गतांक से आगे :-
भाग – ६८
“भौतिकता का अतिरेक और अंधे व्यवसाय की आंधी …कल-युग के कृत्य और सत्य …न्याय -अन्याय …नीति -अनीति …सब अलग हैं !” चन्दन बोस ने विश्व -शान्ति के लिए प्रार्थना करते हुए कहा था . पारुल के साथ वो वर्ल्ड टूर पर थे. सेनफ्रांसिस्को में एक बड़ी सभा को वह संबोधित कर रहे थे. “स्वनिर्मित विशेषताओं का ऐसा सतही प्रयोग पहले न था.” वह बता रहे थे. “पहले गुण-ज्ञान का मूल्य था लेकिन आज पानी का मूल्य वसूला जा रहा है !” चन्दन बोस ने अपने दोनों हाथ पसार कर आश्चर्य जाहिर किया था. लोग विहँसे थे. तालियाँ बजीं थीं. “आज त्रियक बुद्धि को हर जगह सहभागिता प्राप्त है ! और आज के बुद्धिजीविओं ने न जाने कैसे-कैसे छद्म गढ़ लिए हैं – मानस को बहकाने के लिए ! और ये लोग अपनी तिरछीआँख से पूरे संसार को एक साथ देखने का परम ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं!” असमंजस जाहिर किया चन्दन बोस ने. “और बहुधन्धी व्यक्तित्व के धनि ये लोग – सारा का सारा धन माल समेट बैठे हैं !” तालियाँ बजने लगीं थीं. चन्दन बोस की सटीक बातें लोगों को हितकर लग रही थीं.
“ही इज लाइक विवेकानंद ऑफ़ इंडिया!” किसी ने बीच में रिमार्क दिया था.
“मित्रों! आज .. वेदना जडित युगबोध कौतुकी भाव से जड़ हुआ खड़ा है !” चन्दन बोस ने बात आरम्भ की थी. “मनुष्य का पातक ही – उसका दंड विधान होता है ! हमारी दुराशएं ही हमारी दुर्गति का मार्ग खोल देतीं हैं ! आम, अशोक के पत्तों के वन्दनवार .. और गंगा जल का आचमन – आज के मनुष्य के लिए उपहास का विषय बन गया है !” चन्दन बोस ने जमा भीड़ को आंख उठा कर देखा था. “जबकि विचारों की पवित्रता के लिए सच और शाश्वत यही है. हमे आज अपनी पुरातन – सतयुगी जीवन शैली के पुनरागमन का इन्तजार करना पड़ेगा .. और सुख और शांति के लिए हमे रजोगुणी प्रभाव से मुक्ति पानी होगी – जहाँ एक ही आदमी समग्र धरा को लील जाना चाहता है !” चन्दन बोस ने विनम्रता पूर्वक हाथ जोड़े थे और मधुर मुस्कान बखेर दी थी.
प्रभात का पहला पल आया लगा था – लगा था एक नए संसार का युगारंभ होने वाला था ! लोगों ने चन्दन बोस के विचारों की भूरी भूरी प्रशंशा की थी. प्रवचन के बाद लोगों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे थे. उन्होंने ‘नई दुनिया’ का उद्देश्य विश्व शांति बता कर लोगों से अनुरोध किया था कि वो – भारत के दर्शन का अनुसरण करें .. और भारत को विश्व गुरु बनने के लिए आमंत्रित करें ! भारत का वेदांत ही आज के इस मचे कोहराम को शांत कर सकता था. वर्ना .. तो आज नहीं तो कल .. बारूद के ढेर पर खड़े हम सब .. नष्ट हो ही जायेंगे….!
“बहुत अच्छा बोलते हो, चन्दन !” एकांत में पारुल ने कहा था. “सच ..! मै तो अभिभूत हो जाती हूँ .. जब तुम बोलते हो !” उसने चन्दन की आँखों में देखा था. “बिलकुल .. दिव्य पुरुष जैसे लगते हो !” पारुल का मत था.
“तुम्हारे साथ आने से .. मेरा मन खुल गया है, पारो !” चन्दन ने बड़े ही प्यार से कहा था. “सच कहता हूँ .. मै बंधन मुक्त हो गया हूँ. मेरा मन करता है की उड़ता ही जाऊं ..”
“अकेले ..?” पारुल ने टोका था.
“ओह, नो !” चन्दन जोरों से हंसा था. “अकेला तो मै अब किसी भी स्वर्ग में नहीं जाऊंगा. बिन पारुल के .. अब न जीऊँगा .. !” उसने पारुल को आगोश में समेटा था. “न जाने ये .. मेरे जीवन का कैसा आरम्भ है .. कैसी सुबह है .. ये, और न जाने ये कैसा उजास है जो तुम्हारे आने के बाद ही लौटा है ! मै तो सोच बैठा था कि .. मेरे सपने .. मेरे उच्च विचार और मेरी कामनाएं दम तोड़ देंगी .. यूँ ही….!”
“मै न रोकूंगी – तुम्हे !” पारुल वायदा कर रही थी. “मै तो राधा की तरह मूक बनी अपने कन्हयाँ की बांसुरी की धुन सुनती ही रहूंगी .. सुनती ही रहूंगी ..”
“सच ..?”
“सच !!” पारुल ने वायदा किया था.
“कल फ़्रांस चल रहे हैं !” चन्दन ने सूचना दी थी.
“अरे हाँ ! वहां से रिंग खरीदनी है – मेने !” पारुल ने प्रसन्नता पूर्वक कहा था. “तुम्हे पहनाने के लिए .. एक .. एक बेहद सुन्दर अंगूठी खरीदूंगी !” वह कह रही थी.
“और मै क्या खरीदूं ..?”
“मै .. क्या .. जानू ..?” पारुल मचली थी.
मुग्ध हुआ चन्दन उसे देखता ही रहा था – कई पलों तक !!
‘बेमिसाल’ जुआघर का सौदा हो गया था. राजन ने एडवांस मनी पे कर दिया था. बाकी की रकम दो माह के बाद देनी थी – और डील फाइनल था. राजन का इरादा बुलंद था. वह अबकी बार बम्बई को लूट कर .. इतना ऊपर उठाना चाहता था कि .. हाँ, हाँ ! कि पारुल को फिर से पा ले. बम्बई आने का उसका इरादा ही एक था – परुल !
“अरे भाई ! कोई .. चन्दन महल है ..?” राजन ने कैब वाले को पूछा था.
“चलेगा, साब…!” कैब वाला तुरंत बोला था. “बैठो ..!” उसने कैब का दरवाजा खोला था.
पूरी बम्बई पार कर कैब कहीं जुहू बीच पर पहुंची थी. चन्दन महल दूर से ही नजर आ गया था. राजन एक पल में सब ताड गया था. उसने कैब छोड़ दी थी. जुहू बीच का जायजा लिया था. फिर वह दो चार कदम चन्दन महल की ओर चला था. पर रुक गया था. कैसे चला जाता ..? एक बेहद जटिल प्रश्न था…..
“क्या .. देखता है ..?” अचानक एक अधेड़ उम्र की औरत उस से आ टकराई थी. “वो .. वो .. चन्दन महल है !” औरत बता रही थी. “वहां .. मेरा .. वो रहता है ..!” वह कह रही थी.
“और .. और .. मेरी भी .. वो .. वहीँ रहती है !” शरारत भरे स्वर में राजन भी कह बैठा था.
“हम दोनों .. यहीं .. इसी बेंच पर .. रात-रात भर .. पड़े रहते थे .. पीते थे .. जीते थे .. हँसते थे .. गाते थे ..” वह बताती रही थी.
“बोतल है ..?” राजन पूछ बैठा था. “निकाल ..!!” उसने आदेश दिया था. “बैठ ..! पीते हैं ..!!” उसने उस औरत से आग्रह किया था.
दोनो वहीँ .. उसी बेंच पर बैठ पीने लगे थे. दोनों एक टक चन्दन महल को ही निहार रहे थे – अपलक…..!!
चन्दन महल का प्रखर प्रतिबिम्ब .. समुन्दर के पेट में घुसा झूम रहा था .. नाच रहा था ..! सामने लम्बी-लम्बी कारो का जमघट खड़ा था – शयद पार्टी चल रही थी. गिनती के वही सात लोग आये थे. भोग अकेला आया था. शेख अल-जिया अल-जैदी – भी अकेला था. बाकी सब लोग थे…… सब दुनिया की गिनी गांठी हस्तियों में शामिल थे. आज भोग को पहली बार अपने छोटेपन का एहसास हुआ था – पर वह – आज था मूड में……!
पारुल ने बड़ी ही चतुराई से पार्टी का बंदोबस्त किया था. बार पर हर प्रकार की शराब हाजिर थी और मेहमानों ने अपनी चॉइस आप लेनी थी. दूसरे कमरे में स्नेक्स लगे थे. डिनर अभी लगना था. वो भी पारुल के आदेश पर .. क्यों कि न कोई वेटर था .. न कोई सहायक ! वो सब अकेले थे .. स्वतंत्र थे ….!
“योर ग्रेस ..!” शेख अल -जिया अचानक ही पारुल से आ भिड़ा था. “आई .. आई .. ” वह कुछ कह नहीं पा रहा था.
“भाभी जी ने मुझे कहा तो मेने बनाया .. ये चन्दन महल …!” भोग बीच में आ अडा था. “कैसा लगा ..?” उसने शेख अल जिया से पूछा था.
शेख अल जिया .. मुड़ा था और अपनी ड्रिंक लेने बार पर चला गया था. भोग और पारुल खूब हँसे थे.
“ये व्यापारी .. सबसे ज्यादा कमीने होते है!” पेरू के प्रिंस – फ्रोंत ने कहना आरम्भ किया था. “कैसे लाएंगे आप विश्व शांति चन्दन साहब ….?” उनका प्रश्न था. “ये तो अपने बाप को भी बेच दें .. देश बेच आयें .. धर्म की नीलामी लगा दें .. और ..”
बात बिगड़ने लगी थी तो चन्दन बोस ने अपनी अंगूठी निकाल कर फॉर्मेलिटी की थी – हाजरीन …! माफ़ी चाहूँगा .. पर .. हमारा मुद्दा है .. अंगूठी ! मै .. अपनी महबूबा पारुल के सामने प्रपोज करता हूँ और ..!” उसने हीरे की चमचमाती अंगूठी पारुल को पहना दी थी. तालियाँ बजीं थीं तो पारुल बेहोश होने को हो गई थी. फिर विदुषी ने याद दिलाया था तो उसने सोने की बेशकीमती अंगूठी चन्दन को पहनाइ थी. चन्दन का चेहरा दमक उठा था.
खाने की टेबिल तक पहुँचते-पहुँचते सब चुप थे .. सब अपने अपने होश में थे….!
अब सारे जा रहे थे. राजन और केतकी मिल कर जाती कारों की गिनती कर रहे थे. कुल सात कारें गई थीं तो केतकी बोली थी – चन्दन को ‘सात’ का फोबिया है. यहाँ भी .. रात को गिन कर सात ही पेग पिएगा .. और .. चित्त…!! उसने राजन को घूरा था. ‘राजन’ नाम ठीक है ना …? उसने पूछा था. “हाँ ,तो ! इस कमीने चन्दन ने रात-रात भर मुझे नोचा .. खाया .. दिया .. लिया और .. अब .. अब तू देख….? साला ..”
“‘केतकी’…! नाम ठीक है, न ?” राजन ने पूछा था. “ख़ैर ! चलेगा ….!! मै .. मै .. इस औरत को कलकत्ता – में .. गेस्ट हाउस में रख कर ..” उसने चन्दन महल को देखा था. बत्तियां बुझने लगी थीं. “मै इसे .. पैसे .. देकर….!” बहक रहा था, राजन ….!
“मर्द साले .. हरजाई होते हैं .. राजा….!” केतकी कह रही थी. “मेने अपनी गाड़ी कमाई से जिन्दा रक्खा था .. इस चन्दन को ! सच ,रे…..! मेने कमाया .. और इसने खाया ! बेवफा .. बेशर्म .. बेहया .. साला .. बात तक नहीं करता अब ..!” तड़पने लगी थी, केतकी.
“औरत .. ये औरत .. रं ..?” राजन कुछ कहने ही जा रहा था.
केतकी ने उलम कर राजन के मुह पर झापड़ दे मारा था. ” ‘रंडी’ .. कहता है ‘औरत’ को .. नामर्द …!!” केतकी ने ललकारा था राजन को. वह उठी थी .. चार कदम चली थी .. रुक कर उसने खाली बोतल राजन में दे मारी थी.
“मेरी पी गया .. औरत की पी कर औरत को ही रंडी बोलता है, बेशर्म ….!!” वह गरजी थी और चली गई थी.
राजन वहीँ ठंडी रेट पर चित लेट गया था – सो गया था ….!!
क्रमशः-
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !