पल्प फिक्शन !!
“बगुला भगत …..चन्दन का टीका लगा कर …जनता को गुमराह करता ….ये सी एम् साधू नहीं है ….ये इमानदार भी नहीं है …देश-भक्त नहीं …निरा पेट-भक्त है , योर हॉनर ! ये अव्वल नम्बर का अइयाश है ……” तनिक ठहर जाती हूँ, मैं !
ठीक है . इसी तर्ज पर बोलूंगी और जज को सीधा-सीधा बयान दूँगी कि किस तरह इस शेर की खाल में छुपे भेडिये ने मेरा मांस नोच-नोच कर …मुझे …मुझे ….” अब कैसे बताउंगी कि मुझे निर्वसन कर इस ने …पागल कुत्ते की तरह …काटा है ! “मैं कैसे चिल्लाती ….? कौन सुनाता …? पुलिस के पहरों के भीतर ….सिक्योरिटी के घेरे के अंदर …वहां ….जहाँ ….मुझे कुछ अता-पता तक नहीं होता …था …ये मुझे …, हाँ,हाँ ! ये मुझे …..”
द्रश्य है …और अब ये मेरी आँखों के सामने फाँसी सी झूल रहे हैं ….आत्महत्या कर रहे हैं ….! मेरे अरमान रोये जा रहे हैं …और मेरा मन टीस रहा है ! मेरा तन …और मेरी आत्मा ….?
“सच कहती हूँ , जज साव ….! मैं एक निर्दोष जीवन जीना चाहती थी . मैं चाहती थी कि मैं एक आदर्श नारी के चरित्र को जीउँ ….अपने पति …अपने जीवन-साथी के साथ …इज्जत से समाज में रहूँ ….और …..
“शोर था कि सुच्चा की बहू बहुत सुंदर है ! इतनी खूबसूरत औरत शायद ही किसी ने देखी हो !! वाह,रे ,सुच्चा ! तेरी किस्मत …..!!”
अब सुच्चा का घर लुच्चाओं के लिए त्रैलोक्य बन गया था ….और सुच्चा बना था उन का जिगरी यार ! उसे उन्होंने शराब के समुंदर में डुबो दिया था ! ‘तू मेरे साथ आ !’ किशन ने मुझे पहली बार सीख दी थी . ‘तुझे ऐश कराऊंगा !’ वह हंसा था . ‘सुच्चा का तो जब कहेगी तब गला काट दूंगा …’ उस ने मुझे चौंका दिया था . ‘मेरी रहेगी तो ……’
किशन की जीत तो होनी ही थी ! उस ने सुच्चा के बाद अपनी पत्नी को भी कत्ल कर दिया था …सरे आम …और पुलिस को भी बता दिया था कि ….दोनों मौत उसी के हाथों हुई थीं . बेल पर छूट आया था …और मुझे लेकर ….शादी बना कर …रहने लगा था …!!
“ये दुनियां जूते की यार है , रोली !” किशन कहता . “कंपनी बना दी है . तू चला . पढ़ी-लिखी है , कर काम ! कस्टमर मैं ला दूंगा . तू बस पार करती रह . ” ये उसी का दिया गुरु-मंत्र था .
खूब काम चला . मुंह मांगे पैसे मिले . मेरा हुस्न ….और किशन का चाकू …खूब ही चले ! और यों …चलते …चलते …हम मंजिल भी पा गए ….!
“सी एम् साहब हैं , सलाम करो !” मुझे जुल्फी ने जताया था . “खुश करोगी …तो पौ-बारह ….!!” उस ने चुपके से कहा था . “जीवट वाला बंदा है ! फंड मिला है . देदेगा . तुम्हारे ऊपर दारोमदार है ! बस , कुछ कर डालो, रोली …!”
“पौ -बारह ….!!” किशन कूदा-कूदा फिरा था . “मारदिया ….रे , मोर्चा ….!!” वह कहता रहा था . “सच ,रोली ! विदेश चलते हैं !” उस का सुझाव था . “माल मिलते ही ….गायव ….!!” वह हंसा था .
सब तय था . हम दोनों जाने वाले थे . लेकिन जुल्फी की नीयत खराब हो गई . वह भी मेरा ही मुरीद निकला !
“आदमी औरत के लिए …इतना उतावला -वावला क्यों हो जाता है ….मैं समझ ही नहीं पाई ! मेरा शारीर ….झूठा शारीर …कुत्तों का खाया-चबाया शारीर …? ये दूषित मेरी आत्मा …और पापी मेरा मन …क्यों कर जुल्फी को भाया …मैं नहीं जानती , जज साव !”
मैं कुछ भी नहीं जानती जज साव !!
“इस का पति – किशन जेल में है , योर ऑनर ! हत्याओं के जुर्म में उसे दो-दो उम्र-कैद मिली हैं . ये औरत पागल हो गई है . इस पर रहम करें , मी लार्ड ! इसे पागल खाने …..”
“जो इस ने बयान दिया है ….?”
“इट्स ….आल …पल्प -फिक्शन , योर हाइनेस !!” अधिवक्ता एक साथ बोल पड़ते हैं .
“आडर्स ……!!” कह कर जज साहिबा कैबिन में चली जाती हैं !!
……………
श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!