गतांक से आगे :-

भाग -६३

क्या रह गया था …और क्या छूट …गया था …..पारुल की समझ में ही न आ रहा था ….!!

लेकिन थी वो जाने की जल्दी में ! जल्दी इतनी कि अगर उसके पंख होते तो न जाने कितनी बार वह चन्दन से मिल ली होती ! लेकिन उनके बीच का फासला भी अमाल-कमाल था ! उसे बम्बई की फ्लाइट तो लेनी ही थी और जो वक्त यात्रा में लगना था वो तो लगना ही था.

“जल्दी में जा रही हैं ..?” अचानक ही राजन आ खड़ा हुआ था. पारुल जाने से पहले राजन से मिलना तो नहीं चाहती थी लेकिन अब क्या करे ! वह तो सामने खड़ा था !!

“हाँ !” पारुल ने स्वीकार में सर हिलाया था. “गप्पा का फ़ोन था.” उसने संक्षेप में बताया. “नई दुनिया में .. गड़बड़ है ! जाना होगा ..!!”

राजन अवाक उसे देखता रहा था. राजन जानता था कि पारुल बम्बई जा रही थी .. चन्दन से मिलने जा रही थी .. कलकत्ता तो बहाना था. उसे अच्छा न लगा था. उसे लगा था – चन्दन ने उसका माल चुरा लिया था .. चोर था चन्दन .. और कभी सामने आया तो ..

“कैसा रहा रात का शो ..?” पारुल ने यूँ ही के अंदाज में राजन को पूछ लिया था. वैसे तो राजन के चेहरे पर सब लिखा था. जुआ और शराब आदमी पर हर रोज निशान छोड़ जाते हैं .. हर रोज उसे खाते-पीते हैं .. और रोज उसका पतन होता है. लेकिन आदमी को लगता है कि वह ऊपर जा रहा है .. सफलता की सीढियाँ चढ़ रहा है ! “क्राउड तो अच्छा था !” पारुल ने अपनी राय दी थी.

“कंगले आते हैं ..!” कुढ़ कर कहा था, राजन ने. “गेम तो .. तभी चढता है .. जब ..” वह कहीं दूर देख रहा था.

पारुल को अचानक ही हाई स्टेक पर खेल खेलता राजन दिखाई देने लगा था. राजन .. दाव लगाता राजन .. काम-कोटि को दाव पर लगाता राजन .. पारुल पेलेस को बेचता राजन .. और उसे भी दाव पर लगाता राजन .. सब कुछ डुबोता राजन .. डूबता राजन और .. और सावित्री से क्षमा मांगता राजन……!!

“साबो का श्राप तो इसे झेलना ही होगा….!” पारुल ने सोचा था. ‘एक पवित्र नारी के श्रेष्ट प्रेम का अपमान करता .. ये गन्दी नाली का कीड़ा न जाने कौन-कौन से नर्क भोगेगा…?’ वह अंदाज भी न लगा पा रही थी.

“कभी-कभी तो खर्चा भी पूरा नहीं होता !” राजन ने शिकायत की थी.

पारुल ने जैसे कुछ नहीं सुना था. उसे तो काम-कोटि से निकलना था. फ्लाइट पकडनी थी. और .. और झटपट बम्बई पहुंचना था….!

चन्दन अकेला खड़ा पारुल के आने का इंतज़ार कर रहा था …!

पारुल ने उडती निगाहों से उसे देख लिया था. चन्दन ही तो था – उसका मन-भावन .. पावन .. सजीला .. छबीला .. एक दर्शनीय पिंडी-सा .. खुला-खिला व्यक्तित्व – विद्वान .. वाक-पटु .. दूरदृष्टा और सब कुछ एक साथ संभाले – उसका पूर्ण पुरुष, उसे लेने खड़ा था. सच में पारुल ने ऐसा पुरुष तो आज तक नहीं देखा था ….!

“वेलकम टू बम्बई …!” चन्दन ने मधुर मुस्कान बखेरकर पारुल का स्वागत किया था. “क्वीन ऑफ़ काम-कोटि !” उसने कैब का दरवाज़ा खोला था.

“ये क्या मजाक है, चन्दन जी …?” पारुल ने मुग्ध भाव से कहा था. “कोई और नहीं मिली ..?” उसने पूछा था.

“मिली थी ..! ओह ! व्हाट ए मिलन ..!!” हंसा था चन्दन. “बाल-बाल बचे, बच्चू……!” उसने पारुल की आँखों में घूरा था.

“नौबत यहाँ पहुंची ..?” पारुल भी मजाक के मूड में थी.

“नौबत ..?” चन्दन भी चुहल के मूड में था. “कुछ भी हो जाता .. अगर तुम्हारी किस्मत मुझे बचा न लेती ..”

परुल को लगा था कि चन्दन मजाक से आगे का कुछ कह गया था…..!!

कैब रुकी थी. स्काई लार्क होटल के सूट नम्वर वन को पारुल ने नज़र भर कर देखा था. लिखा था – ‘महाराजा’ …! खूबसूरत सूट था. पारुल का मन प्रसन्न हो गया था – फिर भी उसने चन्दन को पूछ ही लिया था – ये महाराजा कौन से .. ?

“फॉर महारानी .. देयर हेज़ टू बी ए महाराजा ..!!” चन्दन मूड में था. “मेने सोचा कि महारानी ऑफ़ काम-कोटि के लिए यही ठीक रहेगा. मै तो कैनबरा में पड़ा था .. दिन रात रहा था – गरीबों की तरह …! लेकिन तुम्हारे आगमन की आहट ने मुझे जगा दिया. कहा – ‘थिंक बिग !’ और मेने बात मान ली.” चन्दन ने पारुल को गौर से देखा था. “मै .. ‘थिंक बिग’ को लेकर चला था – पर पारुल .. ऐसा फंसा कि ..! अब आकर मुझे याद आया कि .. मै तो .. मै तो बहुत बड़ा बनने वाला था .. महान होने को था .. लेकिन ..

पारुल कुछ समझ न पाई थी.

“कोई काल-चक्र था .. जिसने मुझे पकड़ा और एक डिबिया में बंद कर दिया. क्या करता ? सोचा – यहीं मरूँगा .. इसी हाल में मरना होगा .. चन्दन. भूल जाओ अपने सपने. अपने वो .. ‘थिंक बिग’ .. और ‘लिव लाइफ किंग साइज़!’. रहो .. रहो यथार्थ में .. झेलो मुसीबतें….. सहो कष्ट ..” चन्दन ने पलटकर पारुल को देखा था. पारुल उसे समझने का प्रयत्न कर रही थी. “लेकिन अचानक ही ये सब ..?” चन्दन ने आश्चर्य में हाथ फेंके थे. “इतना सब ..?” उसने पूछा था. “असंभव ही तो संभव हो रहा है, पारुल …! तुम मुझे मेरी कौन सी जीत का इनाम मिली हो – मै नहीं जानता !” उसने बेबाक ढंग से कहा था. “मेने तो .. ये स्वप्न में भी नहीं देखा था. मै तो अनाथ ही था !” चन्दन की आवाज लरज़ आई थी. “लेकिन अब लगता है कि .. मेरी माँ जरुर-जरुर तुम जैसी रही होगी .. ए बिग .. एंड लार्ज हार्टेड वोमन…!” चन्दन चुप हो गया था.

“लंच तो .. काबिले तारीफ है !” पारुल ने बात मोडी थी.

“ठहरो ! गोलू को बुलाया है !! तारीफ करने के लिए तो अभी बहुत कुछ है ..?” हंसा था चन्दन. मुड कर फिर पारुल ने चन्दन को परखा था. लगा तो – खरा सोना था. अनायास ही कहीं से राजन का चेहरा भी आ खड़ा हुआ था. पारुल ने ऑंखें फेर ली थीं.

“हाजिर हो गया हूँ, जनाब !” गोलू ने आवाज दी थी.

“अन्दर आ जाओ !” चन्दन ने उसे बुलाया था. “बोल क्या करेगा ..?” अन्दर आते ही उसने पूछा था. गोलू – गोल-गोल सावला-सा एक चतुर खिलाडी लगा था, पारुल को. लगा था- वह आदमी बड़ा ही होशियार था. उसने एक ही निगाह डाल कर पारुल को देख समझ लिया था. कुछ कहना तो चाहता था वह पर उसकी हिम्मत न हुई थी.

“चाबियाँ मंगवा ली हैं ! पेमेंट होते ही चाबियाँ आपके हवाले !!” गोलू कह रहा था. “बाकी मै दोनों अड्डा दिखा देता हूँ.” उसने फिर से पारुल को परखा था. “पहले ऑफिस देख लें .. फिर घर ..!” उसका सुझाव था.

“ठीक रहेगा !” चन्दन उठा था. “चलो ! तुम्हे चाय लौट के पिलाऊंगा….!!” चन्दन ने वायदा किया था. “गाड़ी लाये हो ..?” उसने पूछा था.

“जी, जनाब ! मै जानता था .. उसी मुताबिक मै ..”

“होशियार तो हो !” कह कर चन्दन और पारुल उसकी लाई गाड़ी में आ बैठे थे.

ऑफिस को देख कर पारुल प्रसन्न हो गई थी. सब कुछ किया धरा था. कोई बहुत काम न होना था. न जाने कोई किस्मत का मारा क्यों छोड़ गया – उसने सोचा था. चन्दन की तो बांछें खिली थीं. वह पारुल को ऑफिस का आगा पीछा समझा रहा था. दोनों प्रसन्न थे. अब गोलू ने मांग की थी.

“ले पकड़ चेक .. ला चाबी !” चन्दन ने विहंस कर कहा था. “मेरा कमीशन कब देगा ..?” उसने चुहल की थी.

घर देखने जाते वक्त वो पूरी बम्बई लाँघ कर समुद्र के किनारे आ पहुंचे थे. जुहू बीच का विस्तार देख पारुल का मन बल्लियों कूदने लगा था. एक एकांत में .. टापू जैसे स्थान में गोलू ने गाड़ी रोक दी थी. सामने एक शांत खड़ा बंगला था – खाली था .. सुनसान था .. लेकिन बे-जान और बे-जुबान न था.

“आओ ,आओ ! स्वागत है !! कब से इन्तजार था मुझे कि तुम दोनों ..

“जानते हो, हमे ..?”

“ये लो!” हंसा था बंगला. “अरे, तुम्ही तो थे जिन्होंने मेरी नीव डाली थी .. मुझे गुलो-गुल्जार किया था ! बाद के लोग तो आये और गए ! रहना- सहना किसी को नसीब नहीं हुआ …! प्रकृति का चलन ही अलग होता है !” बंगला हंस पड़ा था.

“लो चेक गोलू …!!” चन्दन ने बंगला देखते ही कहा था. “ला चाबियाँ ?” उसका आदेश था. “और तू चल !” वह कहता ही जा रहा था. “तेरी चाय उधार…..!!”

अबकी बार चन्दन के साथ पारुल भी हंसी थी. वो दोनों खूब हँसे थे और जोर-जोर से हँसे थे. पारुल का मन आया था कि वो चन्दन से लिपट जाये. लेकिन उसने अपने आप को संभल लिया था.

दोनों ने बंगले को खोल कर आर-पार से देखा था .. ऊपर नीचे से देखा था .. और हर तरह से परखा था ! था तो पुराना – पर कभी जब नया रहा होगा .. तो बेजोड़ रहा होगा ! आस-पास के पेड़ – बिखरा-बिखरा बगीचा और दूर से आवाज देता सागर उन्हें रोमांटिक लगे थे.

“मेने भोग को बम्बई बुला लिया है.” चन्दन बता रहा था. “वह होटल तो बनाएगा ही .. साथ में हमारा ये बंगला .. और ऑफिस भी बनाएगा !” चन्दन कह रहा था. “मेने उसे करोड़ों का माल कौड़ियों में पकड़ा दिया है !” चन्दन ने गोलू का डायलॉग बोला था. “अब ये भी मुझे कुछ रु-रिआयत तो करेगा ही …?” हंसा था चन्दन. “मेरा मित्र है, पारुल ! कॉलेज का मित्र और ..” चन्दन ने पारुल की आँखों में घूरा था.

“हर आदमी .. ‘चन्दन’ नहीं होता, डार्लिंग !!” पारुल ने चन्दन से लिपटते हुए कहा था. “यू आर .. जेम ऑफ़ ए मैन…!!” वह भावुक थी.

क्रमशः

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

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