गतांक से आगे :-
भाग – ७४
अब काम-कोटि में दशहरे के स्थान पर दिवाली का उत्सव जोर-शोर से मनने लगा था …!!
विचित्र लोक में एक विचित्र प्रकार की हलचल भरी थी. उत्सव से भी आगे की तैयारियां हो रही थीं. राजन के लिए ये दिवाली बहुत महत्वपूर्ण हो उठी थी. उसके इरादे अलग थे. उसका सोच अब ‘प्यार घर आबे’ के साथ जा जुडा था. हर पल – हर क्षण राजन अपने नए व्यापार के बारे ही सोचता रहता था. और सोचता रहता था कि किस तरह .. चन्दन महल डूबेगा और वह पारुल को बांह पकड़ कर चुपके से बचा लायेगा !
काम कोटि में इस बार विचित्र प्रकार की भीड़ भर आई थी. लास वेगस से आये लोग सारे सिद्ध हस्त थे. सबके सब जुए के खिलाडी थे .. और अपने काम में निपुण थे. उन्हें अपने जुए के श्रेष्ट खिलाडी राजन सेठ का कमाल देखने की लालसा थी. वह जानते थे कि वह .. अगले दर्जे का कलाकार था. लेकिन इस बार उनका भी इरादा बुलंद था.
“पैसा जमकर लगेगा .. राजन बाबू !” वेगस से आये परमेश्वर ने बताया था. “मौला खूब माल लाया है ! और साथ में .. उसका वो पोन्टू दलाल भी है !”
“फिकर नहीं प्यारे !” राजन ने सगर्व कहा था. “ऊँचा खेल होगा इस बार ! देखना तुम .. परमेश्वर कि ..” कहते-कहते रुक गया था राजन.
“रहना होशियार उस्ताद !” परमेश्वर ने स्पष्ट कहा था. “ये पोन्टू .. है बहुत पाजी !” वह बता रहा था. “पिछली बार ही तो इसने वेगस में बवाल खड़ा कर दिया था !”
“खेल देखना, परमेश्वर !” राजन ने बात समाप्त कर दी थी.
राजन ने अपना ये आखिरी खेल .. इस बार आखरी ही बनाना था …..!
वह जानता था कि साबो जुआ पसंद नहीं करती थी. वह जानता था कि शायद उसके गुण-ज्ञान को लेकर ही सेठ धन्नामल ने उसे कभी अपना दामाद नहीं माना. यही तो कांटा था – जो आज तक उसके दिमाग में धरा था. और .. और .. जुआ से तो पारुल को भी नफरत है. उसके गुरु कर्नल जेम्स भी कहाँ जम कर जुआ खेलते थे ? शौक़ीन थे, बस ! ताश खेलने के लिए, खेलना उन्हें आता था. लेकिन .. राजन उसे ..
न जाने क्यों अचानक उसे आज फिर छीतर और सुलेमान सेठ याद हो आये थे. आज .. इस दिवाली पर शायद सब कुछ नया होना था. छीतर और सुलेमान सेठ के लिए तो वह घोड़ों की लीद उठाने वाले खल्लासी से आगे आज भी कुछ और नहीं था ! लेकिन अब .. जब .. ‘प्यार घर आबे’ का वह मालिक बनेगा और जब वह फिर से पारुल को पा लेगा .. और सरे संसार में उसका नाम और यश फैलेगा .. तब ..
“बोलो बच्चू ..?” पूछेगा छीतर से वह. “कहो सेठ सुलेमान ?” ललकारेगा वह उस घोड़ों के दलाल को .. और .. और फिर ..
रात गहराने लगी थी. राजन को महसूस होने लगा था कि अंतिम गेम आरम्भ हो जाना चाहिए था ! उसने संभल कर अपने अंतिम बाण को धनुष पर धर दिया था ….!
भीड़ में हू -हू का शोर भर गया था. गेम .. ऊँचे स्टेक से आरम्भ हुआ था……..!!
लल्लू-पंजू तो तमाशबीन बन गए थे. वो जानते थे कि अब मास्टर मदारी ने सारे बंदरों को नचान था. दाव पर दाव लगने लगे थे .. एक के बाद दूसरा ऊँचा बोल आने लगा था .. राजन ने अपने मास्टर स्ट्रोक को चल सारा धन दाव पर लगा दिया था. उसने आज ठान ली थी कि .. नाऊ …ओर…नेवर ! आज वह सब कुछ लेकर जुआ घर से उठ जाना चाहता था ….!
“सेठ .. ! राजन .. सेठ ..!” परमेश्वर कुछ इशारे कर रहा था.
लेकिन राजन अब अपनी जीत के घोड़े पर स्वर हो चुका था …!!
“शो!” आवाज पोंटू ने लगाई थी.
राजन ने पोंटू को एक बार घूरा था. पोंटू का चेहरा वह ठीक से पढ़ न पाया था. लेकिन उसे तनिक-सा अचरज अवश्य हुआ था. पर अब उसे तो शो करना ही था. किसी शक की गुंजाईश ही कहाँ थी……?
“स ..तत ..ती…!” राजन ने सिकुएंस में झाँका था तो डर गया था. ‘ये पत्ता कहाँ से चला आया ?’ उसने स्वयं से पूछा था. “अट्ठी….!” दूसरा पत्ता था .. और फिर .. ‘नहला ..!!’ और ..” गया गेम…!” राजन के मुहं से अनायास ही निकला था.
राजन को एक गजब का गोला जैसा अपने ऊपर गिरता महसूस हुआ था. वो न जाने सुनने लगा था – ताश के बावन पत्ते .. सत्ते अट्ठे, छक्के…! सब के सब हरजाई…!! मै लुट गया राम दुहाई…..!!! एक भारी अन्धकार ने घेर कर राजन को बेहोश बना दिया था. वह अपनी सीट से हिला तक नहीं था. वहीँ सो गया था ..
उतार दिया बदला उस्ताद का – पोंटू कहता रहा था……!!
“माँ ने शादी के लिए ना कह दिया है !” शब्बो ने खली को बताया था.
“क्यों ..?” प्रश्न बलि ने किया था. वह इस सूचना पर बौखला गया था. “लेकिन क्यों ..?”
“इसलिए कि वो अपनी बेटियों की शादी राज घरानों में करेंगी !” शब्बो कह रही थी. “वो नहीं चाहती एरे-गेरे रिश्ते …!”
लगा था चारों ओर आग ही आग जल उठी थी. खली और बलि दोनों एक साथ अपनी -अपनी सोने की लंकाओं को जलते देख रहे थे. वह देख रहे थे कि उनके बनाये तमाम ताजमहल एक साथ ढह गए हैं .. और इंटें आ-आ कर उनके माथे फोड़े दे रही हैं. घोर निराशा ने दोनों भाईओं को घायल कर दिया था. खली को रोष चढ़ आया था. उसने तुरंत चन्दन बोस को फोन मिलाया था.
“क्या ..? कांफ्रेंस में बैठे हैं !” खली बौखलाया हुआ था. “उनसे कहो .. मेरा फोने है .. खली का .. उनके बड़े बेटे का फोन है…! बताओ .. जाकर ..” वह कहे जा रहा था.
“नहीं होगा ..! क्यों नही होगा, ब्बे ..?” खली गालियां बकने लगा था. लेकिन फोन कट गया था ! और उसके बाद मिला ही नहीं.
“माँ कहाँ है ..?” बलि फोन पर पूछ रहा था. “कहाँ गई है ..?” उसने गुर्राकर प्रश्न किया था. “जहाँ भी है .. कहो बात करेगी ..” बलि ने आदेश दिया था.
लेकिन चारों ओर की चुप्पी उन चारों को तोड़े दे रही थी. उनके चेहरे तमतमाए हुए थे .. आँखों में क्रोध लबालब भरा था. सबकुछ तहस-नहस करने वाला तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था. खली अपने असली रोल में आ जाना चाहता था ….!
“उससे बात कराओ न……?” खली ने शब्बो से आग्रह किया था. “मै बात करता हूँ.” उसका इरादा था.
“वो बात नहीं करतीं !” शब्बो ने तुरंत उत्तर दिया था. “हमने खूब जंग करली है, खली !” वह रोने-रोने को थी. “लब्बो को पूछ लो कि मेने ..”
खली और बलि लब्बो और शब्बो को छोड़ घर की ओर दौड़े थे……..!!.
लब्बो शब्बो ने अपना अपना रास्ता लिया था .. और ‘जो होगा सो देखा जायेगा..!’ का मन बना वह अपनी-अपनी गाड़ियाँ उठा कर अपने अपने घोंसलों में लौट गईं थीं….!
बम्बई में एक जंग का एलान हो गया था. हाथों हाथ सबको खबर लग चुकी थी कि खली और बलि के साथ लब्बो और शब्बो की शादी केंसिल हो चुकी थी. महारानी काम कोटि ने साफ़ इनकार कर दिया है. उन एरे-गेरे लोगों से वो सम्बन्ध ही रखना नहीं चाहती हैं ! सबने महारानी की बात को ही बड़ा किया था. ‘टुच्चे-पुच्छे लोग ही तो हैं, ये !’ लोगों की राय थी. ‘अरे भाई .. के डी सिंह के पास तो दो वक्त की रोटी भी नहीं थी ! भला हो बिचारे चन्दन का जो इनका काम चला दिया ! और उसी चन्दन को .. ये कविता ……?’
कविता को सूचना मिलते ही फालिज-सा मार गया था……!
वह तो अपना घर-घूरा सब बेच चुकी थी. उसका तो चौड़ा हुआ धरा था. न जाने किस बहक में आकर उसने अपने बेवकूफ लड़कों की बात मान ली थी. उसकी आँखों में घोर निराशा घिर आई थी. फिर रोष चन्दन पर उतरा था – अपना सिक्का खोटा न हो तो ..
“मै तुम्हारी .. छाती से मूड मारकर मर जाउंगी, चन्दन….!” कविता कह रही थी. “अगर मेरे बेटों की शादी न हुई तो .. !” कविता हूकरी देकर फोन पर रो पड़ी थी.
चन्दन सकते में आ गया था. चन्दन की समझ में कुछ नहीं आया था. पर कुछ था तो जरुर – जो घट गया था .. और वह भी कुछ गंभीर था ! वह कविता को जानता था कि वह छोटी-मोटी बात से घबराने वाली न थी. उसे सूचना तो थी कि कविता ने जमींन – जायदाद और कंपनी का व्यापार सब बेच-खोच डाला था ! लेकेन ..
“बच्चों की बात है ! बैठ कर सुलझा लेंगे, पारुल….!” चन्दन ने विनय की थी.
“ठीक है ! मीटिंग रख लो …!!” पारुल ने सुझाव दिया था. “अगर कोई वाजिब बात लगती है तो मै .. ना न करुँगी ..” पारुल को चन्दन पर दया आ गई थी.
इतिवार के दिन सुबह ग्यारह बजे नाश्ते पर सब सन एंड सैंड होटल में पहुँच रहे थे ! सब की राय मशविदे के बाद ही सारे इशू तै हो जाने थे. कविता को उम्मीद थी कि चन्दन उसके खिलाफ न जायेगा और यह भी जानती थी कविता कि दोनों लड़कियों का भी समर्थन उसी को मिलेगा ! फिर अकेली महारानी कर क्या लेगी ..?
बलि और खली दौड़-दौड़ कर लब्बो-शब्बो के पास पहुंचे थे और उन्हें सूचना दी थी कि इतवार को सब कुछ तै हो जाना था !
शादियाँ तो होनी थीं .. और जो चाहे हो या कि ना हो …..!
उन चरों ने तो मिल कर तै कर लिया था ..!!
क्रमशः-
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!