कविता

हर बात के विस्तार - बोर करते हैं।
सांकेतिक शब्दाेें का जमाना है लेकिन - 
समस्याओंं के संसार न जाने क्याेें -
रो देते हैंं? 
तुम गरीबी हटाओ - सौभाग्य देवता।
हम भी गरीबोंं के साथ हैं -
तुम जागती रहना - हमारी सस्कृति -
हम सोनेवालोंं के पास हैं।
अलसाई सुबह केे बादल - 
न जाने क्यों - शोर करते हैं?
नींद को चाट जाती है - मुर्गे की बॉंंग। 
सपनो को तोड़ती है - किरनों की अनी। 
लेकिन उठने को कहता कौन है? 
सोनेे का अन्याय - तो हम - 
रोज करतेे हैंं।। 
कृपाल  

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