‘फ्री’ का एक लम्बा-चौड़ा बोर्ड मैदान मैं लगा था ….!!
दो-चार टहलने आए लोग उस बोर्ड को पढ़ कर वहां खड़े हो गए थे .
चार-पांच गैलाऊ उन्हें खड़ा देख कर मैदान में चले आए थे …..कि देखें कि इतने लोग क्यों खड़े थे …? उन्होंने भी उस ‘फ्री’ के लगे बोर्ड को पढ़ा था . सोचा था – कुछ बटेगा तो ज़रूर ….’फ्री’ …! वह भी मैदान मैं जम गए थे . ‘काम तो होता ही रहेगा ‘ उन का मत था . ‘लेकिन जो मिले -सो मिले ……’फ्री’ …’ उन्होंने निर्णय ले लिया था .
फिर तो दो-दो …चार-चार लोग आने लगे थे . अच्छी भीड़ जमा होने लगी थी . भीड़ बढ़ने लगी थी . ‘फ्री’ का बोर्ड तो लगा ही था ! सब पढ़ लेते थे ….और मौन खड़े हो जाते थे !!
अरे,भाई ! जहाँ इतने लोग खड़े हैं …और ‘फ्री’ का बोर्ड भी लगा है – तो कुछ मिलेगा तो ज़रूर ….’फ्री’ …! देर-सवेर तो हो जाती है . समय तो लगता है …? फिर इंतज़ार करने में क्या बिगड़ता है ….?
पूरा मैदान खचाखच भर गया था . सतरंगी भीड़ जमा थी . मौन टूटने लगा था . ‘कब मिलेगा ?’ ….’क्या मिलेगा’ जैसे प्रश्न पूछे जाने लगे थे .
“मुझे क्या पता ….?” किसी ने क्रोध मैं कहा था . “मुझे पूछे जा रहा है , मूर्ख …!!” वह गरज रहा था . “पढ़ले …न ..बोर्ड …” उस का उलाहना था .
और अब बोर्ड पढ़-पढ़ कर बाबले हुए लोग …इंतज़ार में कब तक सूखते …?
लेकिन ‘फ्री’ का माल तो ….कोई भी …कभी भी …आ कर बाँट जाता ….????????
‘फ्री ‘ का बोर्ड तो अभी भी लगा ही था !!
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कृपाल .