गांधी जी की हुई हत्या के बवंडर के बीचो बीच से वो दोनों चुपचाप भागे थे और शिलोंग आ कर दोनों ने दम लिया था।

मौसी की मदद से शिखा को शिलोंग कॉलेज में एडमीशन मिल गया था और गर्लस होस्टल में रहने की व्यवस्था हो गई थी। शिखर को भी डॉन बॉस्को में अवैतनिक अध्यापक के पद पर अंग्रेजी पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया था और रहने के लिए कमरा भी मिल गया था। दोनों की जान में जान आई थी और एक सुरक्षा का अनुभव हुआ था – जो बेजोड़ था।

“दो और भी पकड़े गये!” जब वो इतवार के दिन दोनों मिले थे तो शिखर ने सूचना दी थी। वो दोनों झील के किनारे धरी बेंच पर बैठे थे। शिलोंग का मनोहर दृश्य उनकी आंखों के सामने तना खड़ा था। “तुमने ठीक सोचा था शिखा कि वो अंग्रेज जिसने गोडसे को पकड़ा था और वो सैनिक जो वहां पहले से ही मौजूद थे – सब एक सोची समझी योजना थी। उन्हें पता था कि ..”

“लेकिन कैसे? हम तो सब एकांत में थे और सब से अलग थे। हमारी तो सांसें तक नहीं सुन सकता था कोई।” शिखा का अंदेशा था।

“हमारे बीच से ही खबर सीधी नेहरू जी के पास जा पहुंची थी।” तनिक हंस गया था शिखर। “सच शिखा! बड़ी ही विचित्र बात है कि यहां कुछ भी सीक्रेट नहीं है।”

“तो क्या लोग हमारे इस गुप्तवास के बारे में भी जानते हैं?” शिखा पूछ रही थी।

“हां भी और ना भी!” शिखर ने बताया था। “हम अभी ज्यादा चर्चित नहीं हैं। वरना तो पुलिस ने कभी का पकड़ लिया होता।”

शिखा की आंखों में आश्चर्य था। जो घटा था और वो भी जो अब घट रहा था वो भी किसी अजूबे से कम न था।

गांधी जी की मौत का डंका पूरे विश्व में बजा था। गांधी जी असाधारण मनुष्य थे और उनके विश्व शांति के लिए किए प्रयोग भी नए और नायाब थे। दो दो विश्व युद्धों के बाद अब पूरे संसार को शांति की दरकार थी। ओर गांधी दर्शन की ओर हर किसी का ध्यान गया था। शायद ही सच था कि अहिंसा का उनका मंत्र कारगर हो जाता और हर कोई मान लेता कि हिंसा किसी भी समस्या का हल न थी।

पूरा देश हिंसक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को शक की निगाहों से देख रहा था। हिन्दू महा सभा के विचारक विनायक दामोदर गोलवरकर पर भी गांधी की हत्या के आरोप लग रहे थे। 1927 में जब उन्होंने गांधी जी की अहिंसा पर प्रश्न चिन्ह लगाए थे तभी से उनपर सत्ताधारियों की आंख आ टिकी थीं। और अब तो हिन्दू, हिन्दुत्व वादी और सभी हिन्दू राष्ट्र के उपासकों को शकों के दायरों में लाकर नजर बंद कर दिया था।

पुलिस प्रमाण इकट्ठे कर रही थी। गवाहों के बयान लिए जा रहे थे। चार्ज शीट तैयार हो रही थी और उपयुक्त धाराओं के तहत अपराधियों को सजा दिलाने की तैयारियां चल रही थीं। देश और समाज को अब एक उत्तर चाहिये था।

“कभी डॉन बॉस्को आकर देखना शिखा कि ईसाइयों ने किस तरह यहां पहुंच कर डेरा डाले हैं। मुगलों से भी आगे निकल गए ईसाई।” शिखर की राय थी। “कमाल ही है यार कि इन लोगों ने कहां से आकर कहां मजमा लगाया और एक हम हैं – हिन्दू जो अपने देश में भी आंख बंद कर बैठे रहे।”

“अभी भी कोई कहां गया है!” शिखा हंस रही थी। “शिकारियों की तरह घात लगाये बैठे हैं।” उसका मानना था। “देश के चप्पे चप्पे पर इन्हीं दो का नाम लिखा है।”

“शायद अब शिखा गांधी जी का नाम लिखा जाए?” शिखर का सुझाव था।

“शुरुआत तो हो सकती है।” शिखा ने मान लिया था। “इसके बाद तो शिखर हम अब अपने नाम ही लिखेंगे। एक एक इंच जमीन को नाप कर अपने ही नाम लिखेंगे ताकि इसके बाद कोई और न आ जाए और ..”

शिखर ने प्रशंसक निगाहों से शिखा को देखा था। गांधी जी की मौत यों अकारथ न जाएगी – उसे विश्वास हो गया था।

“शिलोंग को स्कॉटलैंड ऑफ ईस्ट कहा जाता है।” शिखर ने सूचना दी थी।

“क्यों?” शिखा ने पूछा था।

“इसलिए कि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य, यहां के झरने, पहाड़, झीलें और सघन वन बेजोड़ हैं।” शिखर बताने लगा था। “जैसे कि .. जैसे कि ..” उसने चुपके से शिखा का स्पर्श किया था। “जैसे कि .. तुम ..”

“क्या हो गया तुम्हें?” शिखा ने शरारती स्वर में पूछा था।

“प्यार!” बहुत आहिस्ता से शिखर ने कहा था और जोरों से हंस पड़ा था।

“कीमत चुकानी होगी!” शिखा ने प्रसन्न होकर मांग की थी।

“मेरे पास क्या धरा है शिखा!” हवा में खाली हाथ फेंक कर शिखर ने कहा था। “मैं तो .. मैं तो .. अपना सर्वस्व मात्र भूमि के नाम लिख बैठा हूँ।” शिखर ने गर्व से कहा था। “बस – अब तो ये फकीरी है ..” वो मुसकुरा रहा था।

“तो फकीरी को ही बांट लेते हैं।” शिखा ने शिखर के नजदीक आते हुए प्रस्ताव रक्खा था। “मैं .. मैं तो हैरान हूँ शिखर कि ये ईसाई मिशनरी यहां – इन विकट वीरानों में पहुंचे और अपनी संस्कृति, धर्म, भाषा ओर यहां तक कि अपने कपड़े-लत्तों तक का प्रचार किया! मैंने अपनी नई बनी सहेलियों से बातें की। सब की सब ईसाई बन चुकी हैं। गारो, खासी और जयंतिया की जनजातियों को इन मिशनरियों ने ऐसा रंगा है अपने रंग में कि मैं तो विश्वास ही न कर पाई शिखर! और हम – हम हिन्दू ..?” शिखर भी शिखा की खोज से अनभिज्ञ न था। उसे भी आश्चर्य ही हुआ था कि कैसे कोई अकेला पादरी यहां पहुंचा होगा और उसने इस एकांत में घोर तपस्या की होगी। आज डॉन बॉस्को को देखकर लगता ही नहीं कि ये लोग बेगाने हैं! जबकि हम ..

” तो क्या हमें भी यही रास्ता चुनना होगा शिखर?” बड़ी देर के बाद शिखा ने प्रश्न किया था।

लगा था शिखा ने शिखर के मन की बात जान ली थी। उसे आजकल शिखा पर पूर्ण विश्वास हो गया था कि वो अब संघ के लिए समर्पित थी। यह संघ की सफलता का पहला प्रमाण था।

“यही रास्ता जाता है – किसी भी साम्राज्य की ओर, शिखा।” शिखर फिर से बताने लगा था। “हमारा हिन्दू राष्ट्र भी इसी रास्ते के अंत में स्थापित होगा।” वह कह रहा था। “शिक्षा के सहारे सहारे और धर्मावलंबी बन कर हम अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के साथ अगर आगे बढ़ेंगे तभी मंजिलें मिलेंगी।” उसका अपना मत था।

“लेकिन हमारे शीर्ष नेताओं का संकल्प तो धर्म निरपेक्ष राज्य है। हमने तो उधार का ही सब अपना लिया है। फिर कैसे ..?” शिखा का प्रश्न था। “मैं नहीं मानती कि हमारे दिग्गज नेताओं में से कोई भी हमारी राय से सहमत होगा।” उसने शिखर को घूरा था। “क्या तुम मानते हो कि जे पी एक इंच भी अपने समाजवाद से आगे आएंगे? या कि मुरारजी देसाई मान लेंगे कि ..”

“ये तो असंभव है शिखा!” शिखर ने मान लिया था। “इन लोगों से ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं। इनका कार्य काल तो गया ही मानो। और जिस हिन्दू राष्ट्र की कल्पना हम कर रहे हैं उसके लिए तो हमें अलग किस्म की मनीषा की दरकार होगी।” शिखर का सुझाव था।

“जैसे कि गांधी जी अप्रासंगिक हो गये थे – ये लोग भी अब किसी काम के नहीं हैं।” शिखा ने भी मान लिया था। “लेकिन नई मनीषा ..?”

“वही प्रयोग जो हमारे पूज्य हेगडेवार जी ने किया था।” हंस गया था शिखर। “स्कूल, कॉलेज और शैक्षिक संस्थानों में जा जाकर हमें स्वयं सेवक तैयार करने होंगे।” शिखर का सुझाव था। “हमें भी अब नई पौध उगानी होगी।”

“देर हो जाएगी शिखर।” शिखा ने आपत्ति की थी।

“क्यों?” शिखर पलटा था। “अरे भाई! 1925 में ही तो महा प्राण हेगडेवार जी ने संघ का बीज बोया था। वही इन बीस-पच्चीस सालों में पेड़ बन गया है और पहला फल भी आ गया है।”

शिखर का इशारा गांधी जी की हत्या की ओर था।

“हुआ तो बुरा ही है शिखर!” टीस आई थी शिखा। “ये होना तो नहीं चाहिये था।” उसने दुख के साथ कहा था। “मैंने तो पहली बार दर्शन किए थे बापू के। सच कहती हूँ शिखर! मुझे तो कहीं से भी बापू अपने दुश्मन नहीं लगे।”

“दुश्मन तो वो थे ही नहीं।” शिखर ने भी माना था। “लेकिन शिखा! उनकी मौत दधीची की मौत है। देश हित में दी ये एक आहूति है। अगर गांधी जी रहते तो शायद ..”

“हम फिर से गुलाम हो जाते?” शिखा का सीधा प्रश्न था।

“हां!” शिखर ने उत्तर दिया था।

गांधी जी की हत्या के बाद नेहरू जी ने खुले आम कहा था – ये आर एस एस के लोग फासिस्ट हैं। ये लोग नाजियों की तरह हैं। ये लोग देश और समाज के लिए एक बड़ा खतरा हैं।

“अब बैन लगेगा संघ पर।” शिखर बता रहा था। “और हिन्दू सभा भी साथ में घसीटी जाएगी।” उसका अनुमान था। “ये एक बड़ी कामयाबी होगी – नेहरू जी के लिए।”

शिखा का चेहरा बुझ गया था।

मेजर कृपाल वर्मा

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