बिलोरी बिना चटनी कैसे बनी

गाना और इसके मायने तो सही हैं.. पर हमनें बड़े होने तक, यह बिलोरी वाली चटनी की न बात सुनी.. और न ही चटनी खाई थी।

घर में तो mixie से बनने वाली हरे धनिए और नारियल की चटनी का ही स्वाद चखा था..

था..! हमारे घर में भी था .. वो पत्थर चटनी वगरैह पीसने का, पर कभी चटनी-वटनी पीसी नहीं उस पर! ऐसा कोई ख़ास चलन नहीं था.. मायके में चटनी का।

ब्याह हरियाणे के परिवार में हुआ..  हाँ! यहाँ हमारा साक्षात्कार कई प्रकार की स्वादिस्ट चटनियों से हो गया..

सब्ज़ी-वब्ज़ी भूल.. चटनी में ही मन रम गया।

और mixie में नहीं, ससुराल में तो सिल-बट्टे पर ही चटनी बनती थी।

वाकई! सिल-बट्टे पर पीसी हुई, चटनी.. mixie की चटनी को मात करती है.. 

वो जो सिल पर पीसी चटनी में.. टमाटर, हरी-मिर्च और लहसुन का स्वाद आता है.. वा भई वाह! हो जाती है।

“देस म देस हरियाणा जित दूध दही का खाना!”।

तो सुना था.. पर भई! हरियाणे की चटनियों ने भी कमाल कर दिया था..

दही वाली.. मैथी और हरे छोलयों की चटनी.. साथ में लहसुन, हरी मिर्च.. तीखी वाली और देसी टमाटर के तो कहने ही क्या थे.. ये चीज़ें तो हर चटनी में कुटनी ही कुटनी होतीं थीं।

फ़िर वो लाल-मिर्च लहसुन और टमाटर की चटनी.. उबले आलू की चटनी.. और भी कई सारी।

जाड़े के इस मौसम में.. मैथी के गर्म पराठें के ऊपर सिल पर पीसी तीख़ी चटनी और साथ में गुड़ और लस्सी के ग्लास का आंनद ही कुछ और होता है।

पहली बार विवाह के पश्चात हरियाणा प्रदेश की सिल पर पीसी हुई, मज़ेदार चटनी ने पिज़्ज़ा, बर्गर और पनीर तक का स्वाद भुला दिया था।

वाकई! भारतवर्ष ही एक ऐसा देश है.. जिसका हर प्रदेश अपना एक अलग स्वाद और खुशबू का प्रतीक है।

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