कविता !
कोरोना देव ! दुहाई…..दुहाई…..दुहाई….!!!!
देखिये, देव ! भागते -जागते बे-चारे … इन्सान को ?
उजड़ते…मजदूर-मालिक-और अमीरों को …?
बन्द पड़े -शहरों को , शान्त गांवों को ….और मौन घाटियों को ?
रोते आसमान को …बरसती आग को …हमारे रौद्र चहरों को
दुहाई, देव …!
छोड़ दू – तुम्हें ? क्षमा करदूं ? भागजाने दूं -सब को ….?
ताकि तुम जा कर जहर घोलो -पवित्र वायु में …?
दूषित कर दो – नगर , नदियाॅ, नाले और सागर ?
खा-जाओ …अंगारे , पी जाओ -शराब के महासागर ?
और कूड़ा कर डालो -सारी संस्कृति को – गंधाता कूड़ा ?
दोश मुक्त करदूं – तुम्हें …ताकि – तुम ……..??????
कृपाल .

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