गतांक से आगे :-

भाग – ६९

चिंता के महा सागर में कविता गहरी डूबी हुई थी ……!!

चन्दन के जाने के बाद कंपनी एक गुब्बारे की तरह फूट कर बिखर गई थी. न जाने क्यों सारे के सारे वर्कर्स हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहते थे. काम ही न था. कुछ तो चन्दन के पास ही चले गए थे .. और कुछ महीने में तनखा लेने का इन्तजार करते रहते थे ! कविता ने अपने सारे हुनर आजमा कर देख लिए थे – पर धंधा था कि चल कर ही न दे रहा था. पुरे तन मन से पूजा प्रार्थना करने के बाद वह ऑफिस में बैठती – पर मजाल कि दो पैसे की आमंदनी हो जाय ! और तो और .. जब उसका ग्राहक छोड़ कर चन्दन बाबू के पास जा रहा होता था तो कविता का मन होता कि उठकर चले और चन्दन को गर्दन से पकड़कर घसीट लाये .. और बिठा दे कुर्सी पर…..!

लेकिन .. उसने अपने पैरों पर स्वयं ही तो कुल्हाडी दे मारी थी …..!!

अचानक उसे केतकी का चेहरा नजर आया था – एक चेहरा .. चाल खेलता चेहरा .. और चन्दन की चुगली मारता चेहरा ! ‘केतकी ने ही घर बिगाड़ा’ कविता महसूसती है. ‘केतकी ने ही उजाड़ा उसे .. क्यूंकि .. वह चन्दन को चाहती है न…..’

“कमाल का है चन्दन महल अम्मा !” खली शाम को घर लौटा था तो कविता को बताने लगा था. “कैसा सुन्दर लगता है .. जब समुद्र में उसकी परछाईयां लहराती हैं .. और ..”

“लगता है .. मधुर म्यूजिक सा कुछ बज रहा हो !” बलि ने बात आगे की थी. “मेरा मन तो करता है .. कि .. मै वहीँ डेरा डाल दूँ !” उसने कविता के चेहरे को पढ़ा था.

“बाप का माल है ..?” कविता गरजी थी.

“बाप का ही तो है, अम्मा ….!!” खली उछला था. “पापा के नाम पर है .. सब पापा का है ! मेने सब पता कर लिया है ..!!”

“हमारा तो धंधा बैठ रहा है ..?” कविता की आवाज टूटने लगी थी. “इस माह तो .. स्टाफ की सैलरी भी .. शायद ..”

“गोली मारो .. इस धंधे को – अम्मा !” बलि ने तुरंत कहा था. “हम नहीं करेंगे ये धंधा !” उसने दो टूक उत्तर दिया था.

“रोटी कहाँ से आएगी ..?” कविता का प्रश्न था.

“फिल्म्स बनायेंगे .. माँ !” खली ने उच्च स्वर में एलान जैसा किया था. “टक्कर बनेगी सबसे पहले ! सब तै हुआ जा रहा है !”

“पैसा ..?” कविता गमगीन थी.

“सब बेच-खोच कर लगा देंगे !” बलि ने बताया था. “एक बार की बात है, मोम ! इसके बाद तो आपसे नोट नहीं गिने जायेंगे !” उसने कविता के उदास चेहरे को पढ़ा था. “देखा ..! वो फिल्म ‘नकली’! साले नोट कमा गई ..! और माँ आप मानेंगी नहीं .. के….”

“देखो, माँ !” खली ने कविता को आगोश में ले लिया था. “हम दोनों हीरो .. और वो दोनों हिरोइन !!” वह हंसा था. “बाई, जो …! क्या जोड़ियाँ हैं ..? स्टेज हमारे आते ही सुलग जाती है, माँ ! आपने तो देखा ही है कि दर्शक पागल हो जाते हैं .. और खासकर जब .. छोटी आई मीन लब्बो आँख मरती है .. और .. और ……”

“आँख मारते ही डूबता है .. फिल्मों में .. आदमी ..” कविता ने विरोध किया था.

“छोड़ो यार !” बलि ने माँ को मनाया था. “कपूर फॅमिली को देख लो ! था क्या उनके पास ? भूखे मरते थे ! और आज ..?”

अनचाहे ही कविता का थका-हारा दिमाग – उस फ़िल्मी माहोल की रंग रैलियों में जा डूबा था. उसे लगा था कि .. शायद उसके ये दो होनहार .. चन्दन पुत्र .. बाप की ही तरह कुछ करिश्मा कर दिखायेंगे .. और वो माला माल हो जाएगी .. ! दो हीरो और दो हिरोइंनो की माँ, वह ..

“रहने के लिए किराए की जगह पहले तलाश कर लेना, बहनजी !” कविता की आत्मा की आवाज थी. लेकिन आज कविता ने इसे सुना नहीं था !

लेकिन राजन आज फिर से दूर के ढोल सुन रहा था – प्रसन्न हो रहा था और सोच रहा था कि .. वह एक बार फिर पारुल को पा लेगा ! अबकी बार का जो संसार वो रचेगा – वह कई चन्दन महलों के आगे का होगा .. और ऐसा अद्भुद होगा .. जहाँ पारुल की रूह समां जाएगी .. और वो उसे फिर से स्वीकार लेगी .. और वो, हाँ… और .. वह पारुल में उजास पा लेगा .. योर ग्रेस के स्पर्श पाकर धन्य हो लेगा .. और .. और हाँ, हाँ ! और वो ..

“राजन बाबू !” वेगस से फोन था. मुरारी बोल रहा था. “दिवाली पर .. धमाका हो रहा है, न ….?” उसने पूछा था.

“क्यों नहीं !” राजन खुश मूड में था. “ऐसा धमाका होगा मुरारी कि दुनिया डोल जाएगी !” राजन ने शेखी बघारी थी. “पूरी टीम लेकर आना ! और सुन .. मोटी-मोटी मछली .. समझे ..?” राजन ने इशारा किया था. वह चाहता था कि इस दिवाली पर लोगों का दिवाला निकाल वह बम्बई निकल जाये…….

फिर एक बार राजन की आँखों के सामने चन्दन महल तेर आया था ……!

“प्यार-घर .. अब .. एक बार बन जाये .. तो ये चन्दन महल स्वयं ही शर्म में डूब मरेगा.” राजन अनुमान लगा रहा था. “समुन्दर के सीने पर तैरता हुआ – उसका सपना – प्यार-घर अब इस बार एक ऐसा अनूठा स्थान होगा जहाँ दुनिया जहान का आदमी आएगा. तैरता एक स्वप्न – जहाँ जुआ से लेकर तमाम अइयाशियाँ और एशो-आराम के साथ-साथ खेल पात भी होगा. डाइविंग और समुद्र सैर- सब कुछ होगा. यहाँ आदमी सप्ताहों तक डूबने के बाद भी उछल न पायेगा. सब देकर ही जायेगा !” हंसा था राजन. “दीनू – यार ! अबे .. ओबे… ये पारुल, ‘फ्रॉम चन्दन विद लव- टू राजन …!’ लौटेगी .. पारुल .. जरुर लौटेगी ..” उसने अनुमान लगाया था.

पारुल अनुमान ही न लगा पा रही थी कि महाराजा दिक्पाल के पास कितनी संपत्ति थी ….!

उनका अकेला राजपुत्र ‘कुवर करनपाल’ ही उनका वारिस था. पारुल चाहती थी कि अपनी बड़ी बेटी का रिश्ता करनपाल से तय कर दे. दोनों का मेल ठीक था – और महाराजा साहब भी राजी थे. चन्दन महल में उनका आना-जाना होने लगा था. छोटी बेटी के लिए भी ‘मंदसौर महाराज’ .. जो स्वयं युवक थे और उद्योगपति थे – हाथ मांग चुके थे ! पारुल प्रसन्न थी. वह चाहती थी कि अब वह अपनी रिलेशनशिप रॉयल परिवारों के साथ ही बनाएगी – और लल्लू-पंजू लोगों के साथ उठना-बैठना भी बंद कर देगी.

चन्दन की बात और थी ! चन्दन ने तो पूरे विश्व में नई दुनिया को लेकर पारुल के नाम का डंका बजा दिया था. बेशुमार दौलत का उपयोग पारुल ने बड़ी ही चतुराई से किया था. दोनों बेटियों के पास फ्लैट थे .. गाड़ियाँ थी .. लन्दन में कोठियां थी .. कैश और ज्वेलरी थी. सब था. पारुल को उनकी शादी तक अब कोई फिकर न थी.

“माँ ! टक्कर की शूटिंग जनवरी में शुरू हो जाएगी !” शब्बो बता रही थी. “खली चाहता है कि .. हमारी शादी .. अगर पहले हो जाये तो ही ठीक रहेगा !”

पारुल को जैसे जहरीले बिच्छु ने डंक मारा हो – वह चीख पड़ी थी.

“तू कह क्या रही है ..?” पारुल उखड आई थी. वह सारी विनम्रता भूल, तलवार खींच कर शब्बो के सामने थी. “क्या .. क्या .. कहा .. तूने ..?” वह खड़ी हो गई थी. “खली से शादी ..?” वह चीखने लगी थी. “करमजली ! मेने तेरी शादी .. महाराजा दिक्पाल के बेटे करनपाल से तय कर दी है. वो लोग रियासत बंद हैं .. उनके पास – आई गई का छोर नहीं ! और तू .. तू है.. कि उस दो कौड़ी के लफंगे के साथ .. जिंदगी बर्बाद करना चाहती है ?” पारुल ने सांस संभाली थी. “क्या धरा है .. इन फिल्मों में ? मात्र .. गवैयों .. नाच्कईयों का शुगल है…!” उसने लब्बो को घूरा था. “चलो, होगया कॉलेज का फंक्शन ! लेकिन .. बेटे ..”

“लेकिन माँ, मै भी शादी बलि से करुँगी ..!” इस बार लब्बो ने भी तीर मारा था. “मै तो .. उससे वचन भर चुकी हूँ..! क्यूंकि हम ..”

“पा-ग-ल….!!” दांत भींच कर चीखी थी पारुल. “पागल….!!” वो रोने को थी. “तुम लोग .. दोनों पागल हो गई हो ?” उसने पूछा था. “मै .. मै .. सपने देख रही हूँ कि हम लोग रॉयल हैं .. हमारी रिश्तेदारियां भी .. राजे-रजवाडो में होनी हैं ! और तुम ..”

“आप कौनसे रजवाड़े की बेटी हैं ?” शब्बो ने प्रश्न दगा था. वह रोष में कांप रही थी.

“और .. चन्दन बोस .. कौन सा प्रिन्स है ..?” लब्बो ने भी हमला बोल दिया था.

कलह .. ग्रह -युद्ध .. तनाव .. टक्कर और माँ-बेटियों के उस मुकाबले में पारुल को पूरी दुनिया घूम गई लगी थी. उसके सारे सपने पर लगा कर उड़ गए थे. सारी की सारी खुशियाँ काफूर थीं .. और वह अकेली .. निरीह .. थर-थर काँप रही थी. कैसे करती मुकाबला .. उन दो जवान बेटियों से .. जो उसकी सारी संपत्ति की मालिक थीं .. जिनके नाम उसने सारा घर-घूरा लिख दिया था .. और जो अंत में काम-कोटि की भी मालिकिन थीं …..!!

अकेली थी, पारुल ! चन्दन अफ्रीका के टूर पर था. उसने गप्पा को फोन किया था और बुला लिया था. आज पहली बार पारुल को लगा था कि उसकी ये दो बेटियां .. शायद .. बेटियां नहीं .. उसकी प्रतिद्वंदी थीं .. वही दो सांपिनें थीं .. जिन्हें वो सपनों में देखती रही थी .. और ..

“तैयार हो जाओ, पारुल ….!” आवाज सोना की थी. “किया है .. वो भोगना ही होगा …!” वह हंसी थी ! “तुम क्या सोचती हो कि .. तुम ..?”

“शटअप …..!!” पारुल जोरों से चीखी थी. “मै न हारुंगी .. सोना महारानी ..!!” उसने दांती भींच कर कहा था.

गप्पा आ गई थी ..!!

क्रमशः-

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

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