” वाओ! आज तो साड़ियों में से कितनी अच्छी खुशबू आ रही है”।

और अपनी नाक माँ के हेंगरों पर टंगी सारी साड़ियों से रगड़ दिया करते थे।

बहुत प्यारी चार्ली परफ्यूम की खुशबू आया करती थी.. उन साड़ियों में से! 

माँ-और पिताजी कहीं भी पार्टी में जाने के लिए, तैयार होने के बाद.. यही चार्ली का परफ़्यूम लगाया करते थे। माँ की अलमारी में इस परफ़्यूम की बोतल रखी रहती थी।

एक सुंदर सी पिताजी की पसंद की साड़ी पहन तैयार होना.. और माथे पर लाल रंग की बिंदिया लगा.. चार्ली परफ़्यूम का छिड़कना, बस! यही श्रृंगार हुआ करता था.. माँ का कहीं विशेष जाने के लिए।

पिताजी भी कोट-पैंट पहन, यही चार्ली का परफ़्यूम लगा.. किसी फ़िल्म के सुपरहिट हीरो से कम न लगते थे।

परफ़्यूम वगरैह का हमें कोई विशेष शौक नहीं है.. पर आज भी अगर कोई हमसे बहतरीन खुशबू वाले परफ़्यूम के बारे में पूछता है.. तो एकबार फ़िर माँ की साड़ियों में से आती हुई, उसी खुशबू को महसूस करते हुए.. माँ और पिताजी का चार्ली का परफ्यूम ही बताते हैं।

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