आदमी की होती तैयारियों की खबर शशांक का कलेजा चीरे दे रही थी।

शशांक तो क्या सभी जानते थे कि आदमी कैसे लड़ता था। उसके पास लड़ने के लिए सेनाएं थीं। उसके पास गोला बारूद थे और तोपें और बंदूकें भी थीं। उसके पास तो लड़ाकू विमान तथा पानी के भीतर लड़ने वाली पनडुब्बियां तक थीं।

लेकिन कमाल ये था कि आदमी ने इन में से किसी भी विकल्प को उनसे लड़ने के लिए नहीं चुना था। सेनाएं छावनियों में मस्त पड़ी थीं। न कोई हवाई जहाज हमले की तैयारी कर रहा था और न ही कोई पानी का जहाज हरकत में आया था। फिर हो क्या रहा था?

लेकिन यह तो निश्चित था कि अब आदमी को जानवरों के हमले की पूरी जानकारी थी। तक्षक ने सब उगल जो दिया था। आदमी की आंख से अब अछूता कुछ भी नहीं बचा था। फिर वह चुप क्यों था? और इस चुप्पी का अर्थ क्या था?

और जो रात के अंधेरे में जुगनू की तरह का उठता सैलाब जो जमीन पकड़ कर तैरने लगा था – वह क्या था? कुछ आवाजें थीं, कुछ खटर-पटर और तुन्न-तड़ाक था। यूं ही धूम-धड़ाका था जिसे सुन कर कोई अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता था। लेकिन कुछ था तो जरूर!

अब आदमी बेखबर तो नहीं बैठा था।

“लालू भाई! न जाने जुगनुओं सा ये क्या है? चारों दिशाओं में चलता ही जा रहा है। आज से पहले तो ये अजूबा कभी नजर नहीं आया?” शशांक ने लालू की आंखों में घूरा था। “जरूर आदमी की कोई गहरी चाल है।” उसने अपना मत व्यक्त किया था।

लालू गहरे सोच में जा डूबा था। अभी तक की स्थिति के अनुसार तो उनकी पूर्ण विजय होने में कुल एक रात की ही देर थी। एक बार मणिधर का हमला हुआ नहीं कि मैदान साफ था। लेकिन ये नई सूचना उसका भी दम सुखाने लगी थी।

तक्षक की मौत क्या हुई मुसीबत आ गई।

“महाराज की जय हो!” लालू का स्वर कांप सा रहा था। “आदमी ने अंधेरा पार करने के लिए जुगनुओं का दल भेजा है।” लालू चहका था।

एक परिहास उठ खड़ा हुआ था। इसका एक ही अर्थ था कि अब आदमी असल में ही बावला हो गया था।

“जरूरी नहीं ये जुगनू ही हों महाराज!” शशांक ने फिर से खबर का खुलासा किया था। “कुछ ऐसा है – यंत्र-तंत्र जैसा कुछ, मंत्र जैसा मौन और बेहद मारक!”

एक चिंता रेखा पृथ्वी राज के चेहरे के आर पार चली गई थी।

“महाबली हुल्लड़ को हुक्म दें महाराज कि इन उगनू-जुगनुओं को उठा उठा कर फेंक दें! जंगलाधीश को भी कहा जाए कि जो भी हाथियों के आसपास आए उसे फाड़ डाला जाए!” नकुल ने अपनी राय सामने रक्खी थी।

हुल्लड़ और जंगलाधीश को जान लगा कर लड़ने के फरमान जारी हुए थे।

देवालयों में पूजा अर्चना के स्वर बहुत प्रखर होते लग रहे थे। खबर थी कि आदमियों का होश लौटने लगा था। देव की कृपा से वह स्वस्थ होने लगे थे। एक खुशी की लहर उस अंधेरी रात के आर-पार आती जाती लग रही थी। लोग बढ़-चढ़ कर देवी देवताओं की आराधना कर रहे थे और उनके खान-पान का सिलसिला भी शुरू हो गया था।

जरासंध का जीवन काल अब अपने समाप्त होने के चर्म पर था।

“मैं अपने किए वायदे से आगे नहीं जा पाऊंगा महाराज!” जरासंध ने स्पष्ट किया था। “आज की ही रात है – बस!” उसने खुलासा किया था।

पृथ्वीराज ने मुड़ कर मणिधर को घूरा था। मणिधर ही अब पृथ्वीराज का एक अमोघ अस्त्र था। इसके बाद तो वारे न्यारे हो जाने थे! तीर अब ठिकाने पर था। बस अब उसे छोड़ने तक का विलंब था।

“हमला कब हो रहा है महाबली मणिधर?” पृथ्वीराज ने सीधा प्रश्न पूछ लिया था।

पृथ्वीराज के प्रश्न का पीछा करता मौन भयानक लगा था। वह चुप था। उसके चेहरे पर उल्लास नहीं था। चिंता रेखाएं उसे घेरे खड़ी थीं। वह कुछ कहना तो चाहता था लेकिन कह नहीं पा रहा था।

“हमला अगर आधी रात के बाद हो तो मुनासिब रहेगा!” लालू की राय थी।

लेकिन मणिधर अभी भी चुप था। वह कुछ कह नहीं पा रहा था। उसका अपना डर उसके दिमाग से बाहर न आ पा रहा था। आदमियों के होश लौटना और उनपर होती देव की कृपा के मिलते संकेत मणिधर को परेशान किए थे। और वह कैसे बताता कि आदमी की मदद के लिए देवता आन पहुंचे थे?

“अभी तक मैंने कोई समय नहीं चुना है महाराज!” मणिधर ने बुझे बुझे मन से उत्तर दिया था।

एक असहज बना वातावरण उठ खड़ा हुआ था।

सर्पों को भी आदमी पर आक्रमण करने में डर लग रहा था – यह बात साफ साफ सबकी समझ में समा गई थी!

“ये तो कोई योद्धाओं जैसी बात नहीं हुई, महाबली मणिधर!” चुन्नी ने उलाहना दिया था। “हम सब विजयश्री के कितने पास खड़े हैं – ये तो आप भी जानते हैं! ओर इस वक्त इस तरह का अनिर्णय तो किसी अपशकुन से कम नहीं है!”

“अभी वक्त है!” लालू ने दखल दिया था। “हमारे पास वक्त है बहन जी!” उसने सीधा चुन्नी की आंखों में देखा था। “और इस वक्त का एक एक कतरा हमारे काम आएगा! सोचा समझा निर्णय ही जीत लाएगा!” उसने सभी जमा महानुभावों को देखा था। “हमारी जीत तो अवश्य होगी और हमारा साम्राज्य भी अवश्य बनेगा! अब देखना ये होगा कि हमारे मणिधर महाबली ..?”

“मैं .. मैं .. लड़ूंगा तो अवश्य महामंत्री!” मणिधर ने सकपकाते हुए कहा था। “मेरी चिंता ये है कि अगर आदमी के साथ उसका देव भी उतर आया तो? अगर उसका भगवान उसपर प्रसन्न हो गया तो?”

“नहीं नहीं!” नकुल ने जोरों से कहा था। “जरासंध का जोर कम हो रहा है! तुम सांप होकर कब से इस भाग्य और भगवान के चक्कर में पड़ गए मेरे मणिधर!” वह जोरों से हंसा था। “वार करो महाबली – भरपूर वार! जीत का सेहरा हम तुम्हारे सर बांधने के लिए कब से उतावले हो रहे हैं!”

फिर से एक खुशी की लहर का जन्म हुआ था!

मेजर कृपाल वर्मा

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