गतांक से आगे :-
भाग – ७३
चन्दन ऑफिस चले गए थे ….!!
पारुल घर्षण स्नान कर बाथरूम से बाहर आई थी. उसकी काया एक पल खिली-खिली सी .. स्वर लहरी जैसी चन्दन महल के बीचों-बीच लहरा रही थी. वह बेहद प्रसन्न थी. उसने बालकनी में खड़े होकर बाहर का दृश्य देखा था. उग आये सूरज ने उसकी आँखों में झाँका था तो वह शर्मा गया था. समुन्दर ने गरज कर उसे सलाम ठोंका था. एक शीतल पवन का झोंका पानी पर तैरता-तैरता चला आया था और पारुल को छूकर भाग गया था…!
लौटी थी पारुल और श्रृंगार करने बैठ गई थी. सूने ललाट पर चौड़ी बिंदी लगाकर उसने अपने दपदपाते सतेज चेहरे को देखा था. फिर उसने अपने लम्बे गेसुओं को झटका था. सवांरा था. प्यार किया था और खुला छोड़ दिया था. हर अंग विन्यास को निरख-परख पारुल ने सजाया था…. ताकि जब चन्दन देखे तो मुग्ध हो जाएँ ! हलके सेंट की सुगंध शरीर पर छिड़कने के बाद उसने फिर से एक बार स्वयं को निहारा था. चन्दन की चॉइस का इत्र था .. जो अब महक रहा था !
“चूहा है .. चन्दन !” सहसा पारुल को लगा था कि संभव उसके पीछे आ खड़ा हुआ था.
“यू .. आर .. जेलस ऑफ़ माय मैन .. फ्राइडे….!!” पारुल बहादुरी के साथ बोली थी. “चन्दन .. अलोकिक पुरुष हैं ..! देखो ! कित्ती भारी अंगूठी दी है !! और ये देखो .. मेरा हार, उन्ही की भेंट है ! और .. और .. चन्दन ने मुझमे जो अन्य आयाम जोड़ दिए हैं .. मसलन कि .. वह प्रेस कांफ्रेंस .. शादी पर ..? और .. और ..”
संभव चला गया था…..!!
लेकिन अब पारुल .. लन्दन में .. उस होटल में ढूँढ़ रही थी कि क्या वहां सावित्री के चित्र के साथ उन्होंने पारुल का कोई चित्र भी संजोया था ..?
“भाभी जी ..!” अचानक पारुल ने भोग की आवाजें सुनी थीं. उसकी हंसी छूट गई थी. “अभी तक मेने .. न जाने कितने चन्दन महल बना दिए हैं .. भाभी जी ..”
“उन चन्दन महलों के लिए .. मेरी जैसी मलिका और चन्दन जैसा दिव्य पुरुष .. मिला कोई ..?” पारुल पूछ लेती है. “ये तुम्हारा शेख तो शैतान है .. निरा शैतान…!” वह खिलखिलाकर हंसी थी. “चन्दन महल की चर्चा है, भोग ! और .. सच ही कहा था पंडित मंगल दुबे ने …! तुम जाओ भोग ..” फिर से हंसी थी पारुल – और अट्टहास की हंसी ने पूरे चन्दन महल को लबालब भर दिया था.
तभी घंटी बजी थी. पारुल बमक पड़ी थी. उसे यह खतरे की घंटी लगी थी.
“कौन ..?” पारुल ने डरते-डरते दरवाजा स्वयं खोला था.
“कांग्रट्स .. माँ ..!!” लब्बो-शब्बो सामने खड़ी-खड़ी हंस रही थी.
“तुम .. लोग ..?” आश्चर्य से पूछा था पारुल ने.
“अन्दर तो आने दीजिये ..!” शब्बो ने ताना मारा था. “भाई! आपका चन्दन महल हम चुरा तो न ले जायेंगे ?” लब्बो बीच में बोली थी.
सहज होने में वक्त लगा था – पारुल को …..!
न जाने क्यों .. अचानक ही उसे महसूस हुआ था कि सेकिया कुल ने चन्दन महल पर आक्रमण कर दिया हो .. धावा बोला हो और लब्बो-शब्बो वहां का सब तहस नहस करने चली आई हैं ! इसके बाद .. महारानी सोना का हमला होगा .. और उसके बाद .. शायद समीर सेकिया ..
उसने अपनी ऊँगली में पहनी अंगूठी को संभाला था .. और माथे पर लगी बिंदी और मांग में भरे सिंदूर की सौगंध ली थी. वह तो अब चन्दन बोस की पत्नी थी .. इन लोगों से उसका क्या सरोकार था ..!
“हमारी शादियों की डेट्स बदल गई हैं, माँ …!” लब्बो ने पारुल को सूचना दी थी.
“तो – मै क्या करूँ ..?” पारुल ने बडे ही रूखे अंदाज में उत्तर दिया था. “तुम लोग .. मनमानी करती हो .. तो करो …!!” उसने कड़े शब्दों में कहा था.
एक प्रसन्नता की लहर पारुल के बिगड़े दिमाग में दौड़ गई थी !
अच्छा ही होगा कि .. शादियाँ न हों .. बिगड़ जाएँ .. और फिर वो अपनी बेटियों की शादी राज घरानों में करे .. और अपना रसूक उन लोगों के साथ बढ़ाये जो समाज में सम्मानित थे .. ऊँचे थे ..!
“आपको हमारी शादियाँ पसंद नहीं हैं ..?” शब्बो ने सीधा प्रश्न पूछ लिया था.
“नहीं ..!” दो टूक उत्तर था पारुल का. “मै नहीं चाहती कि .. तुम लोग इस तरह की घटिया ..”
“आप ने कौन-कौन से बढ़िया काम किये हैं ..?” लब्बो पूछ बैठी थी. “देखिये माँ .. ! हम शादी तो करेंगे .. अवश्य करेंगे ! आप ना करें .. हाँ करें .. द हेल विथ इट !” दो टूक बातें होने लगीं थी.
माँ बेटियों में जम कर जंग हुई थी. जो कहना था – और जो नहीं कहना था – सब कहा गया था. यहाँ तक कि पारुल को आज अहसास हुआ था कि उसकी बेटियां नादान न थीं. उनके पास शयद .. सारी सूचनाएं थी. उनके पास .. उसका काम कोटि का सारा कच्चा चिटठा था ! पारुल को पसीने आ गए थे. उसे महसूस हुआ था कि काम कोटि की इस सेना से पार पा लेना असंभव था….!
पारुल को क्षत-विक्षत छोड़ कर चली गई थीं – उसकी दोनों बेटियां ..!!
वर्ल्ड मैगज़ीन में छपे ‘प्यार घर आबे’ के विज्ञापन को पढ़ कर राजन का मन मचल उठा था. आज वर्षों के बाद उसकी उमंग लौटी थी – वही उमंग जो कभी पारुल को लेकर संग-संग चलती थी – गुदगुदाती थी – भरमाती थी और वह अपांग पारुल में डूब जाता था…!
“कई तरह के स्वर्ग होंगे यहाँ !” विज्ञापन में लिखा था. “हर आदमी को उसका स्वर्ग मिलेगा .. हर इच्छा का उत्तर ‘प्यार घर आबे’ में हर आदमी को मिलेगा. यह किसी भी देश के नीचे नहीं होगा. स्वतंत्र होगा .. यहाँ सब कुछ. किसी से कोई प्रश्न नहीं पूछा जायेगा ! उसकी मर्जी ही पूछी जाएगी .. उसे क्या चाहिए – केवल यही पूछा जायेगा और उसे वही मिलेगा .. उसकी शर्तों पर मिलेगा .. उसका स्वर्ग !”
“अच्छा लिखा है !” राजन ने प्रसन्नता पूर्वक कहा था. “मै भी फिर से अपना स्वर्ग बसाऊंगा ..” वह बुदबुदाया था. “मै भी .. फिर से पारुल को पा लूँगा. डुबो दूंगा .. साले चन्दन महल को. पी जाऊंगा जिंदगी के जहर को .. और .. और ..”
“पूरी दुनिया से लोगों का आह्वान है .. आमंत्रण है .. कि इस प्रोजेक्ट में खुल कर पैसा लगायें .. इसे सफल बनायें…!!”
राजन को इस बार फिर से संभव याद हो आया था.
“बड़े जीवट वाला है .. ये आदमी !” उसने स्वयं से कहा था. “क्यों न संभव को दीपावली पर बुलाया जाये ..?” उसने स्वयं से पूछा था.
“संभव जुआ नहीं खेलता !” किसी ने राजन के कान में कहा था. “देखा नहीं था .. उसका कारोबार ..? सब कुछ .. कंप्यूटर पर दर्ज होता है, मित्र !” उत्तर आया था.
“मै.. भी .. मै.. भी अंतिम बार जुआ खेलूँगा ! सिर्फ अबकी बार और इसके बाद नहीं !” राजन ने स्वयं से वायदा किया था. “लेकिन इस दिवाली पर तो ..” वह हंसा था.
राजन ने अपने दिल दिमाग में बड़े ही जोड़-तोड़ के साथ दिवाली के उत्सव को बिठाया था.
कौन-कौन से गेम कब-कब खेलने हैं – वह जानता था ! कितना-कितना धन कब-कब लगता था .. तै था. और अंतिम धमाके के लिए उसने जो सिकुएंस चुना था – वह तो उसका पेट था ! इस खेल को तो आज तक नहीं हारा था – वह …!
अचानक विगत के दृश्य राजन की आँखों के सामने नाचने लगे थे. ‘राजन द किंग ऑफ़ कार्ड्स’ के नारे उसे सुनाई देने लगे थे. ‘राजन .. द ग्रेट राजन .. राजन .. और राजन ..!!’ एक कुहराम सा मच गया था.
“सीड मानी ही तो पूरा करना है !” राजन ने अपने आप को तसल्ली दी थी. “बाकी तो संभव भाई देगा ! और अगर पूरी दुनिया पैसा देगी .. धन लगाएगी .. तो ..”
राजन खुले आसमान पर घूम रहा था ..!!
“आओ .. आओ !” उसने मुस्कुरा कर पारुल का स्वागत किया था. “मेरी मलिका….! योर…. ग्रेस ..!!” वह संवाद बोल रहा था. “सच मनो पारो, तुम्हारे बिना .. मै .. मै……” राजन भावुक था.
“बेजोड़ है .. तुम्हारा ‘प्यार घर आबे’!” उसने पारुल को कहते सुना था.
“तुम्हारे लिए है .. योर ग्रेस….! मै तो .. मै तो…. हर पल तुम्हारे ही पाने की कामना करता रहा हूँ !……हर ……”
” ..लो ! मैं …आ गई , मेरे देवता …!!” राजन सुन रहा था .
“ओह, …. ग्रेस .. योर ग्रेस .. योर हाइनेस ..!” वह कहता रहा था और पीकर बेहोश हो गया था !!
क्रमशः-
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !