शेर को सवा शेर मिल गया था – जंगलाधीश ने प्रसन्न होकर एकबारगी काग भुषंड को देख लिया था। लेकिन उसे भी अपना कद आज चूहे पृथ्वी राज से भी छोटा हुआ महसूस हुआ था। आज के बाद तो वह शायद किसी भी जानवर को छू तक न पाएगा न उसे चीर फाड़ कर खा पाएगा और न ही शायद ..

“निरंकुश होना ही अपराध है।” गरुणाचार्य का स्वर दरबार में गूंजा था। “और यही है अपराध इस काग भुषंड का!” उन्होंने घोषणा की थी।

“कठोर सजा दो इसे!” चुन्नी ने तड़क कर कहा था।

काग भुषंड ने आंख उठा कर चुन्नी को घूरा था। उसकी अभिन्न मित्र चुन्नी आज न जाने क्यों उसकी घोर शत्रु बन गई थी। क्या कभी उसने चुन्नी को कोई दंश दिये थे? एक स्वीकार काग भुषंड के भीतर उठ कर उसकी आंखों में तैर आया था। चुन्नी की प्रेम भावना का अनादर ही उसका अपराध था शायद!

प्रेम भावना का कभी अनादर नहीं करना चाहिये – एक सबक की तरह काग भुषंड के जेहन में उतर गया था – आज।

“चूंकि काग भुषंड ने करामाती के प्राण लेने की चेष्टा की है अतः इसे भी प्राण दंड ही मिलना चाहिये!” नकुल ने दरबार के सामने प्रस्ताव रक्खा था। “यह एक जानलेवा हमला ही था। और करामाती मर भी सकता था।” नकुल की आवाज में दम था।

पृथ्वी राज को भी नकुल का प्रस्ताव जंच गया था। तेजी बहुत प्रसन्न थी। नकुल एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह गोटों को आगे सरका रहा था। जिन जिन का बैरी काग भुषंड था उन उन के मनों में दीपावली के दीये जल उठे थे। मर ही जाए – ये कौवा तो पाप कटे – का नारा सा बुलंद हो गया था।

“दुष्टों को कड़ी से कड़ी सजा मिलेगी तभी तंत्र पनपेगा!” लालू बोला था। “वरना तो कोई मतलब ही नहीं रह जाता .. अगर आज ..”

“आज ही सारे बदले उतार लो, लालू भाई!” हुल्लड़ तड़क कर बोल पड़ा था। “भूल चूक तो सभी से होती रहती है भाई!” उसने सूंड़ उठा कर पृथ्वी राज की ओर देखा था। “प्राण दंड – यों छोटी मोटी बातों पर मिला तो हम सब की मौत आई धरी है।” उसने अब सारे जमा प्राणियों को घूरा था। “हमें आदमी से लड़ना है – ये बात हम भूल कैसे रहे हैं?”

हवा मुड़ गई लगी थी। आदमी – जो अब तक एक दुश्मन की शक्ल ले चुका था, उसका स्मरण करते ही सक चौकन्ने हो गये थे। काग भुषंड की मौत पर किसी को क्या मिलना था – एक सोच चल पड़ा था।

“संभावित युद्ध को देखें तो काग भुषंड बड़े ही काम की चीज है!” गरुणाचार्य ने हुल्लड़ की बात को बड़ा किया था। “काग भुषंड हमारा वह योद्धा है जिसके बिना विजय श्री मिलना शायद असंभव ही हो!”

“कहना क्या चाहते हैं आचार्य?” जंगलाधीश गरजा था।

“यही कि काग भुषंड को क्षमा दान मिले!”

“जबकि अपराधी है यह! मृत्यु दंड का अधिकारी है यह!” चुन्नी भड़क उठी थी। “इस तरह तो कोई भी अपराध करेगा ..”

काग भुषंड को पसीना आ रहा था। एक अजब प्रकार का भय उसके दिल दिमाग पर छाया हुआ था। इस तरह की बेबसी उसने पहले कभी नहीं भोगी थी। उसकी भाग्य विधाता एक व्यवस्था बन जाएगी – उसने तो कभी सोचा ही नहीं था।

स्वच्छंद जीवन को त्याग जानवर इस व्यवस्था के जाल में क्यों फंस रहे थे? स्वतंत्र रहने का वह भूडोल क्या बुरा था? किसी और का दायित्व उठाने की यह गरज कितनी बावली थी? कबूतर करामाती के पक्ष में लड़ते सूरमा उसे मृत्यु दंड दिलाने के पक्षधर क्यों बने हुए थे?

व्यक्तिगत स्वार्थों की टक्कर थी ये! कांटे से कांटा निकालने की इस प्रक्रिया का नाम ही शायद व्यवस्था था! फिर वह मूर्खों की तरह क्यों लड़ रहे थे ..

“लड़ना तो इसका स्वभाव है राजन!” गरुणाचार्य ने पृथ्वी राज को संबोधित किया था। “और हमें इस लड़ाके की जरूरत है!” उन्होंने भविष्य की घटना की ओर इशारा किया था। “इसके लिए क्षमा दान आज की हमारी आवश्यकता है।” उन्होंने तोड़ किया था।

क्षमा दान पाकर काग भुषंड जैसे फिर से जिंदा हो गया था – अमर हो गया था और अजेय हो गया था। उसे अपनी औकात आंकने में अब देर न लगी थी। जहां उसने गरुणाचार्य के आभार को स्वीकार किया था वहीं पृथ्वी राज के लिए जी जान से काम करने की घोषणा भी की थी।

लेकिन आज पहली बार ही काग भुषंड को दोस्त और दुश्मन की पहचान हुई थी ओर वह फिर से हुल्लड़ की कमर पर जा बैठा था!

हुल्लड़ की यह पहली विजय थी और जंगलाधीश की पहली पराजय! और पृथ्वी राज के सामने दोनों खेमे खड़े थे बराबर!

“महाबली जरासंध के पराक्रम को देख कर महाराज का दंग रह जाना स्वाभाविक ही है!” नकुल ने दरबार की खामोशी को खदेड़ा था। “विश्व विजय करने का महाराज का इरादा अब सफल होगा इसमें कोई शक नहीं है!” नकुल ने आंख उठा कर पूरे जुड़े दरबार को देखा था। “अब हमारे महाबली जंगलाधीश और हमारे सेनापति जुड़ने वाली जंग की रूप रेखा आपके सामने रक्खेंगे!” नकुल ने बात को जंगलाधीश की ओर मोड़ दिया था!

मेजर कृपाल वर्मा

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