गतांक से आगे :-

भाग – ७८

विश्व नारी संगठन का समारोह दुबई पर छाया हुआ था …..!!

पूरे विश्व से नारी समाज संगठन की चुनिन्दा महिलाएं दुबई पधारी थीं. एक गजब की गहमागहमी भरी थी हवा में. नए-नए विचारों और सुझावों की आंधी आई हुई थी. नारी उत्थान के लिए और क्या होना था – इस पर चर्चा चल रही थी.

“भारत से आईं .. महारानी काम कोटि .. श्रीमती पारुल बोस आपके सामने अपने विचार रखेंगी !” माइक पर घोषणा हुई थी. पहली बार अपने नाम के साथ जुडा- ‘बोस’ आज पारुल को एक कलंक जैसा लगा था. लगा था – एनाउंसर ने गलत घोषणा कर दी हो !

लेकिन पारुल को दो शब्द तो कहने ही थे. हालाँकि आज उसका मन बहुत ही डूबा-डूबा लग रहा था. बार-बार कविता की हंसी का अट्टहास उसके होश उडा रहा था. वह हार गई थी – कविता से ! और अब चाह रही थी कि किसी तरह से भी वह उसका सब ले ले ! चन्दन महल समुन्दर में समूचा समां जाये .. सब तहस-नहस हो कर बिखर जाये .. और ..

“महारानी काम-कोटि !” कहते हुए एनाउनसर ने पारुल को माइक पकड़ा दिया था.

“मै सोचती रही थी कि .. मेने नारी उत्थान के लिए बहुत काम कर दिया है. बड़े-बड़े मोर्चे फतह किये हैं .. और मेरी सफलताएँ बेजोड़ हैं !” पारुल ने भव्य समारोह को आँखें भर कर देखा था. “लेकिन बहिनों .. मित्रों .. और मेरी बहुत-बहुत अपनी नारियों – आज मुझे लग रहा है कि यथार्थ में मै कुछ नहीं कर पाई- इस अभागी नारी के लिए !” पारुल की आवाज डूबने लगी थी. “न, न..! नहीं !! मुझसे कुछ नहीं हुआ, मेरी मित्रों !” सांस उखड आई थी पारुल की. “मै .. मै निहत्थी पारुल .. लावारिस पारुल .. और पराजित पारुल यही कहूँगी कि .. पुरुष एक महान प्रवंचक है !” रुकी थी पारुल. तालियाँ बज उठीं थी. “सच मै ही पुरुष का जादू नारी को ठग लेता है ! पुरुष का छल .. पुरुष का प्रपंच .. पुरुष का .. पुरुष का दिया लालच .. और पुरुष का प्रतिकार और अत्याचार – नारी को ऊपर उठने ही नहीं देता !” भीड़ ने बाबला हो कर तालियाँ बजाई थीं. पारुल की आवाज में करुना थी .. वेदना थी .. दुःख था. “क्या करें ..?” उसने हाथ झाडे थे. “नारी .. रहेगी परतंत्र .. रहेगी .. गुलाम ..!!” पारुल ने बात समाप्त कर दी थी.

पारुल का अंतर आज रो रहा था…..!

“इतना दुःख .. इतनी वेदना .. क्यों ..?” संभव भी आज चौंका था. “क्या हुआ, पारो ..?” उसने आत्मीय आवाज में पूछा था.

“क्या नहीं हुआ ..?” पारुल आज बरस पड़ना चाहती थी. “मेरे साथ क्या-क्या नहीं हुआ, संभव ?” उसने संभव की आँखों में सीधा झाँका था. “तुम तो मेरे जीवन के सबसे बड़े साक्षी हो .. गवाह हो .. प्रत्यक्ष दृष्टा हो !” पारुल बिफर पड़ना चाहती थी. “मै बिकी थी .. तुम थे ! तुमने देखा था – मुझे बिकते .. सहा था .. उस घटना को और कुछ भी न कर पाए थे …!”

“हाँ ..! लेकिन ..?” संभव भी घबरा गया था.

“लेकिन क्या ..? हमने जो भी विकल्प निकाला .. विफल ही रहा ! हमने जितनी-जितनी कोशिशें कीं .. हम उतने ही डूबे !” पारुल की आँखें आंसूओं से भर आई थी.

“मै तो .. सोचता रहा था कि राजन के साथ तुम्हारा ..?”

“गलत सोचा था, संभव !” टूट आई थी पारुल. “तब मुझ पर क्या बीत रही थी – तुम तो अंदाज भी नहीं लगा सकते ..?”

“मतलब कि .. राजन ..?”

“नहीं …! राजन नहीं – समीर ..! और समीर ही क्यों पूरा का पूरा सेकिया कुल-खानदान – मेरे खिलाफ हो गया था, संभव !” पारुल ने सहारे के लिए संभव का हाथ पकड़ा था. “इस समीर को जिसे तुमने मरा समझ लिया था – वह मरा कब था ..? सर्प बन कर मेरी छाती पर सवार था ! और .. और .. वो महारानी सोना ..!” पारुल रोने लगी थी. “मेरी .. छाती पर बैठकर .. घुटने मेरे गले में अडा कर .. कह रही थी – तुमने हमारा कुल-दीपक बुझा दिया ! मै तुम्हें ..”

“ओह, गॉड !” संभव द्रवित हो आया था. “मुझे तुमने .. कभी ..”

“क्या बताती ..? क्या-क्या बताती तुम्हे ? क्यों बताती तुम्हें ?” पारुल बिखर गई थी. “सच में तो तुम मेरे कुछ थे ही नहीं ! सच में तो मै समीर की विधवा थी .. स्टेट की बहू थी .. और जब मेने राजमाता के बाद .. सब कुछ संभालना चाहा था तो ..”

“तो ..?”

“वही दृश्य ….! मेरी बेटियां तक सापिन बन-बन कर मेरे शारीर से आ लिपटती .. मुझे .. मुझे ..”

“ओह, हेल….!!” संभव को पसीने आ रहे थे. “फिर क्या हुआ…?” संभव ने पूछा था.

पारुल ने अपने आप को संभाला था. उसने पानी पिया था. उसने कुछ सोचा-समझा था. लेकिन आज उसका निर्णय था कि संभव को जीवन का तिल-तिल खोल कर दिखा देगी. आज संभव उसके पास था – और शायद अब संभव ही शेष बचा था. चन्दन बोस से पारुल का मन भर गया था .. स्वाद खट्टा हो गया था ..!!

“तब मेरी मुलाकात सैलानी सिल्विया क्रिस्टी से हुई थी.” पारुल ने होश संभाला था. “सिल्विया ने मुझे तांत्रिक की कहानी बताई. कहा – शादी कर लो .. पेड़ से .. पत्थर से .. या किसी कुत्ते से ..”

“क्या ..?” बमक पड़ा था संभव! “कुत्ते से शादी ..?”

“ये टोटका था – शादी के बाद चाहे उसे जूते मार कर भगा दो ! तुम्हारी जान आय-बलाय से छूट जाएगी.” पारुल ने समझाया था संभव को.

“छूटी जान .. ?”

“हाँ ..! राजन से शादी करने का मेरा यही इरादा था. मेरी जान छूट गई थी – लेकिन राजन का छूटना दुश्वार हो गया था. राजन का बेटा .. दीदी को देने के बाद से मै फिर से काम कोटि में काबिज हो जाना चाहती थी. मै .. तब चाहती थी कि अपनी ‘नई दुनिया’ को संभालू और पुराना सब भूल जाऊ. और सच में ही ‘नई दुनिया’ में मेरी आँखों के सामने मेरा एक नया अवतार पैदा हुआ, संभव !” उसने तनिक प्रसन्न होकर संभव को घूरा था. “मुझे लगा – नारी उत्थान को लेकर मै न जाने कितने-कितने सोपान नहीं चढ़ जाउंगी. तभी मेने काम-कोटि में राजन के साथ मिलकर विचित्र लोक का उद्घाटन किया था और चन्दन बोस को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया था.”

“मुझे नहीं बुलाया था ..?” संभव ने उलाहना दिया था.

“हाँ, हाँ ! तुम्हें नहीं बुलाया था. मेने जानकार तुम्हे सूचना नहीं दी थी.

“क्यों ..?” संभव ने पूछा था. वह इस प्रश्न को लेकर आज तक बैठा रहा था.

“इसलिए संभव कि मै ..” रुकी थी पारुल. उसने अपने आप को फिर से संभाला था. आज वह सच-सच बयांन करने पर तुली थी. “इसलिए संभव कि .. मै .. तब चन्दन बोस को देख कर तुम्हें हार चुकी थी. मुझे लगा था – कि तुम चन्दन बोस से मुकाबला हार गए हो. लगा था- चन्दन बोस ने मुझे पूरी तरह से अभिमंत्रित कर लिया था .. और मै उसके सपने देखने लगी थी ! और फिर मेने भी जमकर ही उसपर वार किये थे. महारानी का जादू ऐसा चला कि चन्दन भी मेरे लिए पागल हो गया !” रुकी थी पारुल. “सच ,संभव…! झूंठ नहीं बोलूंगी. चन्दन भूखा था .. और मै .. प्यासी थी ..! और हम दोनों .. मिल बैठे !” पारुल ने संभव की प्रतिक्रिया पढ़ी थी.

“मुझे चन्दन ने सब कुछ बता दिया था !” संभव ने बताया था. “लेकिन मेने चन्दन को कुछ भी नहीं बताया !” प्रसन्न था – संभव. “मै .. कभी हार का मुहं नहीं देखना चाहता, पारुल ! पर न जाने कैसे मेरे हाथ लगती हार ही है !” उसने आश्चर्य पूर्वक कहा था. “चन्दन जैसे चूहे ही मोर्चा मार जाते हैं ….!”

“अंतिम विजय – तुम्हारी ही होगी, संभव …!” पारुल अब गंभीर थी.

“कैसे ..?”

“चन्दन ..!” बेबाक थी पारुल. “चन्दन का भू त – भाग गया है …!” उसने अब तनिक हंस कर कहा था. “चन्दन ने .. मुझे बहुत निराश कर दिया है, संभव…..!”

“हुआ, क्या ..?”

“ये कि .. मेरी बेटियां .. और चन्दन के बेटे कॉलेज में दोस्त बने .. और फिर .. शादी पर बात बन आई ..! मेने ना की तो मेरी बेटियों ने मुझे दर्पण दिखा दिया.” रुकी थी पारुल. तनिक गंभीर थी वह. “संभव ! इन लड़कियों को सब पता है .. सब कुछ ज्ञात है ..! बाय गॉड ! मै भी तो मुगालते में रही कि ये बच्चियां तो दूर थीं .. स्कूल हॉस्टल में थीं .. इनका आना-जाना भी न था. लेकिन .. इन्हें ..”

“सीरियस ..!!” लम्बी उच्छ्ववास छोड़ी थी संभव ने. “मै भी मस्त था कि .. बात हम दोनों के बीच थी .. और कोई गवाह सबूत था ही नहीं …!”

“मुझे उम्मीद थी कि चन्दन मेरी मदद करेगा. तभी मेने चन्दन से शादी कर ली. मेने सोचा कि इन दो सापिनों का इलाज भी अगर शादी करने से संभव हो जाये तो .. सब कुछ लौट जायेगा …!”

पारुल चुप थी. संभव भी चुप था. समस्या गंभीर थी. संभव के सामने जो नई जानकारी आई थी – भयानक थी. लड़कियां .. लड़कियां होती हैं .. कमजोर – जिद्दी .. और बेवकूफ ! अगर लड़कियों की बात न मानी तो .. कुछ भी होना संभव था !!

“चन्दन से मदद नहीं मांगी ..?” संभव ने एक स्वाभाविक प्रश्न पूछा था.

“मांगी थी !” पारुल तड़प उठी थी. “कहता है .. बेवकूफ .. कि .. ‘इन अ ब्रॉड सेंस .. इट मेक्स नो सेंस’…!” दांती भिंच आई थी पारुल की. “मेने कहा – बच्चे तो हमारे हैं .. फिर इनकी शादी ..? बोला – हमारे हैं कहाँ…..?”

“मति मारी गई है …!” संभव ने क्रोध में कहा था.

“और उसकी बीबी .. वो कविता .. ‘ऐ… ऐ .. क्रूड सॉर्ट ऑफ़ अ वोमेन…!” पारुल ने जहर उगला था. “कहती है – मेरी मंद बुद्धि बहन ..”

कविता की अट्टहास की हंसी ने पारुल को फिर से बेदम बना दिया था…….

पारुल ने अपने भीतर का जलकर राख हुआ सब कुछ आज उघाड़ कर संभव को दिखा दिया था…..!

रो रही थी पारुल ..!!

क्रमशः-

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading