गतांक से आगे ….

लॉस वेगस से माइकिल ने काम -कोटि में विचित्र -लोक की रचना होने के सन्दर्भ में अपने विचार लिख कर भेजे हैं ,” मैंने अपने जीवन में अभी तक इतना रम्य प्रदेश नहीं देखा है !मैं हैरान था ,राजन साहब !यह देख कर कि परमात्मा ने काम-कोटि में स्वयं आ कर ये स्वर्ग बसाया है ! और शायद इसे अभी तक संसार की आँखों से ओझल रखा है . कैसे हुआ …कि अभी तक इस अनूठी संरचना पर किसी की नज़र नहीं पड़ी …? विपुल जल-राशि …अनंत तक जाती पर्वत मालाएं …आसमान पर अठखेलियाँ करते -बादल ,जिन्हें आदमी जब चाहे तब छू ले …और …और छोटे-छोटे मज़ाक करते हवा के छौने …मुझे न जाने कब तक आत्मवोभोर किए बैठे रहे !मैं उन से बतियाता रहा ….उन की सुनता रहा … अपनी भी कहता रहा ..और …और हाँ ! मैंने उन का काम-कोटि आने का निमंत्रण स्वीकार ही लिया ! सच ! मैं गया तो यों-ही के मूड में था ! मुझे कहाँ उम्मीद थी की लॉस वेगस का कोई विकल्प मुझे मिलेगा …? पर मैं अब दावे के साथ कहूँगा, राजन साहब ! कि यहाँ बना विचित्र -लोक -संसार का सर्वश्रेष्ठ लोक होगा ! ये मेरा आपसे वायदा है !” राजन पढ़ते -पढ़ते प्रफुल्लित हो उठा था . उस का अपना अनुमान सही निकला था !!

“मैं अपनी टीम के साथ काम-कोटि सोमवार को पहुंचूंगा . आप के दर्शन करना मेरे लिए अनिवार्य होगा ! हम सीधे काम आरम्भ करेंगे !!” माइकिल का सुझाव था .

राजन भी अब विलंव करने के हक़ में न था . वह भी चाहता था कि …उस के सपनों में संजोया -विचित्र -लोक अब ज़मीन पर उतर आए …और वह अपने सतरंगी सपनों को कुछ इस तरह का अंजाम दे …जो दुनियां देख कर दंग रह जाए !

“अपनी टीम का चुनाव स्वयं ही करूगा !” राजन सोच रहा था . “ख़ास कर कैसीनो में काम करनेवाली बालाएं …इस तरह से …प्रस्तुत करूंगा …कि ग्राहकों को घुसते ही मोहलें …भ्रमित करदें….और अंत तक उन में प्रमाद भरती रहें ….उन्हें जगाती रहें ….उत्साहित करती रहें … और अंत तक ….” वह रुका था . जुआरी हारने के बाद एक अलग आश्रय टटोलता है ….राजन ये अपने अनुभव से जानता था . “हाँ ! हारने के बाद भी ..हमारे ग्राहक -हमारे ही बने रहें , यह जिम्मेदारी भी इन्हीं सुंदरियों की होगी ! काम-रूप के रूप का जादू …कब …और किस काम आएगा …?” वह हंसा था . “ओह ,गौड ! क्या बला की खूबसूरती है ….? दंग रह जायंगे -लोग ! भूल ही जांयगे – लॉस वेगस ….!!” राजन प्रसन्न था .

राजन की शाम को नौ बजे की फ्लाईट थी . पारुल घर में न थी . उस ने पारुल को बताया भी न था . वह तो सुबह नौ बजे ही निकल गई थी . राजन ने तो नाश्ता भी अकेले ही खाया था . क्या था ….? कहाँ थी, पारुल ….? वह तो अपने विचित्र-लोक के सपने के साथ चिपका था ! पर पारुल … न जाने कहाँ गायब हो गई थी ? कितना अच्छा रहता …अगर पारुल भी …उस के साथ काम-कोटि चलती …? पर उसने तो पारुल को पूछा ही नहीं ! गलती हो गई …!!

बहू बाज़ार में जा कर पारुल ने आज पहली बार अपने न्यूज़ एजेंसी के ऑफिस को देखा था . ‘नई दुनियां’ का बोर्ड औंधे मुंह लटक रहा था …..और अंदर ऑफिस में बैठे -एक पुरुष और एक महिला …गपिया रहे थे . जैसे ही पारुल ने प्रवेश किया – महिला ने उसे देखा ….और इशारे से कहा – ‘बिक गया …बिक गया …!’ और वह फिर से गपियाने लगी थी . पर पारुल अपने पैरों पर खड़ी ही रही थी . अब पुरुष ने उसे पलट कर घूरा था . ‘अरे,बाबा ! कौनो काम नई …!!’ वह खींज कर बोला था . ‘मालिक गया …! अब घोडा दौडाएगा ……’ वह हंस रहा था .

“नया मालिक ……?” पारुल ने प्रश्न पूछा था .

“कोई है – महारानी जी !” महिला ने बताया था . “पैसे दे कर …गुम गया …!” वह हंस रही थी .

पारुल कई पलों तक उन दोनों को देखती रही थी . फिर उस ने मालिक की कुर्सी को निहारा था . दो इंच धूल की परत जमीं थी – कुर्सी पर !

“उसे साफ़ करो …!” पारुल ने पुरुष को आदेश दिए थे .

अचानक उन दोनों ने सूंघ लिया था कि …नया मालिक आन पहुंचा था !!

आनन् -फानन में नई दुनियां अपने नए पैरों पर खड़ीं हो गई थी . देखते-देखते उन दोनों ने एक बहुत ही नई चहल -पहल ऑफिस में भर दी थी .

“मैं …गप्पा हूँ ….,मैम !” महिला ने अपना परिचय दिया था . “न्यूज़ एडिटर ….!” उस ने अपना ओहदा भी बताया था .

“और मैं ,पवन ! राइटर ….!!”

“बैठो !” पारुल ने मालिक की कुर्सी ग्रहण करते हुए कहा था . “काम ……..??”

“आज से ही आरंभ ….!” दोनों एक साथ बोले थे . “लेकिन सब ठंडा पड़ा है . सालों गुजर गए ….कोई नहीं आया ….?”

उन दोनों की आँखों से घोर निराशा चुचा रही थी !!

“एक कप चाय मिलेगा …?” पारुल ने उन दोनों को एक साथ देख कर प्रश्न पूछा था .

“जी.साब !” पवन चहका था. “अभी लाया …!!” कहता हुआ वह गायब हो गया था .

“चाय तो पीते रहते हैं , हम .” गप्पा बता रही थी . “पहले जब काम था …तो देर रात तक ..हम लोग ….”

“काम क्यों बंद हुआ …?”

“समझता ही नहीं , मालिक ! उस को खबर …और ख़ास खबर का समझ ही नहीं ! कहता था – हम क्रांति लाएगा …लोगों को जाग्रत करेगा …! हा हा हा …!!” गप्पा शर्माते हुए हंसी थी . “खुद कुर्सी पर बैठे-बैठे …सो जाता था ….!!”

पारुल भी हंस पड़ी थी . पवन चाय ले कर आ गया था . सलीके की चाय थी . पारुल ने बड़े ही चाव के साथ चाय पीना आरम्भ किया था . उस ने देखा था कि ऑफिस के परदे गंदे थे . खूब धूल जमीं थी और शायद सालों-साल न तो किसी ने सफाई की थी और न ही रंग-रोगन कराया था !

अचानक काल-वेल् बज उठी थी . कोई था . गप्पा ने बाहर झाँका था . एक औरत की परछाईं दिखाई दी थी . हुलिया से कोई भिखारिन ही लग रही थी . गप्पा की त्योरियां चढ़ गईं थीं .

“चलो,चलो ! मालिक नहीं है ….!!” उस ने आदतन उस औरत को ललकारा था .

” म…म ..मैं भिखारिन नहीं हूँ . ” औरत ने कांपते कंठ से कहा था .

“तो …….?” गप्पा गरजी थी .

“दुखियारिन हूँ !” उस की आवाज़ काँप रही थी . “ग़मों की मारी हूँ .” वह बताने लगी थी .

“अंदर लाओ इसे , गप्पा !” पारुल का आदेश था . पारुल को लगा था कि ..उस का भाग्य उस के लिए अवश्य ही कोई नई सौगात ले आया था ! “आओ ,बैठो !” पारुल ने उस औरत को आदर से बिठाया था . “चाय लोगी ….?” पारुल ने प्रश्न पूछा था और बिना उत्तर पाए उस ने आदेश दिया था . “पवन ! एक कप चाय दो ….!!”

सामने बैठी औरत पारुल को एक पहेली लगी थी !

“क्या मदद चाहिए, बहिन ….?” पारुल का प्रश्न था .

“मदद …..?” उस के होठ काँपे थे . “मेरी तो जांन …खतरे में है…! मेरी दो बेटियां ….और …”

“पति ….?” पारुल का प्रश्न था .

“मारदिया …!!” उस ने उत्तर दिया था . “खिलौना राम ने मरवा दिया …” वह रोने लगी थी .

“पवन !” पारुल ने आवाज़ दी थी . “इन्हें ले जाओ ! पूरा किस्सा लिखो !” पारुल का आदेश था . ” और हाँ ! इन का भेद -भेद रहे ….!!” पारुल ने सतर्क किया था – पवन को .

अकेली हुई पारुल दहला गई थी .

“बरा न्यूज़ है , मैम साब ! ” गप्पा बता रही थी . “मैंने बोम्बे …न्यू टी वी को फोन मार दिया है . कोई आता ही होगा !” वह हंस रही थी . “बरा मछली फंसा है ! ये …जो …खिलौना राम्स है …ये तो मल्टी मिलिओनर …है ! पूरा कलकत्ता …आज इसी का पकाया खाता है !” गप्पा बताती ही रही थी . “आप ..भोत लकी हैं, साब !” गप्पा हंसती ही जा रही थी .

वक्त कब …और कितना गुजर गया- पारुल को पता ही न चला !

“मैं जा रहा हूँ .” राजन कह रहा था . “नौ बजे की फ्लाइट है . माईकिल पहुँच रहा है . मैं तो चाहता था कि ….तुम भी ….>”

“मैं न जा सकूंगी, राजन !” पारुल का स्वर गंभीर था . “महिलाल को भेज देना .” उस ने मांग की थी .

राजन के जाने के बाद पारुल अकेली थी . उस के दिमाग में आज की घटना भांय -भांय कर घूम रही थी . गरिमा की कहानी ने उसे हिला दिया था . वह सोचने पर मज़बूर थी कि …क्यों ….क्यों …एक सगा देवर …जिसे बच्चों की तरह पाला -पोषा ….पढ़ाया …वही आज …गरिमा की जांन का प्यासा था ….?

खाना खाने में मन न लगा . टी वी चलाया – बंद कर दिया . बगीचे में घूमने गई – लौट आई . शारीर के भीतर बैठी बेकल रूह आज निकल कर भाग जाना चाहती थी . पारुल चाहती रही थी कि ….कोंई होता …कोई ऐसा होता …जिसे वह अपनी सुनाती ….और . …

राजन तो जा चुका था !

“हल्लो !” बहुत बार कोशिश करने के बाद उधर से काल मिला था . “दी-दी …!!” पारुल ने पुकारा था . “कितनी देर से …जूझ रही हूँ …फोन ही नहीं मिला ….?”

“हाँ,रे ….! केशव का भोग लगा रही थी ….” सावित्री बताने लग रही थी . “बोल,बोल ….! बता …कि मेरा काम ….?” सावित्री ने पूछा था .

“आप का अंकुर …उग आया है , दी-दी …! ” पारुल ने सूचना दी थी .

बल्लियों कूदी थी , सावित्री ….और पारुल ने फोन काट दिया था !!

क्रमशः ..

मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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