गतांक से आगे :-

भाग -७७

चन्दन का और पारुल का अबोला चल रहा था …..!!

पारुल की नाराजगी का कारण चन्दन जानता था. उसने भरसक प्रयत्न किये थे के पारुल को माना ले. लेकिन अभी तक पारुल का मुंह सीधा न हुआ था. लेकिन आज .. अचानक ही पारुल का मिजाज कुछ बदला बदला लगा था. आज लगा था कि कुछ था जो पारुल ने पा लिया था. ‘वो .. तुम्हारा संवाद मेरी समझ में नहीं आया ..’ जैसे ही चन्दन ने पारुल को आगोश में लेना चाह था – तो बोली थी, पारुल. ‘इन अ ब्रॉड सेंस – इट मेक्स नो सेंस !’ पारुल ने चन्दन की आँखों में घूरा था. ‘क्या ये बच्चे हमारे नहीं है ..?’ उसने पू छ लिया था.

“अरे भाई ! हम दोनों के तो नहीं हैं,…. न …!” चन्दन ने सफाई पेश की थी.

“फिर किसके हैं ..?” प्रतिप्रश्न था पारुल का.

चन्दन बौखला गया था. नाराज हो गया था. वह थका हुआ था. वह चाहता तो था पारुल से कुछ प्रेम-प्रीत की बातें हो जाएँ. लेकिन .. पारुल ..

“अपना ही भला करते हो….!” उलाहना दिया था पारुल ने.

चन्दन का मूड ही ख़राब हो गया था. वह तनिक सा लड़ा-भिड़ा तो था – पर फिर सो गया था. पारुल जानती थी कि अब चन्दन की नीद कब खुलेगी. वह आहिस्ता से खिसक ली थी. उसने चुपके से राजन को फोन किया था. अब उसकी आँखों में उन्माद भरने लगे थे .. सपने सजने लगे थे और दिल धडक-धडक करने लगा था. उसका इच्छित पुरुष आ रहा था ..

चन्दन महल एक गहन ख़ामोशी में डूबा था. आज की शांति अनूठी थी. इंतजार में आँखें बिछाए बैठी केतकी को भी उबासियाँ आने लगी थी. उसका हिजड़ा भी आज न लौटा था. उसे झपकी आने लगी थी. लेकिन राजन चीते की चोर चाल से चल कर बगीचे के रास्ते से चन्दन महल में दाखिल हुआ था और खुले दरवाजे को आहिस्ता से धकेल अन्दर आ गया था. चुप से कुण्डी चढ़ा कर वह ऊपर चढ़ आया था.

खुली बाँहों से पारुल ने राजन का स्वागत किया था…..!

चन्दन वन की सुरभि की तरह महक रही थी, पारुल. राजन का मन प्रसन्न हो उठा था .. झूम उठा था .. मचल गया था और उसने झपट कर पारुल को अपनी बाँहों में समेट लिया था. एक स्वीकार था .. आव्हान था सत्कार था और था एक सहयोग ! पारुल मोम की तरह राजन की बाँहों में पिघल गई थी.

“योर….. ग्रेस….!” राजन ने घुस-पुस स्वर में कहा था. उसने अब पारुल के चरण गहे थे. वह उन्हें पागलों की तरह चूम रहा था. पारुल को राजन की यह प्रक्रिया सर्वश्रेष्ट लगती थी. वह जानती थी कि अब राजन आहिस्ता-आहिस्ता उसे खोजेगा .. टटोलेगा .. खायेगा .. और फिर ..

किसी भूखे को भर पेट भोजन खिलाना सब से बड़ा पुन्य होता है, पारुल सोच रही थी. कित्ता भूखा है .. उसका राजन…! पारुल के स्नेह का हाथ राजन के सर को सहला रहा था.

“योर .. हाइनेस ..!” अब राजन पारुल के ऊपर था. “योर .. हाइनेस ..!” राजन ने पारुल को पुकारा था. “ओह ! माय… गॉड ! यू आर ग्रेट .. जस्ट ग्रेट…!” राजन की पुकार थी- ये……

“यू आर .. माय डार्लिंग, राजू…!” पारुल के होंटों से निकला था. “आई लव यू वैरी मच…!” उसने कहा था.

फिर दोनों नि:शब्द थे – आलिंगन बद्ध थे – एक दुसरे में समाहित थे – और दोनों समग्र देह का समग्र सुख भोग रहे थे …! राजन ने कोमल फूल-सी पारुल को अपनी बाँहों की चक्की में पीस डाला था और पारुल .. योन-सुख के वैभव में तैरती लरज-लरज आई थी. दोनों ने एकाकार हो .. एक अनूठी आनंदानुभूति का अनुभव किया था. लगा था – वो दोनों ही प्यासे थे .. दोनों ही प्रताड़ित थे .. और अब दोनों ही आजाद थे…..!!

“तुम नहीं बदले ..?” पारुल ने प्रसन्न होकर पूछा था.

“तुम .. और भी महक उठी हो .. और भी ..!” राजन ने पारुल की आँखों में टटोला था – कुछ. “मादक .. मोहक ..” राजन कह रहा था…….

“भरा पेट ..?” पारुल ने हंस कर पूछा था.

“नहीं …! रोज-रोज आऊंगा .. ! दरवाजा तो ..!!” वह हंस गया था.

राजन के जाने के बाद पारुल घोड़े बेच कर सो गई थी…!

चन्दन ने उसे छेडा नहीं था. वह तैयार हुआ था और ऑफिस निकल गया था. लेकिन एक सोच चन्दन के दिमाग पर तारी था. क्या था – जो पारुल और उसके बीच आ खड़ा हुआ था ..? कविता को वो रोक नहीं सकता था – वह जानता था. वैसे भी कविता एक बड़ी ही साफ़-शुद्ध औरत थी. अल-छल कविता में न था. लेकिन .. पारुल .. हाँ पारुल का त्रिया-चरित्र उसे परेशांन करने लगा था.

चन्दन जा रहा था तभी केतकी की आँख खुली थी. आज के सोने के अपराध में केतकी ने भगवान् से क्षमा मांगी थी. लेकिन ऊपर बैठा वह हंस रहा था ..

केतकी को क्या पता था कि चोर आया था .. और माल लेकर चला भी गया था ..!!

चन्दन महल में एक अलग तरह का कुहराम मच गया था ….!

तमाम शोर गुल और पुकार-गुहार के बाद भी पारुल की नीद न खुली थी. लगा था – जैसे वो बीमार थी. लेकिन जब पारुल ने आँखें खोली थीं – तो वह भी दंग रह गई थी. दोनों उसकी लाडली बेटियां उसके सामने खड़ी-खड़ी उसे घूर रही थीं….!

“खैरियत तो है, माँ…?” शब्बो ने पूछा था. “डर गई हैं, हम तो….!” उसने इज़हार किया था.

“वो क्या है कि .. रात को नीद नहीं आई….!” पारुल ने झूंठ बोला था. “और .. फिर ..”

“सब ख़ैर तो है ..?” लब्बो हंस रही थी. “हमे खुश खबरी देनी थी – तो बिना बताये ही चले आये…!” वह कह रही थी.

पारुल ने अब अपना चेहरा संभाला था. वह तनिक सतर्क हुई थी. वह किसी ख़ुशी की खबर को सुनने की तैयारियां करने लगी थी.

“अगले माह शूटिंग शुरू है, माँ …!” शब्बो बता रही थी. “ये देखिये – शूटिंग प्लान ! और हमारी पहली टीम लक्षद्वीप पहुँच गई है. सारी शूटिंग वगेरा और परमिशन वगेरा तै हो गए हैं …!”

पारुल ने शब्बो द्वारा दिए कुछ कागज यूँ ही की नजर से देखे थे….!

“बड़ा ही इंट्रेस्टिंग काम चलेगा, माँ …!” लब्बो बताने लगी थी. “आप क्यों नहीं चलती….?” उसने आग्रह किया था. “सासु माँ तो पहुँच गई हैं. प्रोडूसर हैं, ना….! उन्हीं का काम है- सब कुछ लेना-देना ! ‘कविता फिल्म्स इंटरनेशनल’ की मालिक जो हैं!’ वह हंस रही थी.

“तुम लोगों ने कुछ खाना-पीना है?” पारुल ने पूछा था.

“क्यों नहीं ! पर आप तो .. ” उलाहना था, शब्बो का.

“थोडा ठहर ..! अभी ले ..!!” पारुल उठी थी और किचिन में दौड़ गई थी. ठन्डे दिमाग से वह अब अपने आंकड़े बिठाने लगी थी. शूटिंग के बाद तो समय बचेगा नहीं – वह जानती थी. जो होना था – पहले ही होना था. और होना क्या था – वह जानती कहाँ थी ? अभी तक तो उसके पास एक ही तीर था – राजन ! लेकिन .. “आप हमारी भी मदद ले लीजिए ..!” दोनों बेटियां किचिन में थीं. “हमे अब सब आता है, माँ…!” वह हंस रही थीं. “खली को चिकेन रोस्ट बहुत पसंद है! और मै अब बहुत अच्छा बनाने लगी हूँ, माँ…!” शब्बो बता रही थी.

“ये देखिये .. हमारा प्लान ..!” लब्बो ने स्केच दिखाया था. “ये हैं .. आइलैंड्स .. जहाँ जहाँ-शूटिंग होनी है ! और हाँ, माँ ! एक हजार आइलैंड्स हैं – लक्षद्वीप में ! तभी तो लक्षद्वीप नाम है …!” शब्बो ने सूचना दी थी.

“अच्छा .. ये है !” पारुल प्रसन्न थी. “तुम लोग कब जा रही हो ?” उसने पूछा था.

“चौबीस को …! हमारा लांच ऍम बी कौशल शाम को निकलेगा और सुबह नाश्ते पर हम लक्षद्वीप में होंगे! कुल १४ घंटे का रास्ता है, माँ…! ६ सीटर है और पूरा ऐ सी ! मजे के साथ रात कटेगी .. और ..”

“और कौन साथ होगा ..?” पारुल का प्रश्न था.

“कोई नहीं ! हम – हमारी मेक-अप मैड .. सोंग राइटर और बस ..!” शब्बो ने सूचना दी थी.

“स्केच छोड़ जाओ….! अगर मेरा मन बना तो शायद मै भी ..” पारुल ने बेटियों को खुश कर दिया था.

“मेम ..! दुबई से आपके लिए निमंत्रण है !” गप्पा का फोन था. “विश्व नारी संगठन वाले बुला रहे हैं ! टिकेट भी आ गया है. कल की फ्लाइट है ! कन्फर्म कर दूँ ..?” उसने पूछा था.

“कर दो !” संक्षेप में उत्तर दिया था, पारुल ने.

और जब शाम को चन्दन लौटे थे – तो उसने विहंस कर स्वागत किया था. चन्दन ने भी स्वागत किया था .. और खैरियत पूछी थी. तब पारुल ने दुबई के निमंत्रण के बारे बताया था और पूछा था कि क्या वो चली जाये …?

“क्यों नहीं, भाई ! ये तो चांस इन मिलियंस वाली बात है ! और सुनो ! संभव भी तो वहीँ है. वक्त मिले तो मिल लेना ! काम का आदमी है, पारुल !”

पारुल प्रसन्न थी. और जब राजन आया था तो उसने उसे संभव का हवाला देकर सूचना दी थी कि उन दोनों को संभव ने बुलाया था. राजन का काम होने की पूरी-पूरी सम्भावना थी.

और इसके बाद तो राजन ने सुहाग रात माना डाली थी. बीच-बीच में पारुल ने उसे पूछा भी था – आज ही सब खालोगे ? तो राजन सर गाढ़ कर प्यासे रीछ की तरह शहद की पिंडी से शहद पीता ही रहा था .. पीता ही रहा था .. और फिर चुपके से निकल गया था…..!

केतकी सोचती रही थी कि – अब वो हिजड़ा… न जाने क्यों, अब नहीं आता था ..?

क्रमशः-

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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