जब से नकुल का नाम पंचों की शुमार में आया था तब से पृथ्वी राज की बाछें खिल गईं थीं। उसकी पत्नी तेजी ने तो अपने आप को दिल्ली की महारानी के खिताब से संबोधित करना शुरू कर दिया था। वह अब किसी भी दिन सेठानी संतो को अंगूठा दिखा कर सारा धन धान्य अपने कब्जे में लेने वाली थी!

जितना जल्दी इन आदमियों का सर्वनाश हो उतना ही उन्हें फायदा था! हर रोज खा खाकर आदमी गोदाम खाली कर रहे थे! अगर भरे पूरे गोदाम उनके हाथ लगते तो पुश्तों तक की पूर्ति थी!

“देवर जी! कहां भागे फिरते हो?” नकुल के आते ही तेजी ने कहा था। “पंच क्या बने तुम तो परमेश्वर को ही भूल गये?”

“नहीं भाभी, नहीं!” नकुल ने विनम्र स्वर में कहा था। “कैसे हो सकता है कि हम अपने परमेश्वर को भूल जाएं!” वह हंसा था। “अब तो भाई साहब सम्राट बनेंगे! और आप ..!”

“सब आप का दिया किया होगा भाई साहब!” तेजी ने विहंस कर कहा था। “लेकिन उस हरामी कौवे की चाल ..?” तेजी ने एक चेतावनी दी थी। “कम मक्कार नहीं है वह! और फिर गरुणाचार्य तो ..?”

“हुल्लड़ और कुल्लड से मिल कर आ रहा हूँ। “नकुल ने गुपचुप कहा था। “कहां हैं भाई साहब!” उसने पूछा था। “कुछ राजनीति की बातें करनी थीं!” नकुल ने मकसद बताया था।

तेजी की बारीक समझ ने एक साथ पकड़ लिया था कि जरूर ही हुल्लड़ और कुल्लड हाथी उनकी ओर आ गये थे और शेर बघेर बहुत पीछे छूट गये थे!

“सो रहे हैं!” तेजी ने बताया था। “आप तो जानते हैं भाई साहब कि रात भर राज काज में निकल जाती है!” तेजी ने काम को कोसा था। “अब तनिक आराम भी न करें तो ..?”

“ठीक है! मैं फिर हाजिर होऊंगा!” नकुल ने माफी मांगी थी। “आप कह देना कि मैं आया था!” कह कर नकुल चला गया था।

तेजी बहुत प्रसन्न थी।

लेकिन शेष नाग के सामने असल में ही संकट आ खड़ा हुआ था। गरुणाचार्य का प्रधान पंच बनने का सीधा सीधा एक ही अर्थ था – पूरी नाग जाती का पूर्ण पराभव! किसी भी हाल में गरुणाचार्य सर्पों का साथ नहीं देगा – यह तो सभी जानते थे!

लालू कितना काइयां था – शेष नाग ने अब आ कर समझा था! एक एक पंच ओर सरपंच का चुनाव कितनी बारीक सूझ बूझ से किया गया था – शेष नाग अब समझ पा रहा था!

“व्यर्थ में पृथ्वी का भार उठाया तक्षक!” शेष नाग की जबान कांप रही थी। “जाने देते पृथ्वी को रसातल में तो हमारा क्या डूबता?” उसने आह भरी थी। “आदमी से कुछ आशाएं तो अब भी हैं!” उसने भविष्य की आंख में देखा था। “लेकिन अगर आदमी मरा – तो मान लो कि हम भी मर गये!”

यूं रोते बिसूरते शेष नाग की बात में दम था। तक्षक को भी घोर अंधकार दिखाई दे रहा था। गरुणाचार्य से तो उसे भी कोई उम्मीद नहीं थी। वह सर्पों का बैरी ही तो था!

“पीछे से पढ़ते हैं – इस गरुणाचार्य को भाई!” अब तक्षक दूर की कौड़ी लेकर आया था। “पीछे से पढ़ो इसे आप!” उसने राय दी थी।

शेष नाग की जैसे नींद खुली हो ऐसा लगा था। और न जाने कैसे उसका तीसरा नेत्र खुल गया था। एक अलग प्रकार की समझ बूझ उसके भीतर भरती लगी थी। लगा था – आदमी का दिया देवता का पद त्याग कर वह आज दानव समाज का हो गया था!

जब जंग लड़नी हो तो – दानव, जब ऐशों आराम करना हो तो मानव और फिर भूख मिट जाए तो देवता! शेष नाग खुल कर हंसा था। उसने फिर से तक्षक को घूरा था!

“ठीक कहते हो, अनुज!” उसने स्वीकार में सर हिलाया था। “बिलकुल ठीक कहा है तुमने!” वह मुसकराया था। “पीछे से ही पढ़ते हैं इस गरुणाचार्य को!” उसने हामी भरी थी। “और तुम ही अंजाम दोगे इस काम को!” उसने तक्षक को आदेश दिया था।

“आप तो जानते हैं कि गरुणाचार्य को सांप का शरीर सोने से भी ज्यादा प्रिय है!” हंस रहा था तक्षक। “सांप का शरीर ही उसकी एक ऐसी कमजोरी है जो उसे लेकर कभी भी डूब सकती है!”

“बिलकुल ठीक पकड़ा तुमने!” शेष नाग प्रसन्न था। “प्रसन्न करो गरुणाचार्य को! और फिर फतह हासिल करने के लिए कुछ आहुतियां तो देनी ही होंगी?”

“सर्प जाति को आहुतियां तो देनी आती हैं महाराज!” तक्षक गंभीर था। “हमारा तो इतिहास है! आदमी हमारी व्यर्थ में पूजा तो नहीं करता?”

शेष नाग को बात जंच गई थी। आदमी अगर नागों का आदर करता है तो यूं भला फोकट में थोड़े ही! नागों में कुछ विशिष्ट है तभी तो। नाग औरों से अलग हैं! उनकी पूजा के परिणाम सार्थक हैं तभी तो ..

पृथ्वी का राज शेष नाग को ही मिलना चाहिये! आदमी के बाद धरती का अगर कोई स्वामी बनेगा – तो वो शेष नाग ही होगा!

मेजर कृपाल वर्मा

मेजर कृपाल वर्मा

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