1967 के चुनावों ने जहां पुरानी अनेकों मान्यताओं को तोड़ा था वहीं अनेकों नई संभावनाओं को भी जन्म दिया था।

कांग्रेस अब अजेय नहीं रही थी। के कामराज, अतुल्य घोष और एस के पाटील चुनाव हारे थे तो देश में एक आश्चर्य की लहर दौड़ गई थी। जन संघ पार्टी अब अछूत नहीं रही थी। पहली बार विपक्ष ने जन संघ के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और चुनाव का मुख्य मुद्दा कांग्रेस को किसी भी तरह से हराना था। सेंटर में ले दे कर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी तो वहीं विपक्ष ने प्रदेशों में आठ सरकारें मिल जुल कर बनाई थीं। यह एक अलग उपलब्धि थी और कांग्रेस के लिए एक नई चुनौती थी।

कांग्रेस जहां कमजोर हुई थी वहीं इंदिरा गांधी एक दबंग और सशक्त नेता के रूप में उदय हुई थी।

कांग्रेस अब दो गुटों में बंट गई थी।

“आंटी जी!” राजीव गांधी का स्वर विनम्र था। “मम्मी नहीं मान रही हैं!” वह शिखा को बता रहा था। “अगर हमारी शादी नहीं हुई तो ..” उदास हो आया था राजीव। “प्लीज आप ..?”

शिखा ने मुड़ कर राजीव को देखा था। वह एक बेहद आकर्षक युवक था। पायलट था। शिखा को बड़ा ही सौम्य और सच्चा लगा था राजीव। प्रेमाकुल राजीव के चेहरे पर प्रेम प्रीत की वही पुरानी इबारत लिखी थी। एक संकोच था जो उसे घेरे खड़ा था।

“मान जाएंगी – मम्मी!” शिखा ने हंसते हुए कहा था। “मैं मना लूंगी इंदु को!” शिखा ने वचन दिया था। “यू बी रेस्ट एश्यौर्ड!” उसने राजीव की पीठ ठोक दी थी। “यू विल गेट सोनिया!”

उस दिन शिखा की आंखों में शिखर डोलता ही रहा था! वो दोनों भी तो प्रगाढ़ प्रेमी थे। लेकिन उन दोनों ने ही स्वयं को मातृ भूमि की सेवा में अर्पित कर दिया था। फिर प्रेम तो प्रेम ही होता है – अजर अमर होता है और ये कभी मरता ही नहीं।

“राजीव सोनिया से शादी करना चाहता है, शिखर!” शिखा ने शाम को बताया था। “लेकिन इंदु को न जाने क्या बुखार चढ़ है कि ..”

“स्पाइ है ..?” शिखर ने हंसते हुए पूछ लिया था।

“नहीं! ईसाई है!” शिखा ने उत्तर दिया था। “मायनो नाम है पर यहां के लिए सोनिया चलेगा!” शिखा बताती रही थी। “बड़ी ही सुंदर, सहज और भोली भाली लड़की है शिखर!” शिखा बताने लगी थी। “स्पाइ तो नहीं हो सकती!”

“क्यों ..?” शिखर का प्रतिवाद था। “तुम भी तो मिस इंन्नोसेंट हो!” उसने आंखें नचाते हुए कहा था। “खैर! करा दो ये शुभ काम!” शिखर का मशविरा था।

“लेकिन .. लेकिन क्यों? अगर ..?”

“अरे भाई! लड़ने दो ईसाइयों को मुसलमानों से!” शिखर की आंखों में शरारत थी। “एक से दो भले! हम पर प्रेशर कम हो जाएगा भाई!” शिखर की दलील थी। “दोनों का गेम तो भारत लेना ही है न!” उसने बात को स्पष्ट किया था।

अब शिखा हैरान थी। कित्ता दूर की सोचते हैं – ये सियासत दान – शिखा की अब समझ में आया था। सोनिया का 1 सफदरजंग रोड स्थित इंडिया के पावर सेंटर में प्रवेश किसी के लिए भी माने रखता था। राजीव तो कद्दू था। वह तो प्रेम में पागल था। उसे तो शायद स्वप्न में भी उम्मीद न होगी कि सोनिया ..

“क्या होगा शिखर?” शिखा ने घबराते हुए शिखा ने प्रश्न पूछा था।

“वही जो मंजूरे-खुदा होगा!” शिखर खूब हंसा था। “हमें तो अपना देखना होगा!” वह बता रहा था। “अगली जंग?” उसने पूछा था।

“अगली जंग?” शिखा समझ ही न पाई थी।

“अब पार्टी तोड़ दो!” शिखर ने आदेश दिया था। “सही वक्त आन पहुंचा है शिखा। अब देर भली नहीं।”

और शिखा को भी कांग्रेस पार्टी तोड़ने की संभावनाएं एक साथ दिखाई दे गई थीं। इंदु का मिजाज गरम था और उसे याद हो आया था कि अगर हथौड़ा मुरारजी देसाई पर बजा तो बात बन जाएगी।

“आप न जाने क्यों पुराने खयालों में खोए रहते हैं अंकल!” इंदिरा गांधी ने बताया था। “आप सीट खाली क्यों नहीं कर देते? तभी कोई काम हो पाएगा। फाइनेंस के बिना देश का काम नहीं चलेगा! और मैं चाहती हूँ कि हमारी इकोनॉमी ..”

मुरारजी देसाई के इस्तीफे ने पूरे देश को हिला दिया था।

“इसको कैसे पता चला कि हम इसे पी एम की कुर्सी से उठा फेंकना चाहते हैं?” नए कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष निजालिन गप्पा मुरारजी देसाई से पूछ रहे थे। “कौन हो सकता है पार्टी में ये गद्दार?” उनका प्रश्न था।

“द यंग टर्क्स!” मुरारजी का स्वर कातर था। इस्तीफा देने के बाद उन्हें बड़ी निराशा हुई थी। उनका पोर्टफोलियो स्वयं पी एम ने ले लिया था और महत्वपूर्ण घोषणाएं भी कर दी थीं। “शी हैज क्रिएटिड ए क्लच!” मुरारजी बता रहे थे। “देश का युवा ..” चुप हो गए थे मुरारजी।

लेकिन जब मई 1969 में राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु हो गई थी तो इंदिरा गांधी के घोर विरोधियों ने घी के चिराग जलाए थे। उन सब ने संगठित होकर संजीव रैड्डी को राष्ट्रपति चुनने की मुहिम तैयार कर ली थी। नेहरू की सोची समझी रणनीति के खिलाफ ये चाहते थे कि अब किसी भी मुस्लिम या नेहरू उपासक को राष्ट्रपति न बनाया जाए! हर कीमत पर इंदिरा को हटाने के लिए कामराज का सिंडीकेट और मुरारजी का गुट काम में जुट गए थे।

और जब वी वी गिरी उप राष्ट्रपति से राष्ट्रपति नियुक्त हुए थे तो विरोधियों के तोते उड़ गए थे। मुस्लिम लीग और अकाली दल ने मुसीबत में इंदिरा गांधी का साथ दिया था।

“मैं चाहती हूँ कि देश प्रजातंत्र, धर्म निरपेक्ष, समाजवाद और गुट निरपेक्ष की नीतियों को सही और श्रेष्ठ रूप में अपनाए! इसलिए मैं चाहती हूँ कि ..”

“तुमने घटिया चालें चल कर सारी सत्ता अपने हाथ में ले ली है। और अब तुम चाहती हो कि तुम एक सांप्रदायिक तानाशाह की भूमिका में देश को हथिया लो! लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे।” उत्तर आया था और इंदिरा के विरोधी अब सीना तान कर सामने खड़े हो गए थे।

निजालिन गप्पा ने पी एम श्रीमति इंदिरा गांधी को कहा था – तुमने क्योंकि पार्टी के खिलाफ आचरण किए हैं अत: मुझे खेद सहित तुम्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना होगा!

अब कांग्रेस पार्टी टूटी थी।

इंदिरा गांधी के साथ दो सौ बीस एम पी आए थे तो सिंडीकेट के पास कुल 68 ही पहुंचे थे। अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी के 705 मेंबरों में से 446 इंदिरा के साथ गए थे तो बाकियों ने सिंडीकेट का साथ दिया था। इंदिरा की कांग्रेस आर और निजालिन गप्पा की कांग्रेस ओ अब दो अलग अलग पार्टियों के रूप में सामने आई थीं।

“पहली बार तुमने इनाम का काम किया है शिखा।” शिखर प्रसन्न था। “अब उम्मीद है कि अगले चुनावों में हमारी चांदी होगी! मिल कर लड़े तो संभव है कि ..”

“शायद ही हारेगी इंदिरा!” शिखा का अपना अनुमान था। “जो मैं देख रही हूँ शिखर वो ..”

“वो क्या?” चौंक कर पूछा था शिखर ने।

“संजय पढ़ाई छोड़ कर लौट आया है!” शिखा ने सूचना दी थी। “उसने लिखा था – मां! मैं पढ़ूंगा नहीं! उद्योग लगाऊंगा और देश को एक नई कार दूंगा!” शिखा ने शिखर के चेहरे पर बैठे तनाव को पढ़ा था। “एंड दी यंग टर्क्स ..?” शिखा गंभीर थी।

पूरे विपक्ष ने मिल कर और खुल कर नारा दिया था – इंदिरा हटाओ! सब ने एक साथ मिल कर ग्रांड एलाइंस बनाई थी लेकिन बुरी तरह से विफल हुए थे। गरीबी हटाओ के इकले नारे ने ही इंदिरा गांधी की नइया पार लगा दी थी। तीन सौ बावन लोक सभा की सीटें जीत कर एक रेकॉर्ड कायम किया था इंदिरा गांधी ने!

और जब पाकिस्तान ने भारत पर युद्ध थोप दिया था तो इंदिरा गांधी ने बड़ी ही दूरदर्शिता के साथ मुकाबला किया था। ब्रिटेन और अमेरिका की चाल के खिलाफ रूस के साथ बीस साल का समझौता कर और बांग्लादेश को स्वतंत्र करा कर एक मिसाल कायम की थी भारत ने। पाकिस्तानी सेना का आत्मसमर्पण इतिहास की धरोहर बन गया था। भारत ने 1962 की शर्मनाक हार पर मनों मिट्टी डाल कर साबित कर दिया था कि हमारे सैनिक विश्व के सर्वश्रेष्ठ लड़ाके हैं और भारत कोई छोटा-मोटा देश नहीं – एक महान राष्ट्र है।

इंदिरा गांधी की जय जय कार ने पूरे विपक्ष को अंधा और बहरा बना दिया था। अब जनता इंदिरा कांग्रेस के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार न थी। इंदिरा गांधी जनमानस की मां बन गई थी। इंदिरा गांधी को लोग दुर्गा का अवतार मान बैठे थे। लोग मान बैठे थे कि नेहरू की ये होनहार बेटी गरीबों के दुख दर्द हरने के लिए ही अवतरित हुई थी।

“है कोई इंदिरा को हराने का हथियार?” शिखर ने शिखा से पूछा था।

“हां है!” जब शिखा ने हंस कर उत्तर दिया था तो शिखर भी चौंक पड़ा था। उसने शिखा को पहली बार शकिया निगाहों से घूरा था। “संजय गांधी!” शिखा ने तपाक से उत्तर दिया था। “अब हम भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाएंगे शिखर!” उसने बात साफ की थी। “इंदिरा के बेटे संजय गांधी को उसकी मां देश के पैसे खर्च कर उद्योगपति बना रही है।” शिखा जोरों से हंसी थी।

शिखर को एक बड़ा मुद्दा मिल गया था।

मेजर कृपाल वर्मा

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