”बाबू भैया , सुना आप ने ? ” गप्पू नराज है . ”हम तो पहले ही कह रहे थे । ” उस के स्वर तीखे हैं . ” हो गया न – पंगा ….?” उस ने प्रश्न दागा है । ”वही नाम-गॉव का लफड़ा ।” वह बताने लगा है . ”अब कहते हैं – फलाई-ओवर का नाम ‘वीर सावरकर’ नहीं होगा । थे कौन …ये वीर सावरकर …?”
”कौन थे …?” मैंने धीरज के साथ पूछा है .
”हमारे दादा जी के साथ जुुद्ध …किये थे …आज़ादी के लिये …। काले पानी साथ-साथ रहे थे …। दादा जी कहते थे कि…उन जैसा महावीर कोई होगा -क्या …? गांधी तो …मच्छर थे ….।।” उस ने मुँह बनाकर कहा है .
”मामला क्या है ?” मैंने सहजता से पूछा है .
”यही कि …नये फलाई ओवर का नाम ‘वीर सावरकर’ न होगा । और चाहे जो हो ? कहते हैं – रख लो किसी भी ‘गांधी का नाम . ‘औरंगज़ेब’ ….नहीं तो …’चर्चिल” का नाम दे दो । पर वीर सावरकर …तो नहीं ….”
”फिर….?”
”फिर – पंगा हो गया …। मैंने कहा था न कि ….मार-पीट भी हो जाती है ? हो गई । सर-फुटोवल तक बात पहुँची । लेकिन फिर बात सिरे चढ़ा कर ही माने । अब जनता ने जूते से नाम रखवा दिया – वीर सावरकर फलाई ओवर …..।।” जोरों से हंसा है , गप्पू . वह प्रसन्न है . ”ये लोग राज़ी- रिस्ता मानेंगे नहीं , बाबू साब ।” उस ने ऐलान जैसा कुछ किया है .
”तो ….?”
”तो – क्या ? अब हमने भी ‘गप्पू’ नहीं …गोपाल ही नाम रख लिया है । और अपने गॉव का नाम भी ‘फ़रीदपुर ‘ नहीं …..’गोपालपुर’ रख लेंगे ।” वह चहक रहा है .
”और वो …’सैक्यूलर’ …..?”
”नहीं चलेगा ….।” उस ने सर हिलाया है । ”भाईचारे की नहीं …ये तो हत्या की जड़ है, ससुरा ।।” वह दो टूक नांट गया है ।
मुझे भी आज आसमान साफ दिखाई देने लगा है ।।
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कृपाल