जंगलाधीश हुंकार भर रहा था। दहाड़ रहा था। पूरे जंगल का उसने कलेजा कंपा दिया था। सुंदरी के साथ होती शादी और होने वाला राज्याभिषेक अब उसे चली किसी चाल जैसे लग रहे थे। आज वह दूध का दूध और पानी का पानी कर देना चाहता था। जो होना हो शीघ्र हो। ये विलम्ब कैसा? अड़चन कौन सी थी? उसके सामने टिकने की जुर्रत किसकी थी?
लालू और शशांक गायब थे। दहाड़ते शेर के सामने कोई नहीं आ रहा था। सुंदरी भी सकते में आ गई थी। कोई करे तो क्या करे?
“सुंदरी!” जंगलाधीश गर्जा था। उसने सीधे सुंदरी से बात करना ही उचित समझा था। दोनों के बीच का पर्दा वह आज उठा देना चाहता था।
“जी महाराज!” सुंदरी बड़े विनम्र भाव से शेर के सामने आ कर खड़ी हो गई थी।
जंगलाधीश तनिक शांत हुआ था। लजीली सजीली सुंदरी को देख कर उसका मन बदल गया था। वह झगड़ा टंटा भूल अब कुछ सुलह सफाई की बात कर लेना चाहता था।
“कहां है शशांक?” उसने पूछा था। “और कहां मर गया ये लालू?” उसने उलाहना जैसा दिया था।
“गये ..!”
“भाग गये?”
“हॉं!” सुंदरी ने बड़ी ही मासूमियत से कहा था।
“गद्दार!” गर्जा था जंगलाधीश। “मुझे तो पहले से ही शक था इस लालू पर!” वह कह रहा था। “लेकिन वह शशांक तो ..?”
“दोनों ही उधर जा मिले हैं!” सुंदरी ने सूचना दी थी। “अब हम दोनों हैं – अकेले!”
एक पल के लिए जंगलाधीश को गहरा धक्का लगा था। उसे लगा था आज उसकी कायम की सल्तनत नष्ट नाबूद हो गई थी। उसका देखा सुनहरी सपना हवा हो गया था। उसे पैरों के नीचे की जमीन खिसकती लगी थी।
“तो क्या हुआ?” जंगलाधीश तनिक संभला था। “हम दोनों मिल कर ..”
“कुछ नहीं कर सकते!” दो टूक उत्तर था सुंदरी का। “अब जमाना जनमत का है। वो सब एक हैं। फिर हम अकेले अकेले ..”
“लेकिन बिना हमारे वो कर भी क्या लेंगे?” जंगलाधीश ने धौंस मारी थी। “आदमी से मोर्चा लेना मजाक है क्या?” उसने सुंदरी को घूरा था। “आने दो मदद के लिए मेरे पास।” वह तनिक मुसकुराया था। “अब की बार गोट तुम खेलना!” उसने सुंदरी को खुश कर दिया था।
गरुणाचार्य भी सकते में आ गया था। काग भुषंड की की आलोचना से उसको बहुत कष्ट हुआ था। न कुछ लिया न कुछ दिया और बदनामी गले बांध ली। शशांक ने सब सत्यानाश कर दिया था। इज्जत भी गई और ईमान भी। व्यर्थ में ही उसने सत्ता का सपना देखा था। उसे तो अपनी फकीरी ही भाती थी।
लेकिन काग भुषंड जंग हारा नहीं था।
अब वो चुन्नी के साथ मिल कर कुछ तय कर लेना चाहता था। चुन्नी का समाजवाद अगर चल पड़े तो उसे घाटा कहां था। सब छोटे छोटे मिल कर अगर बड़ों पर हावी हो जाएं तो काम बना धरा था। छोटों को अपने काबू रखना कौन सी बड़ी बात थी? फिर भाड़ में जाएं ये हाथी ओर चूल्हे में गिरे शेर।
चुन्नी की महत्वपूर्ण बैठक तेजी के साथ चल रही थी।
नकुल ने चुन्नी और तेजी को मिलाने का काम किया था। ओर नकुल अब चाहता था कि उनके बीच अब सब तय हो जाए!
“तेजी बहन!” तुम्हारा वैभव देख कर तो मेरी आंखें चुंधिया गईं!” चुन्नी ने फटी फटी आंखों से देखा था – तेजी का घरबार। “अरे भाई! क्या ठाठ हैं तुम्हारे!” उसने कहा था। “कितना भी खाओ – यहां तो अम्बार लगे हैं।”
“सब तुम्हारा है, बहन!” तेजी ने विनम्र हो कर कहा था। “और कहें तो हम सब का है।” तेजी ने एक घोषणा जैसी की थी। “आदमी के मरने के बाद तो हम सब का ..” वह हंसी थी। “जितनी जल्दी इस आदमी की अंत्येष्टि हो जाए उतना ही हमें फायदा!” उसने चुन्नी को समझाया था। “हम तो तोले दो तोले खाते हैं बहन! लेकिन ये आदमी ..? इसके पेट की तो थाह ही नहीं है। थोड़े दिन और न मरा तो न जाने कितनी और धरती लील लेगा?” हवा में हाथ फैलाए थे तेजी ने। “बढ़ती ही जा रही है इसकी भूख बहन।” तेजी ने जैसे आदमी को ललकार कर कहा था। “आताल पाताल सब खोद कर खा जाएगा अगर ये न मरा तो ..”
“फिक्र मत करो!” चुन्नी ने उसे धीरज बंधाया था। “अब हम मिल बैठे हैं तो काम हुआ ही समझो।”
“लेकिन उस काग भुषंड का क्या करोगी?” तेजी सीधे सीधे सत्ता के समीकरण पर आ गई थी। “वह तो ..”
“वह तो स्वभाव है उसका!” मुसकुराई थी चुन्नी। “पर दिल का बुरा नहीं है!” उसने हंस कर तेजी को एक इशारा किया था। “नकुल की ही लाइन का समझें!”
“अच्छा ..!” उछल सी पड़ी थी तेजी। “फिर तो इसे भी संभाल लेंगे!” उसने स्वीकार लिया था।
चुन्नी को यहां आ कर बहुत भला लग रहा था। उसे पहली बार आभास हुआ था कि आदमी के मरने के बाद उन्हें क्या कुछ मिलना था। वास्तव में ही आदमी ने अपने हक से बहुत ज्यादा गड़प कर लिया था।
“भाई साहब दिखाई नहीं दे रहे हैं?” चुन्नी ने पूछा था।
“यह हमारी गुप्त मुलाकात है।” नकुल ने इशारा किया था। “जो भी तय करना है – सब पहले ही तय हो जाये!” उसने चुन्नी को घूरा था।
“वैसे तो सब तय हो ही चुका है बहन!” तेजी ने सूचना दी थी। “इनका राजा बनना तो तय समझो!” तेजी ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा था। “केवल तुम और ये काग भुषंड ..?”
“भाई, ये तो तुम लोगों पर है कि ..?”
“हमें तो हर शर्त स्वीकार है, बहन!” तेजी ने अपने पत्ते फेंके थे। “हम तो चाहते हैं कि सर्व हिताय और सर्व सुखाय साम्राज्य की स्थापना हो!” तेजी ने बड़े ही दार्शनिक तरीके से अपनी बात कह दी थी।
“सब के हितों का ध्यान रक्खा जाएगा!” नकुल बीच में बोला था। “और राजा और प्रजा का नहीं आम भाई चारे का सलूक रक्खा जाएगा!” उसने ऐलान किया था।
“सत्ता छोटों के हाथ में रहे! बड़ों को सत्ता से दूर रक्खा जाये!” अब चुन्नी ने भी अपनी बात शामिल की थी। “यही तो मैं चाहती हूँ नकुल भाई साहब!” चुन्नी प्रसन्न थी।
नकुल ने तेजी को घूरा था। तेजी के चेहरे पर एक मुसकान दौड़ गई थी। चुन्नी उनकी गोट में आ गई लगी थी।
“जोर जुल्म नहीं! हिंसा हत्या भी नहीं!” तेजी कह रही थी। “न कोई नीच न कोई ऊंच!” अब उसने चुन्नी की आंखों में देखा था। “सब समान! सब के हक हुकूक कायम!” उसने बात का तोड़ कर दिया था।
“मुद्दा तो आदमी को फतह करना है।” नकुल ने याद दिलाया था। “उसके बाद तो ..”
“पौ बारह ..!” चुन्नी ने एक अतिरेक के साथ कहा था। “मैं काग भुषंड से बात कर लेती हूँ! उम्मीद है इन शर्तों पर बात बन जाएगी!”