न्याय अन्याय के इस खेल में
शामिल हैं सभी
जो मुकदमा डालता है
अपने बचाव में फिर
जो चारों तरफ भागता है
पुलिस भी खेलती है खेल यह
नज़र से उसकी
क्या बच पाता है?
फिर वकील पहन काला कोट
मैदान मै आ जाता है
न्याय हो
या हो अन्याय
कोई भी दाग, उसके दामन को
न छू पाता है
ये समाज ही, हर बार
हार जाता है!
हल तो है,
सबको नज़र भी आता है
पर लालच और स्वार्थ का
पर्दा
अच्छे-अच्छों को
अँधा बनाता है!

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