गतांक से आगे :-
भाग -६५
सारा जगत जाग रहा था ….!!
लेकिन ‘महाराजा’ के कपाट अभी तक बंद थे ! पारुल और चन्दन का स्वप्न-संसार अभी भी सो रहा था . उन्हें आज -कल ,दिन-रात …और संसार के चलते क्रिया-कलापों से कोई सरोकार न था ! उन का अपना प्रेम-मय …पूर्ण सुख-संसार…उनके साथ ही सो रहा था …!!
गप्पा कलकत्ता से पहुँच गई थी. उसने कई बार ‘महाराजा’ की ओर झाँका था. उकी हिम्मत न हुई थी कि घंटी बजा दे. गोलू भी पहुँच गया था. वह किसी जल्दी में था. बार-बार घडी देख रहा था. लेकिन घंटी बजाने से डर रहा था. भोग के आने पर एक अलग हलचल हुई थी. लेकिन ‘महाराजा’ में कुछ भी न हिला-डुला था.
“मुझे तो जाना है!” गोलू बडबडाया था. “सौदा .. है!” उसने स्वयं से कहा था. “बजता हूँ .. घंटी!” उसने निर्णय लिया था और ‘महाराजा’ की घंटी बजा दी थी.
‘महाराजा’ के भीतर तो अभी तक रात सोई पड़ी थी. दिन के दर्शन ही न हुए थे. जबकि बाहर का संसार गतिमान था ! घंटी की आवाज ने भीतर अचानक एक कुहराम जैसा भर दिया था. अखंड शांति चूर-चूर हो दीवारों से टकराई थी. चन्दन बोंस हडबडा कर उठा था. उसने साथ सोती पारुल को देखा था. गहन निद्रा में डूबी पारुल ने करवट बदली थी. उसने चन्दन को टटोला था और फिर सो गई थी. लेकिन .. चन्दन ..
“ओह, गॉड !!” उसने घड़ी में समय देखा था तो आश्चर्य प्रकट किया था. “कौन होगा ..?” उसने अनुमान लगाया था. “गोलू ..?” उसका प्रश्न था. और जैसे ही उसने दरवाजे से झाँका था गोलू ही दिखाई दिया था.
“जाना था .. चन्दन बाबु ..!” उसने बहार से ही उलाहना दिया था. “एक और सौदा है ..”
“आओ, आओ !” उबासियाँ तोड़ते हुए चन्दन ने उसे भीतर बुलाया था. उसके पीछे गप्पा भी चली आई थी. “अरे, रे…! तुम भी ..?” चन्दन गप्पा को आंख भर कर देख रहा था. “और मै भी ..!” पीछे से भोग ने आवाज जैसी दी थी.
एक साथ सब जागृत हो गया था .. प्रकाशित हो गया था ! लगा था – दो प्रेमियों का आज संसार में पहली बार जन्म हुआ हो !
पारुल बाथरूम से निकल कर आई थी. चन्दन चला गया था!
“माफ़ी चाहूँगा .. महारानी जी !” गोलू गिडगिडाया था. “क्या है कि .. एक और सौदा है ! सो मै जल्दी में था. कागज सारे तैयार हैं ! ये लीजिए ..!!” उसने बिना किसी विलम्ब के अपना काम पूरा कर दिया था. “हाँ ! चन्दन महल में नाम किसका होगा ..?” गोलू ने प्रश्न पूछा था. “खाली छोड़ दिया है.” उसने सूचना दी थी.
चन्दन बोस आ गया था. उसने गोलू का प्रश्न सुन लिया था.
“ये तो स्टेट के नाम होगा !” चन्दन बोस ने सीधे-सीधे कहा था.
“नहीं !” पारुल ने बात मोडी थी. “ये प्रॉपर्टी ‘चन्दन बोस’ के नाम होगी !” पारुल का आदेश था. “बाकी ऑफिस – नई दुनिया का होगा !” पारुल ने गप्पा को देखा था. गप्पा हंस गई थी. “और लीज़ में मालिक- स्टेट होगी……!”
“बेहतर महारानी जी !” गोलू ने आदेश समझ लिया था.
सोफे पर शांत बैठे भोग के भीतर एक तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था. अभी-अभी वह अपने मित्र चन्दन बोस की प्रारब्ध को लेकर विक्षिप्त हो उठा था. जो आज चन्दन बोस को मिल रहा था .. वह भी तो इसी तरह के संसार की कामना करता चला आया था ! लेकिन ..
“अब बंगले का हिसाब .. पाँच भाइयों को देना होगा !” गोलू बोला था. “पांच पुत्र हैं- पोपट लाल के ! और पांचों के पांचों ..” वह रुका था. उसने जमा लोगों को निगाहों में भर कर तौला था. “न जाने कब-कब के हिसाब चुकाता है, इश्वर…!” गोलू ने दर्शन बघारा था. “बेचारा पोपट लाल .. इतना धनी -मानी होने के बाबजूद भी एक यतीम की मौत मरा !” वह बता रहा था. “और .. ये पांचो शैतान .. आज भी अखाड़े में हैं ! संतान क्यों देता है, परमात्मा .. वही जानता है, जनाब …!” उसने अपनी बात समाप्त की थी.
भोग अनवरत पारुल के हुस्न को देखे जा रहा था…..!
लेकिन पारुल – लौट कर अपनी संतान के बारे सोचने लगी थी. उसकी दो बेटियां लब्बो-शब्बो भी समर्थ हो रही थीं. कॉलेज में आ जायेंगी अबकी बार. बम्बई आने की बात तय हो चुकी थी. पारुल ने दोनों के लिए हॉस्टल में व्यवस्था की थी. लोरेटो कॉलेज का मशहूर हॉस्टल उसे पसंद आया था.
“बम्बई, माँ …!!” पारुल अचानक लब्बो-शब्बो की आवाजें सुनने लगी थी. “नो थैंक्स ..! वी वांट टू गो टू बॉम्बे!!” दोनों ने समवेत स्वर में मांग की थी.
पारुल ने अभी तक अपनी बेटियों को चन्दन बोस के बारे कुछ न बताया था. और न ही उसने अपनी नई दुनिया के बारे उनसे कोई जिक्र किया था. और न ही चन्दन बोस के साथ बसाये अपने इस स्वर्ग की सूचना दी थी. वह अपने विगत को केवल अपने तक ही सिमित रखना चाहती थी.
“इस इश्वर प्रदत्त प्रेम-संसार को .. विगत के जहर से बचा कर रखूंगी .. अदूषित बनाये रखूंगी !” पारुल का इरादा था. “जब तक चले, …चले .. जब तक .. रहे, बना रहे ……!!” उसका पवित्र इरादा था. “चन्दन को .. जन्म-जन्मान्तरों के लिए सहेज कर रखूंगी …..!” वह हंसी थी.
चन्दन बोस भी कहाँ खुला था …? उसने भी अभी तक पारुल को कविता के डी सिंह और अपने दो दुर्दांत बेटों के बारे कुछ भी न बताया था. वह भी चाहता था कि पारुल के साथ मिले इन ईश्वरीय पलों को .. वह पूर्ण शिद्दत के साथ जिए ! उसने अचानक शांत बैठे अपने मित्र भोग को देखा था. व्यापारी था – भोग ! बचपन से ही वो सौदाई था ! पढ़ाई- लिखाई में कोरा ठस्स था .. पर चन्दन बोस की नक़ल करके गुजारा कर लेता था. और बदले में चन्दन बोस को खुश करता रहता था. तब चन्दन बोस की दोनों जेबें खली रहती थीं .. लेकिन आज ..?
“लो ! ऑफिस की चाबी, गप्पा …!” चन्दन बोस आदेश दे रहे थे. “भोग – माने इनका आदमी आएगा. बता देना क्या-क्या चाहिए …!” चन्दन गप्पा को समझा रहा था. “लेकिन, हाँ ….! मेरा और पारुल का ऑफिस .. आई मीन हमारे चैम्बर्स ..” उसने भोग को देखा था.
“फ़्रांस के – विल्कोट जैसे ..?” भोग ने राय दी थी.
“देट्स, इट….!” चन्दन ने प्रसन्न होकर कहा था. “वही, वही ..! बिलकुल वैसा ही बनेगा ! और गप्पा – तुम्हारा रहना-खाना सब ऑफिस में ..” चन्दन हंसा था.
“लेकिन .. सर ..?” गप्पा बोली थी.
“क्यों ..? मै सात साल तक के डी के ऑफिस में नहीं रहता था ?” चन्दन बोस जोरों से हंसा था. “जग जाहिर है, भाई !”
चाय पी कर गप्पा चली गई थी.
“लीजिए बैलेंस ऑफ़ पेमेंट !” भोग ने एक सौ करोड़ का ड्राफ्ट पारुल को दिया था. “मेने काम-कोटि में काम आरम्भ करा दिया है !” वह बता रहा था. “जैसा आपने कहा था – मेने भी उसी तरह मरम्मत करने के काम का कॉन्ट्रैक्ट बनाया है .. और कुछ नहीं …!” भोग ने सूचना दी थी.
“गुड….!” पारुल ने ड्राफ्ट लिया था और चन्दन बोस को पकड़ा दिया था. “इन्हें घर का काम ..” पारुल ने चन्दन से प्रश्न किया था.
“आज ही फाइनल कर देते है ! लंच लेकर चल पड़ते हैं ! क्यों भोग, भाई ..?” चन्दन ने पूछा था.
“ओह, यस…! शुभस्य ..” वह कहते-कहते रुक गया था. शायद कुछ गलत बोलने जा रहा था.
पारुल हंस पड़ी थी. वातावरण मधुर हो उठा था…..!
चन्दन महल अभी तक पोपट लाल की गंधाती कोठी थी – जिसे कोई भी देख कर मालिक को गालियां निकालता था. लेकिन भोग उस लोकेशन को देख कर जम-सा गया था. समुद्र के किनारे वह एक नया स्वर्ग बसाने जा रहा था – उसे लगा था …! भोग के आदमियों ने आकर बाहर कुर्सियां लगा दी थीं. वह तीनो अब कुर्सियों पर बैठे-बैठे .. होते सूर्यास्त को देख रहे थे..!
“कैसे .. क्या .. बनायेंगे ..?” प्रश्न पारुल का था.
“अपनी मुमताज के लिए .. ताज महल बनाऊंगा …!” भोग कह देना चाहता था – लेकिन कह न पाया था…!
“देखिये, भाभी जी ….!” भोग संभल कर बोला था. “मै तीन सेट तैयार कर दूंगा .. चन्दन महल के. आप को जोन पसंद हो .. सो ..!” वह एक टक पारुल को निहार रहा था……
चन्दन ने भोग का संवाद सुन लिया था !
पारुल को पहली बार – भाभी जी, का संबोधन बहुत भला लगा था. उसे लगा था जैसे ये बम्बई उसकी ससुराल थी. आज पहली बार कोई ‘देवर’ उसे मिला था. नारी का रूप-स्वरुप भी भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकार से विकसित होता है !
आज पहली बार पारुल यहाँ बम्बई में .. चन्दन महल में रहते हुए अपनी ससुराल के किरदार को जीना चाह गई .. थी -अकेले .. चन्दन बोस के साथ !
और भोग अब भी पारुल को ही निहार रहा था .. ! लेकिन सूरज डूबता ही चला गया था ….!!
क्रमशः-
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !