तेजी सोच रही थी कि नकुल को यों निकाल फेंकना ठीक नहीं था। अकेले जरासंध पर मूँछें मुड़ा कर बैठना बेवकूफी थी। नकुल जैसे लायक मिलते कहां हैं! वह एक अच्छा लड़ाका ही नहीं एक अच्छा सहायक भी है – तेजी यह जानती थी।
जब से नकुल ने सत्ता का अंजन तेजी की आंखों में डालकर उसे सत्ता का सपना दिखाया है – तब से उसका चैन हराम हो गया है। हर पल, हर छिन तेजी अपना ही एक साम्राज्य बनाती लगती है और उसमें नकुल को लेकर वह सत्ता का हर सोपान चढ़ती नजर आती है!
काश नकुल से वह मिल लेती! काश अगर नकुल ही उससे मिलने चला आता? तो क्या कोई गुप्त मुलाकात कभी हो सकती थी?
“गुप्त यहां कुछ नहीं होता है मित्र! यह केवल भ्रम होता है।” लालू शशांक को समझा रहा था। “काग भुषंड पागल नहीं है! उसकी एक आंख गरुणाचार्य पर रहती है! उसे अब तक सब पता चल गया होगा!” लालू हंस रहा था।
“तो – फिर तो ..?”
“तुम रंग देखना अब!” लालू कुलांच भर रहा था और शशांक के सामने आ खड़ा हुआ था। “कैसे कांटे से कांटा निकलता है – ध्यान से देखते रहना!”
चुन्नी का यों अचानक उससे मिलने चले आना नकुल को बहुत अच्छा लगा था। उसके पिराते घावों पर मानो किसी मरहम लगा दिया हो – ऐसा लगा था। चुन्नी की चाल चलगत को पहचानने में नकुल ने गलती नहीं की थी। चुन्नी के इरादे साफ साफ उसके चेहरे पर लिखे थे!
चुन्नी नहीं – वो एक चुनौती थी जो आने वाले कल की कुंजी थी। चुन्नी का अपना कद नकुल को कहीं ज्यादा बड़ा लगा था।
“काग भुषंड जी के क्या हाल चाल हैं?” नकुल ने प्रश्न पूछा था। यह प्रश्न उसने सोच समझ कर दागा था। वह चुन्नी का मत अगली बात करने से पहले जान लेना चाहता था। “हाथियों के साथ हुई संधि के बाद से तो ..?” नकुल तनिक मुसकुराया था।
“संधियां तो होती जाती रहती हैं नकुल भाई साहब!” चुन्नी हंसी थी। “महत्व संधियों का नहीं – महत्व होता है विचार का!” चुन्नी दार्शनिक हो आई थी। “संधियों के पीछे तो स्वार्थ होता है लेकिन विचार के पीछे होता है एक बड़ा मकसद!”
“मतलब ..?”
“मतलब भाई साहब कि विचार एक श्रेष्ठ भावना है – जो सर्व हिताय और सर्व सुखाय को लेकर आगे बढ़ती है! संधि तो मात्र स्वार्थों का एक सौदा है!” चुन्नी ने अपने हाथ झाड़ दिये थे। “सत्ता हथियाने का षड्यंत्र चल पड़ा है!” अब उसने बात का खुलासा किया था। “अब आप ही सोचो कि जरासंध को बगल में बिठा कर ये पृथ्वी राज अपने को क्या सोच रहा है?”
चुन्नी ने नकुल की दुखती रग पर हाथ रख दिया था।
अब नकुल भी फूट पड़ना चाहता था। नकुल कहना चाहता था कि पृथ्वी राज घोर स्वार्थी और एक टुच्चा चूहा है! “उसे तो स्वामी भक्त भी बुरे लगते हैं! वह घोर अवसर वादी और सामंत वादी है। अगर सत्ता पर उसका हत्था बैठ गया तो ..”
“ये चलेगा नहीं” चुन्नी ने बात आगे बढ़ाई थी। “जरासंध को लेकर पृथ्वी राज कभी भी कामयाब नहीं हो सकता!” चुन्नी ने दो टूक कहा था।
नकुल के लिए भी यह नया सबब था। जरासंध की अपार शक्ति को लेकर उसे शक तो नहीं था। चूहों के साथ आ मिला जरासंध उसे तो अजेय लगा था। लेकिन चुन्नी के पास और भी क्या पत्ते थे – अब वह जान लेना चाहता था!
नकुल तनिक खुश हुआ दिखा था!
“लेकिन जरासंध तो ..” नकुल अब जरासंध की शक्ति का बखान करना चाहता था।
“कुछ भी नहीं है जरासंध!” चुन्नी ने मुंह एंठ कर कहा था। “कोरी हवा है – हवा!” चुन्नी हंसी थी। “क्या उम्र है इसकी?” उसने नकुल की आंखों में घूरा था। “पल दो पल से लेकर चार छह दिन – बस!” चुन्नी ने धारदार आवाज में कहा था। “क्या है – बिना शरीर और बिना सांस का ये जरासंध? तनिक गर्मी बढ़ी तो मरा और तनिक शीत आया तो गया!” उसने अपनी आंखें नचाई थीं। “अरे नकुल भाई आदमी से लड़ना इतना आसान नहीं है!” उसने बात का तोड़ कर दिया था।
“अरे हॉं बहिन जी! मैं तो इस बात को सोच ही नहीं सका था।” आश्चर्य चकित हुए नकुल ने हामी भरी थी। “निरा मूर्ख है ये पृथ्वी राज तो!” अब वह हंस पड़ा था। “हवा है – जरासंध, ये तो सच है!” लगा था जैसे उसने एक महत्वपूर्ण सत्य की खोज कर ली थी।
“और भाई साहब ..” चुन्नी ने अगली बात आरम्भ की थी।
“काग भुषंड एक सच्चाई है! एक सामर्थ्य का नाम है!” नकुल ने बात काटी थी।
“नहीं न!” चुन्नी ने कठोर स्वर में कहा था। “निरा धूर्त है – वह भी!”
नकुल ने आंख उठा कर चुन्नी को नई निगाहों से देखा था। वह जो अब तक समझ रहा था वह तो वहां था ही नहीं! चुन्नी उसके पास काग भुषंड की सिफारिश लेकर नहीं आई थी। शायद उसका तो मंसूबा ही कुछ और था!
“लेकिन .. आप तो ..?”
“जैसे आप को भाई साहब ..” चुन्नी ने चुटीली मुस्कान फेंकी थी। “व्यर्थ है, बेकार है – ये किसी भी धूर्त को महान बनाना!” चुन्नी ने बात साफ की थी। “जैसे कि आप उस धूर्त चूहे को धरा पति बना रहे थे .. ओर मैं इस धूर्त कौवे को काला नहीं सफेद कह रही थी! लेकिन क्यों? क्यों करे हम उनकी वकालत जो कुछ हैं ही नहीं?” जोर देकर कहा था चुन्नी ने।
“जो गंवार है तो हम उसे गंवार ही कहें?” नकुल ने भी पुष्टि की थी।
“जी हॉं!” अब चुन्नी कूद कर सामने आ बैठी थी। “किसी भले आदमी के गुण ज्ञान को क्यों छिपाया जाये?”
“आपकी बात तो ठीक है बहिन जी! लेकिन अब किसी को आप को सत्ता सौंपनी पड़े तो?”
नकुल की आंखों में अहम प्रश्न तैर आया था। वह जानता था कि चूहे को राजा बनाना बिल्ली को बनाने के मुकाबले अच्छा था। जो पहले से ही दमदार है उसे और भी दमदार बनाने में तो खतरा ही खतरा था! अगर शेर को ही फिर से राज मिल गया तो अबकी बार शेर आदमी से भी ज्यादा आतंकवादी सिद्ध होगा!
“क्यों सौंपें किसी को सत्ता?” चुन्नी ने जोर देकर कहा था। “क्यों बनाएं किसी को इतना निरंकुश कि वह मनमानी करे?” चुन्नी कह रही थी।
“फिर क्या करें बहिन जी?”
“हम ऐसा करे नकुल भाई जहां सत्ता हमारे हाथ में रहे – हम सब के हाथ में रहे! किसी एक के हाथ में न रहे!”
“लेकिन वो कैसे?”
“हम जिसे भी चुनें वह हमारे हाथ में रहे! जैसे ही वो मनमानी करे हम उसे सत्ता से बरखास्त कर दें और दूसरा चुन लें! और उससे कहें कि वह निर्धारित नियमों का ही पालन करे! वह हम सबकी मर्जी से चले और मनमानी बिल्कुल न करे!”
“ये कैसे संभव है बहिन जी?”
“क्यों? संभव क्यों नहीं है भाई साहब!”
नकुल चक्कर में पड़ गया था! उसकी छोटी समझ में ये बड़ा विचार समा ही न पा रहा था!
मेजर कृपाल वर्मा