अटलांटिक महासागर के बीचों बीच बसे महाद्वीप को देखकर मेरी ऑंखें धन्य हो गई थीं।

पहली बार ही मैंने इतना सुंदर दृश्य देखा था जहॉं अथाह सागर के मध्य में यह महाद्वीप बसा था और आकाश पाताल के बीचों बीच इतना मनोहारी दृश्य बना रहा था! सब कुछ मन को मोहने वाला था। और अब मुझे मेरे लिए बने शीश महल की याद सताने लगी थी। न जाने कैसा होगा .. और न जाने ..?

फरीद भी अपनी ताज पोशी को लेकर चुप था, मगन था और सोच रहा था – शायद कि खलीफा बनने के बाद ..

राज दरबार की शोभा भी अलौकिक थी! मैं अब किसी सिंहासन पर आसीन होने की आस लगाए बैठी थी। और फरीद ..

“मुजरिमों को पेश किया जाए!” फरमान जारी हुआ था तो मैं चौंक पड़ी थी। मैंने फरीद को देखा था। वह भी चुप था। “शहजादा फरीद देश द्रोही हैं अतः सजाए मौत सुनाई जाती है और गुलबदन ने सल्तनत की मुखालफत की है अतः फांसी चढ़ेंगी!” ऐलान करने वाले ने अब हम दोनों को देखा था। “दोनों को साथ-साथ खलक के सामने सजाएं मिलेंगी ताकि ताकीद रहे कि ..”

यह कैसा गजब गिरा था? मैंने हैरानी से फरीद को घूरा था। उसका चेहरा भी जर्द पीला पड़ गया था!

अब हम दोनों को आमने सामने काल कोठरियों में बंद कर दिया गया था। हम एक दूसरे को देख सकते थे – पर बतिया नहीं सकते थे। वैसे भी मेरा मन खट्टा हो गया था। मैं अब फरीद से बोलना नहीं चाह रही थी!

हमें फांसी पर चढ़ते देखने के लिए महाद्वीप की पूरी आबादी उठी चली आई थी। एक उत्सव जैसा मनाया जा रहा था। हम दोनों गुनहगारों को फांसी खाने के लिए तैयार कर ला खड़ा किया था। जमा लोग हमें देख रहे थे! तभी .. हॉं-हॉं तभी मेरा जीया भड़का था और मैंने लोगों से अपने मन की बात कह डाली थी।

ए, कर्मों वाले लोगों!

फरियाद है कि हमें हमारे माबूदों से मत फेरो! हम सच्चे हैं और अल्लाह हमारी हिफाजत में है! गुनाहों का इल्म अल्लाह को होता है, बन्दों को नहीं! हम तो खुदा का ही प्रेम पैगाम लेकर जमीं पर आये हैं!

यह लोग नादानी की बातें करते हैं – कि हम ने कोई गुनाह किया है! हम तो अपने रब के हुक्म से यहॉं आए हैं!

और लोगों –

हम अल्लाह को बादलों की शक्ल में वादियों की ओर जाते देख रहे हैं! मुमकिन है कि अल्लाह बरसेगा और यह वो चीज होगी जिसमें दर्दनाक अजाब होगा!

मुजरिमों को अल्लाह ही सही तरह की सजा देता है!

मैंने हाथ उठा कर ऐलान किया था!

और, बाबू आसमान से अचानक ही पत्थरों की बरसात होने लगी थी। और आश्चर्य ये था कि हम दोनों के सिवा हर किसी को पत्थरों की मार पड़ रही थी, लोग मरे थे, घायल हुए थे और देखते-देखते ही पूरा का पूरा महाद्वीप पत्थरों की नाट बन गया था!

हम दोनों को लेने पुष्पक विमान आया था और हमारा स्वर्गारोहण संपन्न हुआ था! यह फिल्म ‘नवाबजादे’ का अंतिम दृश्य था, बाबू!

जेल की इस काल कोठरी में कैद मैं भी अब इस जिल्लत भरी जिंदगी से तंग आ चुकी हूँ!

सच मानो बाबू कि मैं हर पल यही सोचती हूँ कि – क्यों .. क्यों परमात्मा हम सच्चे प्रेमियों की सुध नहीं लेता? क्यों नहीं कहर के बादल आसमान पर छा कर खुड़ैल और इसके अनुयाइयों पर पत्थरों की बारिश करते। इन गुनहगारों को यहॉं पनाह कौन दे रहा है? सच्चे लोगों पर ही विपदाएं क्यों टूट रही हैं?

“मैं मरूंगी नेहा!” अचानक ही मैं कैली की करुण आवाजें सुनने लगी थी। “यह लोग मुझे मार डालेंगे!” वह तड़प रही थी। “मैंने .. मैंने मुंह खोला है .. जुर्मों के खिलाफ तो रमेश दत्त खफा है!” कैली की ऑंखों में बेबसी के आंसू तैर आए थे।

सच मानो बाबू कि यह गिद्धों की जमात कैली का जिस्म नोच-नोच कर खाते रहे थे .. उसे भरमाते रहे थे लूटते रहे थे और तीन फिल्में लगातार फ्लॉप होने के बाद अब चाहते थे कि वो ..

“कत्ल करा दिया कैली का! बिलकुल तुम्हारी तरह का ही बाबू!” और कहा गया कि उसने असफलताओं से निराश होकर आत्महत्या की है!

क्यों नहीं पत्थरों की बरसात होती यहॉं, बाबू ..?

क्यों नहीं .. हमारा .. हम दो सच्चे प्रेमियों का स्वर्गारोहण होता? कब आएगा पुष्पक विमान हमें लेने बाबू?

बहकी-बहकी बातें कर रही थी नेहा और रोती रही थी विछोह के विरह में ..

सच बाबू! सॉरी बाबू .. हॉं-हॉं बाबू! हमें लेने अवश्य आएगा पुष्पक विमान ..

रो रही थी नेहा ..

क्रमशः

मेजर कृपाल वर्मा 1

मेजर कृपाल वर्मा

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