सीधे उत्तर दिया था। “और धर्म युद्ध का अर्थ है अच्छाई को बुराई से लड़ाना!” विक्रांत ने आंखें उठा कर जमा लोगों को देखा था।

“क्या आप इस पर थोड़ा और प्रकाश डालेंगे?” चीनी डायरेक्टर शी ने आग्रह किया था।

“महाभारत के कौरव और पांडव!” विक्रांत ने बताया था। “पांडव धर्म के पक्ष में थे तो कौरव अधर्म का अवतार थे! पांडव केवल पांच थे तो कौरव सौ थे। अच्छाई और बुराई का यही अनुपात होता है!” हंसा था विक्रांत। “बुराई आसानी से हार नहीं मानती जबकि अच्छाई लड़ना ही नहीं जानती!”

फिर से तालियां बज उठी थीं।

“आप का ये विचार – मिस्टर विक्रांत ..?” शी ने फिर से प्रश्न किया था।

“मेरा विचार नहीं है ये तो सनातन का सिद्धांत है!” विक्रांत ने बात साफ की थी। “जब जब धर्म की हानि होती है तब तब युद्ध होने के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचता!”

“मेरे लिहाज से मिस्टर विक्रांत की बात में दम है।” कैली ने समर्थन में कहा था। “युद्ध होना भी अवश्यंभावी होता है!” उसकी राय थी। “युद्ध के बाद ही शांति की संभावना बनती है और बुराइयों को हराने के लिए हथियार उठाना भी आवश्यक हो जाता है।”

एक विचार प्रकाश में आया लगा था। लगा था – युद्ध और शांति दोनों ही अपने पर्यायवाची थे! एक के बिना दूसरा अधूरा था और विचार भी संपूर्ण नहीं था।

“फ्रैंकली स्पीकिंग विक्रांत सर हम सब मिल कर ग्लोबल फिल्में बनाना चाहते हैं।” वोल्गा ने जमा महानुभावों का मनसूबा सामने रक्खा था। “आपकी फिल्म काल खंड के रिव्यू से लगा कि आप हमें कोई स्टोरी सजैस्ट कर सकते हैं। क्या आप ..?”

वोल्गा चुप हो गई थी। जो मनसूबा सामने आया था वो सबका सोचा समझा विचार था। चूंकि संसार के सामने युद्ध का संकट गहराने लगा था ओर लग रहा था कि अब संघियों और समझौतों का युग समाप्त हो गया है तो इस स्थिति में अगर कोई इस तरह की स्टोरी ली जाए कि दूध और पानी ..

“वोल्गा जी!” विक्रांत का स्वर विनम्र था। “अगर हम एक बात समझ लें तो हमें स्टोरी लाइन भी समझ आ जाएगी! मैं किसी को क्यों मारता हूँ? एक – कि उसने मेरा सर्वनाश कर दिया है। दो – कि मैंने उसका सर्व नाश कर दिया है! अब बात आती है – कर्म और अकर्म की – धर्म और अधर्म की!” विक्रांत रुका था। सभी जमा सज्जनों के कान खड़े हो गए थे।

“एक में मेरा कर्म मेरे धर्म के साथ है तो दो में मेरा अकर्म मेरे अधर्म के साथ है। अब एक में मैं हीरो हूँ तो दो में मैं विलेन हूँ!”

“आप कहना क्या चाहते हैं?” वॉन ने विक्रांत को टोका था।

“यही कि हम सबसे पहले कौन हीरो है और कौन विलेन यही तय कर लें तो स्टोरी लाइन सीधी हो जाएगी।” विक्रांत बताने लगा था। “आज आप महसूस करेंगे कि सनातन का उदय आरम्भ हो गया है।” विक्रांत ने संकेत दिया था। “चाहे यूरोप हो, अमेरिका हो, मध्य एशिया हो या पूर्व हो! लोगों का भौतिकवाद से मन भर गया है।” तनिक हंसा था विक्रांत। “इनफ इज इनफ!” उसने जब ठहाका लगाया था तो सभी हंस पड़े थे।

“अगर मैं कहूँ कि आज के संदर्भ में हम सभी संलिप्त हैं तो क्या झूठ कहूंगा?” विक्रांत ने आम प्रश्न पूछा था। “धन कमाने के लिए हम धरती को खोद रहे हैं, समुंदर को भी सुखाए दे रहे हैं, बर्फ पिघलती जा रही है और सूरज और चांद अपनी मौत की घड़ियां गिन रहे हैं। आज नहीं तो कल .. प्रकृति अपने हथियार उठाएगी और इसके प्रमाण भी सामने आने लगे हैं!”

सभा में सन्नाटा भरा था। एक एहसास हर किसी के पास आ बैठा था। सफल हुआ मानव अब असफल और दानव बन गया था। भूख नहीं थी पर वो भूखा था। सब कुछ होने के बाद भी वो नंगा था।

“अब मानव से दानव बने इस राक्षस को मारने के लिए कौन आए और कहां से आए?” खड़ा खड़ा विक्रांत पूछ रहा था।

अजीब प्रश्न था। विक्रांत उन सब के सामने अचल खड़ा था।

“आप ही बताइए न?” कैली ने आग्रह किया था।

“सत युग के आने की आगाज आ रही है।” विक्रांत बताने लगा था। “अच्छाइयों के अंकुर उगने लगे हैं! ज्ञान का संज्ञान इन उगने वाले अंकुरों के साथ आएगा और दुष्टों के संहार की साधना भी साथ लाएगा! हां! इसके बाद हम सब को मरना होगा!”

“क्यों?” वोल्गा उछल पड़ी थी।

“इसलिए कि हम सब पॉल्यूटिड हैं! कोई भी तो नहीं बचा वोल्गा!” हंसा था विक्रांत।

सभी लोग हंसने लगे थे। सभी ने स्वीकारा था कि आज अधर्म अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया था।

“लेकिन हमारा संहारक होगा कौन मिस्टर विक्रांत?” शी का प्रश्न आया था।

“भविष्य!” विक्रांत ने सूक्ष्म उत्तर दिया था। “अज्ञात भविष्य के पास सारे उत्तर हैं मिस्टर शी! परिवर्तन प्रकृति की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है – गीता स्पष्ट कहती है।”

“लेकिन मिस्टर विक्रांत मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ कि अगर हम इस स्टोरी को अपनाएं तो हमारे करैक्टर्स कहां से आएंगे?” वोल्गा पूछ रही थी।

“वो आपका काम है मैडम!” विक्रांत हंसा था। “इट्स टोटल इमैजिनेशन!” उसने इशारा किया था।

“ये भी बताएं मिस्टर विक्रांत कि इस फिल्म का नाम क्या होगा?” कैली पूछ रही थी। अभी तक का सारा प्रारूप लोगों की समझ में आ गया था।

“मेरे विचार से तो इसका नाम त्रिकाल ही ठीक रहेगा!” विक्रांत का उत्तर आया था। “ये एक तरह से युगांतर ही है।” विक्रांत ने अपनी राय सामने रख दी थी।

“वाह! खूब नाम सुझाया है! त्रिकाल मीन्स ..!” वॉन खुश हो गया था।

सभा एक स्वस्थ संदेश लेकर समाप्त हुई थी।

मेजर कृपाल वर्मा

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